आवरण कथा : वैश्विक खतरा बनता तालिबान!
July 14, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत दिल्ली

आवरण कथा : वैश्विक खतरा बनता तालिबान!

by WEB DESK
Aug 8, 2021, 03:30 pm IST
in दिल्ली
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

अफगानिस्तान में हावी होते जा रहे हैं मजहबी उन्मादी सोच से संचालित तालिबान

आलोक बंसल


अफगानिस्तान से आने वाली खबरें उस देश और देशवासियों के भविष्य के प्रति पूरे विश्व को चिंता में डाल हुए हैं। यह सही है कि पाकिस्तान हिंसक तालिबान को खाद-पानी उपलब्ध करा रहा है। लेकिन भारत के लिए संकेत सही नहीं है। आज हमारे नीतिकारों को अफगान सरकार की हरसंभव मदद के लिए आगे आना ही होगा। अफगानिस्तान में एक स्थिर लोकतांत्रिक सरकार होना ही भारत के हित में है


आज अफगानिस्तान में तालिबान जिस तरह से मध्ययुगीन बर्बरता दिखा रहा है, वह न सिर्फ अफगानिस्तान के लिए बल्कि भारत और क्षेत्र के अन्य राष्टÑों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। इससे भी आगे यह संपूर्ण विश्व के लिए एक बड़ा खतरनाक घटनाक्रम है। इसको हमें समझना चाहिए। इस वक्त भारत की ओर से पूरी कोशिश करनी चाहिए कि काबुल में तालिबान का प्रभुत्व कायम न हो सके। इसके लिए भारत सरकार के द्वारा अफगान हुकूमत की जो भी मदद हो सके, वह करनी चाहिए।
यह आश्चर्यजनक ही है कि भारत में आज कई लोग ऐसे हैं जो तालिबान के साथ किसी तरह के समझौते की वकालत करते हैं। उनको लगता है कि तालिबान की तरफ दोस्ताना हाथ बढ़ाया जाए तो वे सुधर सकते हैं। ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि तालिबान ने अमेरिका को दोहा या अन्य स्थानों पर कई दौर की वार्ता में जितने भी आश्वासन दिए, उनमें से एक पर भी तालिबान खरे नहीं उतरे। जो भी क्षेत्र उनके कब्जे में आया वहां जिस तरह की बर्बरता का उदाहरण उन्होंने विश्व के सामने पेश किया है वह यही दर्शाता है कि उनकी मानसिकता अब भी मध्ययुगीन ही है। वे आज तक इससे उबर नहीं पाए हैं।

भय का माहौल
हमें इस पर गौर करना चाहिए कि अफगानिस्तान में आज ऐसे हालात क्यों पैदा हुए हैं? यह समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे लौटना होगा। जैसे ही अमेरिका ने यह घोषणा की कि 11 सितंबर 2021 तक हम अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिक निकाल लेंगे, तभी से एक डर और भय का माहौल तैयार किया जाने लगा था। फिर ऐसा भाव पैदा किया गया जैसे अफगान प्रशासन शायद ध्वस्त हो जाएगा। इसी के कारण देखने में आया किबड़ी संख्या में अफगान सैनिक वहां से जान बचाकर पड़ोसी देशों में भाग गये। इतिहास यह दर्शाता है कि अफगानिस्तान में जितनी बार सत्ता में परिवर्तन हुआ है, वह कभी भी सैनिक विजय के द्वारा नहीं हुआ है। वह इसलिए होता आया है कि तत्कालीन सैन्य कमांडर पाला बदलते रहे। अगर नजीबुल्ला की बात करें तो उनकी हुकूमत गिरी। उन्होंने जलालाबाद में एक निर्णायक विजय मुजाहिद्दीन के विरुद्ध हासिल की थी। लेकिन उनके प्रमुख कमांडर जनरल दोस्तम और जनरल तनाई जाकर मुजाहिद्दीनों से मिल गये और नजीबुल्ला की सरकार गिर गयी। उसके बाद जब तालिबान ने काबुल में अपना प्रभुत्व जमाया तो उन्होंने भी अधिकांश मुजाहिद्दीन कमांडरों को या तो खरीद लिया या वे खुद से तालिबान से जा मिले। तो यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि अफगानिस्तान के संदर्भ में जिस तरह का सोच पर दबाव का माहौल बनाया गया है वह बहुत महत्वपूर्ण है। अमेरिका की सैन्य वापसी की घोषणा से वहां के प्रशासन और सेना पर एक मानसिक दबाव बन गया।

