रक्षामंत्री ने कहा कि भारत हर तरह के आतंकवाद से लड़ाई लड़ना जारी रखेगा, क्योंकि हम क्षेत्र में शांति, समृद्धि और स्थिरता लाना चाहते हैं
ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में एससीओ की बैठक में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ कहा कि आतंकवाद को समर्थन देना मानवता के प्रति अपराध ही है। 28 जुलाई को संगठन के सदस्य देशों जैसे चीन, रूस, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान और किर्गिस्तान के मंत्रियों की उपस्थिति में उन्होंने बिना लाग—लपेट के कहा कि आतंकवाद सबसे गंभीर खतरा है अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए। रक्षा मंत्री ने कहा कि आतंकवाद का किसी भी रूप में समर्थन करना मानवता के प्रति अपराध है। राजनाथ ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना उसकी तरफ संकेत करते हुए कहा कि भारत सभी तरह के आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध के लिए प्रतिबद्ध है। आतंकवाद के रहते शांति और समृद्धि संभव नहीं हो सकती है।
रक्षा मंत्री ने अपने संबोधन में आगे कहा कि सीमा पार आतंकवाद समेत आतंकवाद के किसी भी स्वरूप को अंजाम तथा समर्थन देना मानवता के प्रति अपराध है। भले इसका मकसद कुछ भी क्यों न हो। भारत सभी को आश्वस्त करना चाहता है कि वह हमेशा सभी तरह के आतंकवाद के विरुद्ध अपनी लड़ाई लड़ना जारी रखेगा। सुरक्षा को लेकर भारत आपसी विश्वास बहाल करने को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।
सीमा पार आतंकवाद समेत आतंकवाद के किसी भी स्वरूप को अंजाम तथा समर्थन देना मानवता के प्रति अपराध है। भले इसका मकसद कुछ भी क्यों न हो। भारत सभी को आश्वस्त करना चाहता है कि वह हमेशा सभी तरह के आतंकवाद के विरुद्ध अपनी लड़ाई लड़ना जारी रखेगा।
उन्होंने कहा कि आतंकवाद से मुकाबला करने में बड़े देशों को हर तरह से अपनी उचित भूमिका निभानी चाहिए। भारत का उद्देश्य क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता लाना है। सम्मेलन में शामिल होने से पूर्व राजनाथ सिंह ने बेलारूस के रक्षा मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल विक्टर ख्रेनिन से भी भेंट की। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी गत 14 जुलाई को दुशांबे में ही एससीओ सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल हुए थे।
इस वर्ष इस संगठन की अध्यक्षता ताजिकिस्तान कर रहा है। एससीओ को नाटो के प्रभावी समकक्ष के तौर पर माना जाता है। 2001 में इस समूह की स्थापना शंघाई में एक शिखर सम्मेलन में रूस, चीन, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों द्वारा की गई थी।
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