आशा कंदारा
जो महिला कुछ दिन पहले तक जोधपुर की सड़कों की सफाई करती थी, आज वह राजस्थान प्रशासकीय सेवा की परीक्षा में सफल होकर अब उपायुक्त बनने वाली है। जिस जोधपुर लगर निगम के अंतर्गत आशा कंदारा ने सफाईकर्मी के तौर पर काम किया, उसी नगर निगम की मेयर और सीईओ ने एक विशेष समारोह आयोजित कर उनका अभिनंदन किया। दो बच्चों की मां आशा कंदारा ही यह सफलता उन महिलाओं के लिए प्रेरणा से कम नहीं है, जो हालात से समझौता कर लेती हैं।
जोधपुर नगर निगम की मेयर और सीईओ कुंती देवड़ा ने आशा के सिर पर साफा (राजस्थानी पगड़ी) बांधी तो पूरा कार्यालय तालियों और जय-जयकार से गूंज गया। कुंती देवड़ा ने कहा, “हमें गर्व है कि हमारे नगर निगम की एक सफाईकर्मी आरएएस अधिकारी बन गई है। आशा एक मेहनती महिला रही हैं। हमें वास्तव में खुशी होगी अगर भविष्य में वह हमारे निगम में वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर काम करेंगी।“
आशा का जीवन संघर्ष से भरा है। आशा वाल्मीकि समुदाय से हैं और 17 साल की कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी गई। आशा ने 1997 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की थी। आशा नौ साल पहले यानी 2012 में अपने पति से अलग हो गईं। तलाक के बाद पति ने बच्चों की जिम्मेदारी से भी मुंह मोड़ लिया। आशा ने अकेले ही अपने दोनों बच्चों की परवरिश की और ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इस बीच, अपने परिवार से उन्हें समर्थन मिलता रहा। 2016 में आशा ने ग्रेजुएशन पूरा किया, लेकिन इसके बाद भी उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिली।
अतीत को याद करते हुए आशा कहती हैं कि वह राज्य सिविल सेवा में आना चाहती थीं। दरअसल, इसके पीछे एक कारण था। वह कहती हैं, "मैं जहां भी जाती थी, लोग यह कहकर ताना मारते थे कि 'क्या आप कलेक्टर हैं?' मुझे नहीं मालूम था कि कलेक्टर क्या होता है। एक दिन मैंने गूगल पर खोजा, तब कलेक्टर का मतलब समझ में आया। उसी समय मैंने तय कर लिया कि मुझे सिविल सेवा में जाना है। चूंकि आईएएस प्रवेश परीक्षा की मेरी उम्र निकल चुकी थी, इसलिए सोचा कि आरएएस के लिए प्रयास करूंगी, क्योंकि इसमें तलाकशुदा महिलाओं के लिए आयु-सीमा की अनिवार्यता नहीं है।”
40 वर्षीया आशा ने 2018 में राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन परीक्षा परिणाम 13 जुलाई, 2021 को घोषित किया गया। उन्होंने कहा कि परीक्षा के 12 दिन बाद ही उन्होंने 2018 में जोधपुर नगर निगम में सफाई कर्मचारी की परीक्षा दी और इसमें सफल हुई। सफाई का काम करते हुए उन्होंने आरएएस परीक्षा की तैयारी भी शुरू कर दी। अगस्त 2018 में उन्होंने प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण हुईं तो अंतिम परीक्षा की तैयारी के लिए हौसला बढ़ा। नका मुख्य कार्य जोधपुर के प्रमुख मार्ग पाओटा रोड पर झाडू लगाना था। जोधपुर नगर निकाय के नियमानुसार, उनकी ड्यूटी प्रतिदिन सुबह 6 बजे से दोपहर 2 बजे की होती थी। इसके एवज में उन्हें प्रतिमाह 12,500 रुपये मिलते थे। यही उनके और बच्चों के भरण-पोषण करने का एकमात्र साधन था।
आशा बताती हैं, "मैंने महसूस किया कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। जो मायने रखता है वह है रवैया। मैंने तानों और भद्दी टिप्पणियों को नजरअंदाज किया और खुद को काम में व्यस्त रखा। मैं सुबह 5 बजे उठती थी। काम से लौटने के बाद ज्यादा से ज्यादा पढ़ाई की। मोबाइल ऑनलाइन एप्लिकेशन का उपयोग से लेकर नोट्स पाने तक, जो भी कर सकती थी, हालात को देखते हुए मैंने खूब पढ़ाई की। मैं एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में समाज को न्याय दिलाने के लिए काम करना चाहती हूं। मेरा प्रयास सिर्फ मेरे समुदाय के लिए नहीं है, बल्कि अन्याय से पीड़ित हर व्यक्ति के लिए है।”
आशा कहती हैं कि उनके दोनों बच्चों ने परीक्षा की तैयारी में उनकी बहुत मदद की। उनकी 21 वर्षीय बेटी पल्लवी जो स्नातक अंतिम वर्ष में है और 19 साल का बेटा ऋषभ दूसरे वर्ष में है। जब भी उन्हें अपनी तैयारी पर संदेह होता, बच्चे उनका उत्साह बढ़ाते रहे। उन्होंने कहा, “मुझे लगा कि मैं आरएएस परीक्षा पास नहीं कर पाऊंगी, क्योंकि अन्य लोग दिन भर पढ़ाई करते थे। लेकिन मेरे बच्चों ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया और मुझे यह विश्वास दिलाया कि सफलता निकट है।”
आशा को उम्मीद है कि उनकी सफलता दूसरों को, खासकर अकेली महिलाओं को बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित करेगी। वह कहती हैं, “हमें कभी भी खुद को कमतर नहीं आंकना चाहिए। जब तक हम अपनी ताकत का अहसास नहीं करेंगे, अपना सम्मान ही नहीं कर पाएंगे और न ही कुछ हासिल कर पाएंगे। कड़ी मेहनत का फल हमेशा मिलता है।” अगले दो वर्षों में आशा आरएएस अधिकारी के रूप में कार्यभार संभालने से पहले जयपुर के ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल में प्रशिक्षण लेंगी। वह अभी भी आईएएस बनने का सपना देखती हैं, जो शायद आरएएस में 15 साल के सेवा अनुभव के बाद पूरा हो सकता है।
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