क्यों बढ़ाया गया तालिबान का कद?
हमें यह भी समझना चाहिए कि किसी कबाइली समाज में कोई व्यक्ति अपनी बराबरी वाले से ही बात करता है। जब अमेरिका के राष्टÑपति तालिबान के नेतृत्व से बात करेंगे तो एक आम अफगान की नजरों में तालिबान नेतृत्व का ओहदा जाहिर है,अमेरिकी प्रशासन के प्रतिनिधियों के बराबर हो जाता है। और जब इस बातचीत से अफगानिस्तान की कानूनी हुकूमत को दूर रखा जाएगा तो ऐसे में जाहिर है, अफगान सरकार की विश्वसनीयता अपनी अवाम की नजरों में काफी कम होगी। इन सब कारणों से अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व बढ़ा। पाकिस्तान के खुफिया तंत्र व पाकिस्तान की सशस्त्र सेनाओं ने तालिबान की मदद की है, तो इस पूरी बर्बरता में पाकिस्तान का बहुत बड़ा योगदान है।

तालिबान के फिर से उभरते आने पर बारीकी से नजर डालें तो अमेरिका की सैन्य वापसी की घोषणा के बाद, तालिबान ने उन ग्रामीण इलाकों पर कब्जा करना शुरू किया जहां अफगानिस्तान की बहुत कम आबादी रहती है, जहां आबादी बहुत छोटे हिस्से तक सीमित है। अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्से में या तो दुर्गम पहाड़ियां हैं या मरुस्थल है। तालिबान ने सबसे पहले इन इलाकों पर कब्जा किया। उसके बाद उन्होंने दूसरा हमला किया सीमाओं पर। आज अफगानिस्तान की सभी सीमाएं तालिबान के कब्जे में हैं, सिवाय दो के, एक तो है तोरखम और दूसरा जरांश। इनके अलावा सब पर उनका कब्जा है, चाहे वह सीमा ईरान के साथ लगती सीमा हो, उज्बेकिस्तान के साथ सटी, ताजिकिस्तान के साथ या फिर पाकिस्तान के साथ सटी सीमा। इसके पीछे तालिबान का उद्देश्य यही है कि इन रास्तों से होने वाले आवागमन की कर वसूली से मोटा पैसा बनाया जा सकता है। यही पैसा तालिबान युद्ध में लगाता है।

