अपनी कुर्सी बचाने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नए हथकंडे अपना रही हैं। बिना चुनाव लड़ सत्ता में बने रहने के लिए उन्होंने एक राजनीतिक तिकड़म लगाई है। उन्होंने राज्य विधानसभा में मंगलवार को विधान परिषद का गठन करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, जो बहुमत से पारित हो गया।
टीएमसी की ओर से विधानसभा में संसदीय मंत्री पार्थ चटर्जी ने विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव पेश किया। लेकिन इस पर बहस के दौरान मुख्यमंत्री सदन में मौजूद नहीं थीं। प्रस्ताव के पक्ष में 196 विधायकों ने वोट दिए, जबकि 69 ने इसका विरोध किया। इस तरह, यह प्रस्ताव पारित हो गया। अब इस प्रस्ताव को राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। इसके बाद इसे केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। केंद्र की मंजूरी के बाद इसे संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा से बहुमत से पास कराना होगा। इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी भी जरूरी होगी।
पार्टी नेताओं को खुश करने का जुगाड़
दरअसल, चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने घोषणा की थी कि जिन प्रतिष्ठित लोगों और वरिष्ठ नेताओं को विधानसभा में टिकट नहीं मिला, उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया जाएगा। टीएमसी ने इसे अपनी चुनावी घोषणापत्र में भी जगह दी थी। 18 मई को मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने के एक पखवारे के भीतर ही ममता बनर्जी ने विधान परिषद गठन के कैबिनेट के फैसले को मंजूरी दे दी। प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने कहा, ‘‘हम विधान परिषद के खिलाफ हैं, क्योंकि विधान परिषद के माध्यम से राजनीतिक रूप से खारिज किए गए लोगों को पिछले दरवाजे सदन में भेजने की कोशिश की जा रही है।’’
यह है मौजूदा व्यवस्था
बंगाल में विधान परिषद की व्यवस्था नहीं है। यहां केवल 294 सदस्यीय विधानसभा है। यदि विधान परिषद बनाने का फैसला लिया गया तो अनुमान के मुताबिक इसमें 98 सदस्य हो सकते हैं, क्योंकि विधान परिषद में सदस्यों की संख्या विधानसभा सदस्यों की सख्या से एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती। बंगाल में 1952 से 1969 तक विधान परिषद था। जब दूसरी संयुक्त मोर्चा सरकार सत्ता में आई तो एक विधेयक पारित करके उच्च सदन की व्यवस्था को खत्म कर दिया। अभी देश के 6 राज्यों में ही द्विसदनात्मक व्यवस्था है, जिनमें बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं।
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