ताइवान की सीमा में प्रवेश करते चीनी विमान (फाइल फोटो)
आदर्श सिंह
ताइवान को हड़पने की साजिश रच चुका चीन मौके की तलाश में है। अमेरिका समेत तमाम देशों के रक्षा विशेषज्ञ इस तैयारी को देख-समझ रहे हैं। ताइवान भी यह बात अच्छे से जानता है। उसकी अपनी तैयारी और मनोबल है। वह घुटने नहीं टेकने वाला। यह पूरा प्रकरण विश्व के लिए चिंताजनक
सिर्फ दो दशक हुए हैं, अमेरिकी रक्षा विभाग ने 2000 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि चीन की जनमुक्ति सेना (पीएलए) धीरे-धीरे अपना आधुनिकीकरण कर रही है और युद्ध के आधुनिक तरीके सीख रही है। इसकी जल, थल और वायु सेना के पास काफी हथियार हैं लेकिन वे पुराने किस्म के हैं, साइबर युद्ध की क्षमता अभी शैशव काल में है और अंतरिक्ष युद्ध की क्षमता बासी और बेकार हो चुकी तकनीकों के सहारे है। चीनी फौज का प्रशिक्षण भी कुछ खास नहीं है और अगर चीन कुछ ठीक-ठाक हथियार बना ले तो भी पीएलए की ढांचागत खामियों को जब तक दूर नहीं किया जाता, उसका विश्वस्तरीय सेना के रूप में उभरना मुश्किल है।
और सिर्फ बीस साल बाद 2021 में अमेरिकी फौज की इंडो पैसिफिक कमान के कमांडर एडमिरल फिलिप डेविडसन ने सेवानिवृत्ति से पूर्व इसी साल मार्च में अमेरिकी सीनेट के समक्ष स्वीकार किया कि अमेरिका अब चीन पर अपनी सामरिक बढ़त खोता जा रहा है और वह छह साल के अंदर यानी 2027 तक किसी भी समय ताइवान पर आक्रमण कर उस पर कब्जा कर सकता है। उन्होंने खासतौर से ताइवान पर चीनी हमले के खतरे का जिक्र करते हुए कहा कि खतरा आसन्न है और इसी दशक में, या कहें कि अगले छह साल के भीतर ही ऐसा हो सकता है। एडमिरल डेविडसन की जगह लेने वाले इंडो पैसिफिक कमान के नए कमांडर एडमिरल जान एक्विलीनो ने भी कहा है कि ताइवान पर चीनी हमले के खतरे से निबटने के लिए अमेरिका की सैन्य क्षमताओं में बड़े पैमाने पर इजाफा करने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ताइवान के खिलाफ चीन के सैन्य बल के प्रयोग का खतरा उससे कहीं ज्यादा निकट है, जितना हम समझते हैं। पेंटागन के लिए प्रतिष्ठित थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में वार गेम्स यानी भविष्य में होने वाले युद्धों का पूर्वाभ्यास करने वाले पूर्व रक्षा अधिकारी डेविड ओचमानेक बताते हैं कि उनके वार गेम्स में ताइवान को लेकर होने वाले युद्ध की स्थिति में आसार अच्छे नहीं हैं।
जाहिर-सी बात है कि विश्व में इतने अभूतपूर्व शस्त्रीकरण के उदाहरण कम ही मिलते हैं और जब-जब ऐसा हुआ है, विश्व को भयानक युद्धों का सामना करना पड़ा है। यह चीनी शस्त्रीकरण का ही नतीजा है कि ताइवान के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। चीनी सेना के विमान आए दिन ताइवानी वायुक्षेत्र का अतिक्रमण कर रहे हैं। 2020 में चीनी युद्धक विमान लगभग नियमित रूप से ताइवानी वायु रक्षा पहचान क्षेत्र (एअर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन या एडीआईजेड) में घुसते रहे। एक बार तो 37 विमानों ने एक साथ ताइवान स्ट्रेट की मध्य रेखा के पास उड़ान भरी। यह क्रम 2021 में भी जारी है। जनवरी में एक साथ 13 चीनी लड़ाकू विमानों ने ताइवानी एडीआईजेड का अतिक्रमण किया। अप्रैल में चीन ने अपने दोनों विमानवाहक पोतों को युद्धाभ्यास के बहाने ताइवानी जलक्षेत्र के पास तैनात कर दिया। इसके चंद दिनों बाद एक साथ 25 चीनी विमान ताइवानी एडीआईजेड में दाखिल हो गए। उकसावे की यह कार्रवाई इतनी गंभीर थी कि ताइवान को खतरे के मद्देनजर अपनी मिसाइल डिफेंस प्रणाली को सक्रिय करना पड़ा और युद्धक विमान भेजने पड़े। चीनी युद्धक विमानों ने 2020 में कुल 2,900 बार ताइवानी वायुक्षेत्र का अतिक्रमण किया।