खतरनाक मजहबी सोच
आज तीन बड़े शहरों पर कब्जे की कोशिश में लगे तालिबान से भयंकर संघर्ष चल रहा है। ये तीन शहर हैं कंधार, हेरात और लश्करगाह, जहां भीषण संघर्ष छिड़ा है। इनका हाथ से निकलना नि:संदेह अफगानिस्तान के लिए एक बड़ा आघात होगा। यहां हमें यह भी समझना चाहिए कि अगर तालिबान काबुल पर कब्जा कर लेता है तो फिर मानकर चलिए कि एक इस्लामिक अमीरात की स्थापना हो जाएगी, इसे फिर कोई रोक नहीं पाएगा। तालिबान अपने प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में जिस तरह से लोगों की हत्या कर रहे हैं, उन्हें सूली पर टांग रहे हैं, इससे वे अपनी कट्टरपंथी विचारधारा का ही प्रसार कर रहे हैं और जता रहे हैं कि उनकी सोच में कोई सुधार नहीं आया है। एक और महत्वपूर्ण चीज जो लोगों को समझनी चाहिए वह यह है कि तालिबान और अलकायदा के बीच एक गूढ़ मजहबी नाता है। अलकायदा जिहाद की बात करता है तो ऐसा अमीरुल मोइमुनिन के नेतृत्व में ही करना चाहता है। अलकायदा ने यह कभी भी नहीं कहा कि वह ओसामा बिन लादेन, अल जवाहिरी के नेतृत्व में जिहाद करना चाहता है। अलकायदा के जिहाद को मजहबी रूप देने के लिए उसे तालिबान का नेतृत्व चाहिए। इसमें महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जिहाद के लिए जिहादियों के प्रभुत्व वाला क्षेत्र चाहिए होता हो। तो इसीलिए एक बार इन्होंने अगर अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात स्थापित कर लिया तो इस कट्टरपंथी विचारधारा का बहुत तेजी से विस्तार होगा, जैसा कि इस्लामिक स्टेट या आईएस के प्रभुत्व के दौरान हुआ था। इसके बाद वही विचारधारा एक वैश्विक इस्लामिक अमीरात बनने की ओर बढ़ेगी जो न सिर्फ पाकिस्तान, अफगानिस्तान बल्कि शेष विश्व को भी काफी हद तक प्रभावित करेगी। इसका उद्देश्य कोई अफगानिस्तान की भौगोलिक सीमाओं के अंतर्गत रहने वाला नहीं है।

इसमें भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण संकेत छुपा है। हमें समझ लेना चाहिए कि अगर अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व स्थापित हो गया तो तालिबान के जो लड़ाके आज अफगानिस्तान में युद्धरत हैं वे कल वहां कोई हल थोड़ी चलाएंगे। वे बेशक, किसी अन्य युद्ध क्षेत्र की तलाश में निकलेंगे। बहुत हद तक उनकी एक बड़ी संख्या कश्मीर या शेष भारत में दिखायी दे सकती है।

ध्यान देने की बात है कि पिछली बार जब तालिबान का प्रभुत्व था तब कश्मीर अंतरराष्टÑीय आतंकवादियों का जैसे अड्डा बन गया था। वहां चेचन्या से लेकर सुडान तक के आतंकवादी दिखते थे। अगर तालिबान अफगानिस्तान में जम गया तो हमारे यहां फिर से वैसी स्थिति दिख सकती है। बहुत जरूरी है कि भारत सरकार इस बारे में चिंता करे, क्योंकि हमें तालिबान से देर-सवेर टकराना पड़ सकता है। हमें यह भी सोचना पड़ेगा कि वह युद्ध श्रीनगर में करना है, वाघा में या काबुल में।

पाकिस्तान तालिबान के साथ
इस पूरे प्रकरण में पाकिस्तान बड़ी भूमिका निभा रहा है। अफगानिस्तान के नेताओं ने कई बार कहा भी है कि पाकिस्तान की सेना तक तालिबान के साथ मिली हुई है। जब स्पिन बोल्दाक में अफगानिस्तान की वायु सेना ने तालिबान पर हमला किया तो यह पाकिस्तान की वायुसेना ही जिसने अफगान वायुसेना को वहां से खदेड़ा था। पाकिस्तान यह बात कई बार कह चुका है, नवाज शरीफ के जमाने से वह कहता रहा है कि जब तक तालिबान काबुल की हुकूमत में नहीं होंगे तब तक वहां पर स्थिरता नहीं आयेगी। इसमें कोई शक नहीं है कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान के लिए नरमाई रखने वाली हुकूमत की स्थापना होने से पाकिस्तान के मजहबी मंसूबों को बल मिलेगा। आज अफगानिस्तान के राजनीतिक रंगमंच पर जितने भी खिलाड़ी हैं उनमें तालिबान ही एकमात्र ऐसा मोहरा है जो कुछ हद तक पाकिस्तान की बात मानता है। इसीलिए पाकिस्तान का सुरक्षा तंत्र पूरी तरह से तालिबान का समर्थन कर रहा है। अफगान सेना शुरुआती हार के बाद अब जमकर मुकाबला कर रही है। जैसे अफगान जनमानस को यह लग रहा है कि अफगानिस्तान सरकार अब गिरने वाली नहीं है। वह तालिबान को टक्कर दे रही है। दुर्भाग्य से अफगान वायुसेना और तोपखाना उतना सशक्त नहीं है जितना होना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान को संतुष्ट रखने के लिए अमेरिका ने अफगान सशस्त्र सेनाओं, वायुसेना और तोपखाने को सुदृढ़ नहीं किया है। गृहयुद्ध में तो वैसे इन दोनों ही चीजों की आवश्यकता नहीं होती। पर, आज अफगानिस्तान में जो युद्ध चल रहा है, वह अन्य गृहयुद्धों से भिन्न है। यहां मानसिक संतुलन ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर एक बार वहां के लोग आश्वस्त हो जाएं कि ये सरकार गिरेगी नहीं तो लोग रुकेंगे और तालिबान को टक्कर देंगे।

