तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रपट सौंपते हुए न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर
सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर निवेदन किया गया है कि सच्चर समिति की सिफारिशों पर रोक लगाई जाए। उल्लेखनीय है कि इस समिति ने कहा था कि मुस्लिम आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं, इसलिए इन्हें विशेष सुविधाएं दी जाएं
सोनिया—मनमोहन सरकार के समय 2005 में बनाई गई सच्चर समिति को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गय था। समिति को देश में मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन कर एक रपट तैयार करने को कहा गया था। समिति ने 2006 में अपनी रपट सरकार को दी थी। इसमें कहा गया था कि मुसलमान समुदाय आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा है, इसलिए इन्हें विशेष सुविधाएं दी जाएं। इस रपट का भाजपा ने जबर्दस्त विरोध किया था।
अब उत्तर प्रदेश के पांच लोगों ने इसकी अनुशंसाओं पर रोक लगाने की गुहार सर्वोच्च न्यायालय से लगाई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि 9 मार्च, 2005 को प्रधानमंत्री कार्यालय से समिति के गठन के लिए जारी अधिसूचना में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि यह मंत्रिमंडल के किसी निर्णय के बाद जारी की जा रही है।
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर इस याचिका में कहा गया है, ''इस तरह यह स्पष्ट है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति जानने के लिए स्वयं अपनी तरफ से ही निर्देश जारी किया, जबकि अनुच्छेद 14 और 15 में कहा गया है कि किसी मजहबी समुदाय के साथ अलग से व्यवहार नहीं किया जा सकता।''
याचिका में कहा गया है कि इस तरह के आयोग का गठन करने की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 340 के अंतर्गत राष्ट्रपति के पास है। याचिका में दावा किया गया है कि समिति की नियुक्ति अनुच्छेद 77 का उल्लंघन थी और यह असंवैधानिक तथा अवैध है। याचिका में आग्रह किया गया है कि केंद्र सरकार को मुसलमानों के लिए कोई योजना शुरू करने के लिए रपट का क्रियान्वयन करने से रोका जाए।
याचिका में कहा गया है कि सच्चर समिति यह समझने में विफल रही कि मुसलमान अभिभावक अपने बच्चों को सामान्य विद्यालय भेजने की बजाए 'मदरसों' में मजहबी शिक्षा देने में अधिक रुचि क्यों रखते हैं! सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह सच्चर समिति की रपट पर भरोसा कर मुसलमानों के पक्ष में कोई नई योजना न लाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि मुसलमानों की परिवार नियोजन में कोई रुचि नहीं है। इस कारण उनका परिवार आमतौर पर काफी बड़ा होता है और बच्चों को उचित भोजन और पोषण नहीं मिल पाता है। याचिका के अनुसार समिति ने इन सभी पहलुओं पर कोई विचार नहीं किया है।
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