दिल्ली सरकार ने दिल्ली दंगा व किसानों के मामले में पैरवी के लिए वकीलों का क पैनल बनाया है जिसे उपराज्यपाल ने खारिज कर दिया है। अब दिल्ली सरकार फिर से अपने अधिकारों का राग अलापकर मामले को बेवजह का तूल देने में जुटी है
तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब समेत कई राज्यों के किसानों का धरना प्रदर्शन जारी है। इस बीच कृषि कानून विरोधी प्रदर्शन से जुड़े मामले में वकीलों के पैनल को लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) अनिल बैजल और दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी सरकार में विवाद बढ़ गया है।
दरअसल दिल्ली सरकार अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का हवाला दे रही है, जबकि राजनिवास संसद में पास हो चुके राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र शासन ( संशोधन ) विधेयक 2021 के आधार पर काम कर रहा है।
एलजी अनिल बैजल के बार-बार कहने पर भी केजरीवाल सरकार ने कैबिनेट की बैठक में दिल्ली पुलिस के पैनल को दरकिनार कर अपने अधिवक्ता पैनल पर मुहर लगा दी हो, इस निर्णय को मंजूरी मिलने की संभावना न के बराबर है।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कैबिनेट के फैसले को उपराज्यपाल अनिल बैजल राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं और अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए दिल्ली पुलिस के अधिवक्ता पैनल को मंजूरी दे सकते हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली सरकार का निर्णय कहीं न कहीं पंजाब विस चुनाव को ध्यान में रखकर लिया गया है। इसी के चलते सरकार शुरू से ही आंदोलन का समर्थन करती रही है और हर कदम पर कृषि कानूनों का विरोध करने वालों के साथ भी खड़ी रही है। दिल्ली पुलिस के अधिवक्ता पैनल का विरोध करके भी वह एक बार फिर यह संदेश देने में कामयाब रही ही है कि वह केंद्रीय कृषि कानूनों का समर्थन नहीं करती और इनका विरोध करने वालों के साथ है।
विधेयक में हैं यह प्रविधान
राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र शासन ( संशोधन ) विधेयक 2021 में ये प्रविधान है कि दिल्ली राज्यपाल होगा। विधानसभा से पारित किसी भी विधेयक पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार इसमें राज्यपाल को दिया गया है। दिल्ली सरकार को विधायिका से जुड़े फैसलों पर उपराज्यपाल से 15 दिन पहले व प्रशासनिक मामलों पर सात दिन पहले मंजूरी लेनी होगी। सरकार को शहर से जुड़ा कोई निर्णय लेने से पूर्व उपराज्यपाल से सलाह लेनी होगी। कोई कानून सरकार खुद नहीं बना सकेगी।
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