आज भी अफगानिस्तान का विशाल जनमत तालिबान विरोधी है। हमें यह समझना चाहिए कि अगर तालिबान शासन में आ गए तो महिलाओं, अल्पसंख्यकों और यहां तक कि इस्लाम के अन्य फिरकों के लोगों के ऊपर जबरदस्त बर्बरता होगी।

 

अफगानिस्तान न जाने पर पाकिस्तान में मदरसा छात्रों को यातना

जिहाद की भट्टी में ईंधन डालने को सदा तैयार रहने वाली पाकिस्तान हुकूमत तालिबान के समर्थन के लिए अपने फौजी और जिहादी तो पहले ही अफगानिस्तान भेज चुकी है। लेकिन अब एक ऐसा वीडियो सामने आया है जिसके अनुसार, पाकिस्तान के मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को वहां जंग लड़ने भेजा जा रहा है। साफ है कि इस्लामी देश पाकिस्तान की मजहबी उन्माद में डूबी सरकार अफगानिस्तान में युद्ध की आग को और भड़का रही है। मदरसा छात्रों को सरहद की तरफ रवाना करना इस तरफ स्पष्ट इशारा करता है।
यह वीडियो अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय से जुड़े एक व्यक्ति फवाद अमान ने साझा किया है। वीडियो में पाकिस्तानी मदरसों में पढ़ने वाले कई छात्रों ने अपनी सरकार की ओछी हरकतों का खुलासा किया है। अफगानिस्तान के प्रसिद्ध समाचार चैनल टोलो न्यूज के वरिष्ठ एंकर और कार्यक्रम प्रस्तुतकर्ता के नाते काम कर चुके हैं फवाद इन दिनों रक्षा मंत्रालय के साथ काम कर रहे हैं। फवाद के ट्विटर हैंडल से साझा किए इस वीडियो में पाकिस्तानी मदरसे के छात्र साफ कहते दिख रहे हैं कि उन्हें सताया जा रहा है। उसमें एक छात्र कह रहा है कि यहां उसे जंजीर से बांध कर यातना दी जाती है। उस पर काफी जुल्म किए जाते हैं। जरा गलती होने पर बेल्ट से पीटा जाता है। एक अन्य छात्र का कहना है कि उन्हें जिहाद से जुड़ी तालीम दी जा रही है। उन्हें जिहाद के लिए अफगानिस्तान जाने को कहा जाता है। एक छात्र कह रहा है कि उन्हें जबरदस्ती कक्षा में बैठाकर मारा जाता है।

चीन और तालिबान की ‘मैत्री’ 

अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभुत्व से चीन चिंतित रहा। इसके दो कारण मुख्य थे। एक तो चीन अफगानिस्तान के शिनजियांग में विद्रोह कर रहे अलगाववादी संगठन पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) का केंद्र बनने के बारे में चिंतित है। दूसरे, चीन को इससे पाकिस्तान और इसके आगे के क्षेत्र में अपने निवेश, कर्मचारियों के हितों की चिंता है। जुलाई के पहले हफ्ते में, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था कि बीजिंग और इस्लामाबाद को एक साथ क्षेत्रीय शांति की रक्षा करने की जरूरत है क्योंकि अफगानिस्तान के मुद्दे के दोनों देशों के लिए निहितार्थ हैं। परंतु इसके बाद स्थितियां बदलती गईं।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट को दिए एक साक्षात्कार में तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि उसका गुट चीन को अफगानिस्तान के लिए एक "मित्र" के रूप में देखता है, और युद्धग्रस्त देश में पुनर्निर्माण कार्य के लिए चीनी निवेश की उम्मीद करता है। उसने कहा कि गुट का 85 प्रतिशत अफगान क्षेत्र पर नियंत्रण है और यह चीनी निवेशकों और श्रमिकों की सुरक्षा की गारंटी देगा। शाहीन ने कथित तौर पर चीन को आश्वस्त किया कि वह शिनजियांग प्रांत के उइगर आतंकवादियों की मेजबानी नहीं करेगा।
जुलाई के आखिरी हफ्ते में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व में एक तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। चीनी पक्ष या तालिबान की ओर से बैठक को लेकर कुछ भी नहीं कहा गया है। हालांकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी सेना को सावधान कर दिया है कि अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत आने के बढ़ते आसार को देखते हुए सिंक्यांग में उपद्रवी व अलबाववादी उइगर गुटों से लड़ने को तैयार रहे।

तालिबान ने की मशहूर कॉमेडियन की हत्या
 

अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से पूर्व ही तालिबान ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं। हाल के दिनों में अफगानिस्तान के कंधार प्रांत के कॉमेडियन नजर मोहम्मद उर्फ खाशा ज्वान की हत्या हो गई। सोशल मीडिया पर सामने आए एक वीडियो में खाशा ज्वान को दो लोग थप्पड़ मारते और उन्हें गालियां देते हुए नजर आए। बाद में ज्वान की हत्या की कर दी गई। तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्ला मुजाहिद ने स्वीकार किया कि दोनों हत्यारे तालिबान से जुड़े थे। मुजाहिद ने कहा कि दोनों को गिरफ्तार किया गया है और उन पर मुकदमा चलेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि ज्वान अफगान नेशनल पुलिस के सदस्य थे। मुजाहिद ने कहा कि तालिबानियों को हास्य कलाकार को गिरफ्तार कर उनकी हत्या करने के बजाय तालिबान की अदालत में पेश करना चाहिए था।
हैरत इस बात की है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चीख-पुकार करने वाली जुबानें इस हत्या पर खामोश हैं। इस हत्या से तालिबान का आश्वासन भी खोखला साबित हो रहा है कि अमेरिकी सेना या अमेरिकी संगठनों के साथ सरकार के लिए काम कर चुके लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। जिन इलाकों में तालिबान ने कब्जा जमा लिया है, वहां सैकड़ों लोगों को बंधक बनाने की भी सूचना मिली है। प्रतिशोध की भावना से कार्रवाई की आशंका के कारण अमेरिका अपने 200 मददगारों को अफगानिस्तान से निकाल चुका है। अमेरिकी सेना के साथ काम कर चुके 18,000 अफगान नागरिकों ने अमेरिका में विशेष आव्रजन वीजा के लिए आवेदन किया है।

भारत के हित में क्या!
यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज के दर्जे वाली बामियान बुद्ध प्रतिमाओं को किस बर्बरतापूर्ण तरीके से तालिबान ने नष्ट किया था, वह याद रखना होगा। अत: भारत के लिए अवश्यंभावी हो जाता है कि आज जो अफगान सरकार है उसका वह समर्थन करे। भारत को अफगानिस्तान में सैनिक भेजने की जरूरत नहीं है, जैसा कि अफगानिस्तान के राजदूत ने कहा भी। जरूरत पड़ने पर भारत को  अफगान सशस्त्र सेनाओं के लिए रसद और अन्य सामग्री मुहैया करानी चाहिए। यही भारत के हित में है। मेरे विचार से आगे चलकर भारत सरकार को अपनी सुरक्षा चिंताओं को एक प्रमुख मुद्दा बनाना चाहिए। कहना चाहिए कि चाहे जो हो हम अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व नहीं होने देंगे। इसमें किसी तरह की ढुलमुल नीति नहीं चाहिए।

