पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद से शुरू हुई “लक्षित हिंसा” प्रतिदिन एक नए आयाम स्थापित कर रही है। मामला हुगली जिले का है, जहां तृणमूल कांग्रेस की सांसद अपरूपा पोद्दार की उपस्थिति में दलित समुदाय के 200 लोग सिर मुंडवाकर और गंगाजल छिड़कर तृणमूल कांग्रेस में वापस हुए।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद से शुरू हुई “लक्षित हिंसा” प्रतिदिन एक नए आयाम स्थापित कर रही है। मामला हुगली जिले का है, जहां तृणमूल कांग्रेस की सांसद अपरूपा पोद्दार की उपस्थिति में दलित समुदाय के 200 लोग सिर मुंडवाकर और गंगाजल छिड़कर तृणमूल कांग्रेस में वापस हुए। अभी 2 सप्ताह पहले भी बीरभूम जिले में 300 लोगों ने भूख हड़ताल करके टीएमसी में वापसी की थी।
पश्चिम बंगाल में ऐसी घटनाएं अब आम हैं। टीएमसी की सत्ता में वापसी के बाद से भाजपा कार्यकर्ताओं—समर्थकों के साथ मारपीट, हत्या व उनकी संपत्ति को नष्ट करना, महिला समर्थकों के साथ दुराचार की अनगिनत घटनाएं, इसलिए हुईं क्योंकि उन्होंने सत्ताधारी दल के खिलाफ मत दिया था।
बात यहीं तक आकर नहीं रुकी। भय का वातावरण कुछ इस तरह से है कि भाजपा के समर्थक—कार्यकर्ता माइक लगाकर गांव में घूमकर टीएमसी के लोगों से माफी मांगते हैं। ऐसा माहौल कमोबेश पूरे राज्य में है। इस पूरे मामले पर विश्वभारती विश्वविद्यालय शान्ति निकेतन में प्रोफेसर चक्रधर त्रिपाठी कहते हैं कि अगर लोगों को यहां रहना और जीना है तो उनको तृणमूल कांग्रेस का दामन थामना ही पड़ेगा। यही एकमात्र रास्ता है। तृणमूल कांग्रेस द्वारा ऐसे लोगों को चिन्हित कर उनका रोजगार छीना जा रहा है, कल्याणकारी योजनाओं से बेदखल किया जा रहा है, यहां तक कि कोविड का टीका तक लगाने से वंचित किया जा रहा है। उनके नरेगा के कार्ड छीन लिए गए हैं और उनको अपने घरों तक में प्रवेश करने नहीं दिया जा रहा।
राज्य में इस तरह की तमाम घटनाओं पर राज्यपाल ने न केवल रोष व्यक्त किया बल्कि कानून—व्यवस्था को छिन्न—भिन्न बताया है। उन्होंने कहा कि राज्य “अराजक” स्थिति में पहुँच चुका है। अकल्पनीय स्तर पर प्रतिशोधात्मक हिंसा हो रही है।
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