आएदिन की इन धमकी भरी कार्रवाइयों के पीछे चीन की मंशा ताइवान का मनोबल तोड़ने की है। एक प्रयास यह है कि ताइवान को इस कदर भयभीत कर दिया जाए कि वह स्वत: ही घुटने टेक दे। या फिर वह इसे रोजाना की कार्रवाई समझकर अनदेखा करता रहे और इस बीच चीन मौके का फायदा उठाकर सफल हमले में कामयाब हो जाए। सितबंर, 2020 में ताइवानी जलक्षेत्र के पास चीनी युद्धाभ्यास के दौरान चीनी मीडिया ने खुले तौर पर कहा कि यह सिर्फ चेतावनी नहीं है, यह ताइवान पर कब्जे का रिहर्सल है। एक अमेरिकी मालवाहक विमान के ताइवान में उतरने के बाद चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने सीधी धमकी देते हुए कहा कि चीन अब अपने सैन्य विमानों को सीधे ताइवान के हवाई क्षेत्र के ऊपर से गुजरने की अनुमति देने पर विचार कर रहा है।
तानाशाह जिनपिंग का विस्तारवाद
हमले की आशंकाओं को चीनी तानाशाह शी जिनपिंग के उकसावे वाले बयानों से भी शह मिली है। माओ की तरह आजीवन चीनी तानाशाह बनने की ओर बढ़ चुके राष्टÑपति जिनपिंग के लिए ताइवान पर कब्जा सर्वोच्च प्राथमिकता है। दो कार्यकाल से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं रहने के कानून को शी जिनपिंग 2018 में ही खत्म कर चुके हैं। उन्हें आजीवन सत्ता में बने रहने के लिए कुछ खास करना ही पड़ेगा। सड़सठ साल के हो चुके जिनपिंग चीन के कथित एकीकरण के सपने को अगली पीढ़ी के हाथ नहीं छोड़ना चाहते। लिहाजा ताइवान पर कब्जे की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। चीन के रक्षा व सैन्य विशेषज्ञों ने अक्तूबर, 2019 में प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की फेलो ओरियाना स्काइलर मैस्त्रो के साथ एक बैठक में इसके स्पष्ट संकेत दिए थे। इन विशेषज्ञों का मानना था कि ताइवान का चीन के साथ एकीकरण जिनपिंग के राष्ट्रपति रहने के दौरान ही होगा। अमेरिका के एक पूर्व खुफिया अधिकारी और आजकल जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में प्रो. लोन्नी हेनली के अनुसार उन्हें लगता है कि चीन सरकार ने ताइवान पर सफलतापूर्वक हमले की क्षमता हासिल करने के लिए 2020 तक की समयसीमा तय की थी। उन्हें लगता है कि चीन का अब मानना है कि उसने यह क्षमता हासिल कर ली है। मास्त्रो भी इस दावे की पुष्टि करती नजर आती हैं। उनके अनुसार चीनी सैन्य नेताओं ने उनसे कहा कि वे एक साल के अंदर ताइवान पर सफलतापूर्वक कब्जे की क्षमता हासिल कर लेंगे।
रैंड कॉर्पोरेशन में कार्यरत एक पूर्व रक्षा अधिकारी कहते हैं कि अगर आप चीनी हथियारों और उनकी मिसाइलों व तमाम चीजों को देखें तो स्पष्ट है कि लगभग प्रत्येक चीज ताइवान पर हमले के उद्देश्य से विकसित की गई है। चीन पर केंद्रित, आर्थिक और राजनीतिक मामलों का पूर्वानुमान लगाने वाली एक कंपनी इनोडो इकोनॉमिक्स की मुख्य अर्थशास्त्री डियाना चोयलेवा के अनुसार ताइवान पर औचक हमला संभव नहीं है। लेकिन यह चीन की रणनीति का अहम अंग है कि लगातार उकसावे वाली कार्रवाइयों से प्रतिरोध की इच्छाशक्ति को कमजोर कर मौका मिलते ही आक्रमण कर उसके औचित्य को वैध ठहरा दिया जाए। चीन जानता है कि वह इंतजार कर सकता है और फिलहाल ताइवान पर कब्जे के लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह छद्म युद्ध पर जोर दे रहा है। इनोडो ने मार्च 2021 में ताइवान पर कब्जे के प्रयासों को लेकर चीन व अमेरिका में युद्ध की संभावना को बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया जबकि जनवरी 2019 में ताइवान को लेकर युद्ध की संभावना सिर्फ दस फीसद थी।