आज विश्व के कुछ राष्टÑ तालिबान के प्रति सहानुभूति दर्शा रहे हैं। चीन भी तालिबान के प्रतिनिधिमंडल को अपने यहां बुला कर बात करता है। अमेरिका ने उनसे बात की और पाकिस्तान तो उनको पाल-पोस ही रहा है। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा और अमेरिका वहां से निकल जाएगा तो जो देश तालिबान से प्रभावित थे वे सब भी इसके खिलाफ आवाज उठाने लगेंगे। इसलिए भारत को कोशिश करनी चाहिए कि वह पुन: ईरान और मध्य एशिया के अन्य देशों के साथ मिलकर एक सुदृढ़ संगठन खड़ा करे, जो अफगानिस्तान सरकार की पूरी तरह से मदद करे ताकि तालिबान को वहां से उखाड़ फेंका जा सके।

तुर्की में आज जो हुकूमत है वह अपने आपको नव आॅटोमन साम्राज्य के रूप में देखती है। दुनिया से इस्लामिक प्रभुत्व खत्म होने से पहले तुर्की  जिस तरीके से खुद को देखता था, आज राष्टÑपति एर्दोगन अपनी वैसी ही भूमिका देखते हैं। वे भले खलीफा न बनना चाहते हों पर इस्लामिक विश्व में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं। पूर्व राष्टÑपति कमाल अतातुर्क की जो नीतियां थीं उनको वहां काफी हद तक खत्म कर दिया गया है। तुर्की में इस्लामवाद पर प्रतिबंध था, पर अब उसको वापस लाया गया है, जिसको समर्थन दिलाने की वे पूरे विश्व में कोशिश कर रहे हैं। यही कारण है कि एर्दोगन ने एक प्रस्ताव रखा था कि काबुल में हवाई अड्डे की सुरक्षा वे करना चाहेंगे, लेकिन तालिबान ने यह बात स्वीकार नहीं की थी। तालिबान को चाहे पाकिस्तान पोस रहा हो, पर वह कभी किसी की कठपुतली नहीं बनेंगे। उनका जो वैचारिक रुख है उसमें भी परिवर्तन नहीं आएगा। इसलिए भले ही वे कभी पाकिस्तान के खिलाफ हो जाएं, लेकिन भारत के मित्र तो कभी नहीं हो सकते। इसीलिए अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व होना भारत के हित में कदापि नहीं होगा। हमारे लिए आवश्यक है कि अफगानिस्तान में जनतांत्रिक और स्थिर हुकूमत कायम हो।

तालिबान और अलकायदा की सामानांतर सोच है वैश्विक इस्लामिक अमीरात की स्थापना। यह सोच किसी देश की भौगालिक सीमाओं को नहीं देखती। वे इस्लामिक उम्मा की बात करते हैं। इसीलिए जो लोग यह सोचते हैं कि तालिबान की विचारधारा केवल अफगानिस्तान की भौगोलिक सीमाओं के अंदर सीमित रहेगी, वे गलत सोचते हैं।

भारत को संयुक्त राष्ट सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष बनाया गया है। अब भारत को तालिबान के विरुद्ध एक जनमत बनाना चाहिए। विश्व को यह बताना आवश्यक है कि तानिबान आगे चलकर सिर्फ हमारे लिए खतरा नहीं बनेगा बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरा बन सकता है। लेकिन इसमें हम कितने सफल होंगे, फिलहाल यह कहना थोड़ा मुश्किल है।

(इंडिया फाउंडेशन के निदेशक आलोक बंसल से आलोक गोस्वामी की बातचीत पर आधारित)
 

Follow Us on Telegram

 

 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies