पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान बीते कुछ दिनों से अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर लगातार अमेरिका पर हमलावर हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि अफगानिस्तान को इस स्थिति में अमेरिका ने पहुंचाया। अब कह रहे हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिका और उसके सहयोगियों की वापसी के बाद तालिबान की कार्रवाईयों के लिए पाकिस्तान को "जिम्मेदार" नहीं ठहराया जा सकता है। साथ ही, उन्होंने कहा कि उनकी सरकार आतंकी समूह की प्रवक्ता नहीं है। इमरान खान अफगान मीडिया से यह बात कही, जिसका प्रसारण गुरुवार को किया गया।
तो अफगानों ने गलत विकल्प चुना!
काबुल की घटनाओं से इस्लामाबाद को परे रखते हुए इमरान ने कहा, "हम केवल अफगानिस्तान में शांति चाहते हैं। वहां तालिबान जो कर रहा है या नहीं कर रहा है, उसका हमसे कोई लेना-देना नहीं है। इसके लिए न तो हम जिम्मेदार हैं और न ही तालिबान के प्रवक्ता हैं।" उन्होंने कहा कि अफगानों के पास एक विकल्प था- या तो अमेरिका समर्थित सैन्य समाधान को चुने या राजनीतिक समझौता करे जहां एक समावेशी सरकार हो। (बाद वाला विकल्प) एकमात्र समाधान है।" पाकिस्तान कहता रहा है कि अफगान शांति प्रक्रिया में किसी भी तरह की गड़बड़ी के लिए वह जिम्मेदार नहीं होगा।
इस महीने की शुरुआत में अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान की ‘नकारात्मक भूमिका’ का आरोप लगाया था। इस पर तिलमिलाए इमरान ने कहा था कि अफगानिस्तान की स्थिति के लिए इस्लामाबाद को दोष देना ‘बेहद अनुचित’ है। इससे पहले जून में पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डॉ. मोईद यूसुफ ने कहा था कि अफगानिस्तान से अमेरिका की अचानक वापसी आदर्श नहीं थी। इसलिए अपना ‘चेहरा बचाने’ के लिए पाकिस्तान पर किसी भी तरह का दोषारोपण अस्वीकार्य होगा।
कैसे पता लगाएं तालिबान का मददगार कौन?
अफगानिस्तान लगातार पाकिस्तान पर आरोप लगा रहा है कि वह तालिबान को सहयोग और समर्थन दे रहा है। हाल ही में एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि पाकिस्तान ने दस हजार आतंकियों को अफगानिस्तान में तालिबान की मदद के लिए भेजा है। इमरान कहते हैं,
"पाकिस्तान में 30 लाख अफगान शरणार्थी हैं। उनमें से लगभग सभी पश्तून हैं और अधिकांश की तालिबान के साथ सहानुभूति होगी। इसके लिए पाकिस्तान को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? पाकिस्तान कैसे पता लगाएगा कि वहां कौन लड़ने जा रहा है? हमारे यहां से लगभग 30,000 लोग हर दिन अफगानिस्तान जाते हैं। पाकिस्तान इसकी जांच कैसे करेगा?" उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लिए शरणार्थी शिविरों के माध्यम से यह पता लगाना संभव नहीं कि कौन तालिबान समर्थक है और कौन नहीं।
इमरान खान ने कहा कि हाल तक दोनों देशों के बीच कोई भौतिक सीमा नहीं थी। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2640 किलोमीटर लंबी सीमा का जिक्र करते हुए कहा, "डूरंड रेखा काल्पनिक थी।" लेकिन पाकिस्तान ने अब सीमा पर बाड़ लगाने का 90 प्रतिशत काम पूरा कर लिया है। उन्होंने कहा, "हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जब आपके यहां 30 लाख से ज्यादा शरणार्थी हैं तो पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराना संभव नहीं है।"
अफगानिस्तान में गृहयुद्ध पाकिस्तान के हित में नहीं
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में गृहयुद्ध छिड़ना पाकिस्तान के हित में नहीं है। अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए किसी का समर्थन करने में पाकिस्तान की क्या दिलचस्पी हो सकती है? इमरान ने कहा कि 90 के दशक में पाकिस्तान ने 'रणनीतिक गहराई' की नीति अपनाई थी, क्योंकि वह अफगानिस्तान में भारतीय के प्रभाव से सावधान था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान वह देश है, जो अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा शांति चाहता है, क्योंकि यह देश को मध्य एशिया से जोड़ेगा। हमारी भविष्य की सभी आर्थिक रणनीतियां अफगानिस्तान में शांति पर निर्भर करती हैं। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के माध्यम से रेलवे परियोजना के लिए उज्बेकिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
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