भारत में पूर्व अमेरिकी राजदूत व प्रतिष्ठित राजनयिक रॉबर्ट डी. ब्लैकविक ने फिलिप जेलिकोव के साथ हाल ही में एक चर्चित आलेख में लिखा है कि 2020 के दौरान वे इस नतीजे पर पहुंचे कि ताइवान क्षेत्र में संकट बहुत तेजी से गंभीर हो रहा है और यह संभावित युद्ध शुरू होने के लिहाज से विश्व का सबसे संवेदनशील स्थान बन गया है। इस युद्ध में चीन, अमेरिका व जापान सहित विश्व की कई बड़ी शक्तियां शामिल हो सकती हैं और वैश्विक स्तर पर इसके नतीजे भयावह होंगे। उनके अनुसार चीन वह सब कुछ कर रहा है, जो युद्ध छेड़ने से पहले कोई भी देश करता है। सशस्त्र संघर्ष की संभावना के मद्देनजर वह अपनी जनता को तैयार कर रहा है। सैन्य रूप से वह लगातार युद्धाभ्यासों के जरिए जल, थल, वायु, साइबर और अंतरिक्ष युद्ध की अपनी खामियों को दूर करते हुए तैयारियों को धार दे रहा है। अपनी जानकारी के आधार पर हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पूर्व के दशकों के मुकाबले फिलहाल ताइवान पर चीनी हमले का खतरा बहुत ज्यादा है।
इसके बावजूद अब भी बहुत से शांतिकामी विद्वानों का मानना है कि युद्ध के आसार नहीं हैं। पर वे भुलावे में हैं। ताइवान पर आसन्न चीनी हमले के खतरे को रेखांकित करते हुए ब्लैकविल और जेलिकोव कहते हैं कि युद्ध कभी बताकर नहीं आता। उनके अनुसार 1962 में भी ज्यादातर विशेषज्ञों ने क्यूबा में रूसी मिसाइलों की तैनाती की संभावना को खारिज कर दिया था। 1973 में भी ज्यादातर विशेषज्ञों, जिनमें इज्राएली भी शामिल थे, ने इस संभावना को खारिज कर दिया था कि मिस्र और सीरिया इज्राएल पर हमला करने वाले हैं। इसी तरह 1979 में भी ज्यादातर विशेषज्ञों ने अफगानिस्तान पर सोवियत हमले की संभावना को कोई तवज्जो नहीं दी थी।
ब्लैकविल और जेलिकोव बस इस बात का जिक्र करना भूल गए कि चीन ने किस तरह क्यूबा मिसाइल संकट का फायदा उठाया था। दुनिया का ध्यान जब रूस व अमेरिका के बीच युद्ध की संभावना पर केंद्रित था तभी चीन ने भारत पर हमला कर हिमालय को लहूलुहान कर दिया। ताइवान इन खतरों से बखूबी वाकिफ है। एक ताइवानी अधिकारी के अनुसार हमें पता है कि चीन बस मौके की तलाश में है। अब यह मौका छह साल में आए या छह महीने में, लेकिन हम इतना निश्चित रूप से जानते हैं कि चीन इसकी योजना बना रहा है। हम हर स्थिति के लिए तैयार हैं।
घुटने नहीं टेकेगा ताइवान
ताइवान आसानी से घुटने टेक देने वालों में से नहीं है। ताइवानी विदेश मंत्री जोसेफ वू ने अप्रैल के महीने में स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा था, यदि चीन ने हमला किया तो हम आखिरी दिन तक लड़ेंगे। उनके देश के पास अपनी रक्षा करने की इच्छाशक्ति है। इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए कि अगर हम पर युद्ध थोपा गया तो हम आखिरी सांस तक लड़ेंगे और आखिरी दिन तक अपनी रक्षा करेंगे। दोनों देशों में रक्षा बजट से लेकर सैनिकों व हथियारों की संख्या में जमीन-आसमान का अंतर है। लेकिन ताइवान जानता है कि उसकी उन्नत प्रौद्योगिकी और पहाड़ों व जंगलों से घिरी उसकी धरती उसका सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है। चीनी हमले से मुकाबले के लिए उन्होंने इन पहाड़ों में सुरंगें और बंकर बना रखे हैं। इससे तमाम सावधानियों से बनाई गई कब्जे की चीनी योजना खाक में मिल सकती है। चीन के लिए ताइवान दूसरा विएतनाम साबित हो सकता है जब उसे मुंह की खाकर वापस लौटना पड़ा था।
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