ईसाइयत
बच्चों के यौन शोषण के आरोपों से घिरा चर्च। (प्रकोष्ठ में) पोप फ्रांसिस (बाएं) और पोलैंड के आर्चबिशप पोलाक (दाएं)
हाल ही में चर्च में यौन शोषण पर जारी रपट में पोलैंड के पादरियों की बच्चों के शारीरिक शोषण की सचाई एक बार फिर बाहर आने पर आर्चबिशप ने माफी मांगी
वेटिकन के झंडे तले दुनियाभर में रोमन कैथोलिक चर्च में ननों, पादरियों के दोहन-दमन, ननों के शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न, पादरियों के पीडोफिलिक बर्ताव यानी बाल यौन शोषण में संलिप्तता के अनेक उदाहरण लगातार देखने में आते रहे हैं। बिशपों, पादरियों के अकूत धन—बल और राजनीतिक पैठ के समाचार चर्चाएं भारत सहित कई देशों से प्राप्त होते रहे हैं। पोप ऐसे और इस जैसे कई मामलों में सार्वजनिक रूप से माफी भी मांग चुके हैं। लेकिन ऐसी घटनाएं थमने की बजाय लगातार बढ़ती गई हैं। भारत में नन लूसी के साथ वेटिकन के अ—न्याय की बात तो अभी हाल की है। नन लूसी को कॉन्वेंट छोड़कर जाने का कह दिया गया, क्योंकि उसने जालंधर के तत्कालीन बिशप फ्रेंको मुलक्कल के द्वारा किए गए यौन शोषण का मुखर विरोध किया था।
पोलैंड के चर्च से आई ताजा खबर चौंकने वाली है, अपने जबरदस्त पैमाने की वजह से। एक रपट के अनुसार, पोलैंड के चर्च में 292 पादरियों पर 300 बच्चों के यौन शोषण में संलिप्त होने का आरोप है। और यह आंकड़ा 1958 से 2020 के बीच का है। रपट के बाहर आने पर पोलैंड के चर्च ने ही इसे शर्मनाक नहीं बताया है बल्कि आर्चबिशप ने माफी भी मांगी है।
पोलैंड की बात करें तो वह एक कैथोलिक देश है। पादरियों को खास लाभ और सुविधाएं मिलती रही हैं वहां। वेटिकन ने वहां से शोषण की खबरें मिलने पर जांच बिठाई और कुछ बड़े लोगों को चिन्हित किया कि उन्होंने इस तरफ घोर लापरवाही दिखाई, लिहाजा वे चर्च के आधिकारिक समारोहों से दूर रहें।
गत 28 जून 28, 2021 को चर्च में बच्चों के यौन शोषण पर एक रिपोर्ट सार्वजनिक हुई थी। इसी रिपोर्ट में है कि 1958 से लेकर 2020 तक करीब 292 पादरियों ने 300 छोटी उम्र के लड़के—लड़कियों का यौन शोषण किया। इनमें लड़के हैं तो अनेक लड़कियां भी हैं। साल 2018 के मध्य से 2020 तक के ही अनेक मामले हैं, जिनकी चर्च से सीधी शिकायत भी की गई।
अनेक पीड़ित, उनके परिवार, पादरी सहित मीडिया तथा अनेक सूत्रों के हवाले से तैयार की गई इस रपट के प्रकाश में आने के बाद पोलैंड के कैथोलिक आर्चबिशप वोजसिक पोलाक शर्मिंदा दिखे, उन्होंने सताए गए पीड़ितों से माफ़ी मांगी। उन्होंने पीड़ितों से भी उम्मीद जताई कि वे चर्च के दोषी पादरियों को माफ कर देंगे। वे पहले भी इन्हीं 'गुनाहों' की माफ़ी मांग चुके हैं।
इन 300 मामलों में से 144 को वेटिकन के ‘कॉन्ग्रिगेशन ऑफ डॉक्ट्रिन ऑफ फेथ’ की शुरुआती जांच में सही माना है। बताया गया कि कुल 368 मामले चर्च के सामने रखे जा चुके हैं जिनमें से 186 की जांच जारी है। करीब 38 मामले ऐसे हैं जिन्हें चर्च के मुख्यालय वेटिकन ने झूठे करार दिया है। यौन प्रताड़ना के ऐसे सभी मामलों की जांच में लगे चर्च के एक बड़े अधिकारी का कहना है कि पहले 2019 में भी ऐसी ही एक रिपोर्ट जारी हुई थी।
उस रिपोर्ट में 1990 से 2018 के बीच के मामले दिए गए थे। इसमें सिर्फ दो साल की 368 घटनाओं का उल्लेख था। अब 28 जून को सामने आई रिपोर्ट में केवल उसके बाद सामने आई घटनाओं को भी शामिल किया गया है। हैरानी की बात है कि इनमें से 42 पादरियों के नाम पिछली रिपोर्ट में भी थे और अब इस दूसरी रिपोर्ट में भी हैं।
यूरोप के अनेक देशों के चर्च से ऐसी घटनाएं छनकर ही बाहर आती रही हैं। कारण यह कि चर्च की ताकतवर क्लर्जी के खिलाफ आवाज उठाने की हर कोई हिम्मत नहीं कर पाता। जो कर पाता है उसका फिर नाम तक ओझल हो जाया करता है। भारत के संदर्भ में बात करें तो करीब 30 साल पहले का नन अभया हत्याकांड पिछले साल ही सुलझा है। केरल में नन अभया की लाश संदिग्ध परिस्थितियों में बरामद की गई थी कॉन्वेंट के कुंए से। उसने संभवत: एक रसूखदार पादरी को एक नन के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था। और अभी इसी जून का नन लूसी का जो हाल हुआ है वह किसी से छुपा नहीं है।
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