अरविंद
चीन की बौखलाहट की असल वजह यही है कि जो बिडेन, जिनके बारे में दुनिया भर में कहा जा रहा था कि चीन के प्रति उनकी नीतियां डोनाल्ड ट्रंप की तुलना में नरम रहेंगी, वह तो ट्रंप से भी दो कदम आगे निकले। फर्क सिर्फ इतना है कि ट्रंप थोड़ा कहो-ज्यादा समझो की शास्त्रीय कूटनीति में भरोसा नहीं करते थे। लेकिन बिडेन कूटनीति के उसी पुराने शास्त्रीय तौर-तरीके में भरोसा करते हैं।
महामारी के दुष्चक्र में दुनिया को उलझा देने के बाद खुद भी चक्रव्यूह में फंसा ड्रैगन इससे निकल पाएगा या नहीं, इसे लेकर वैश्विक स्तर पर एक संशय की स्थिति बन गई थी। कारण, अगर चीन विरोधी धुन पर लयबद्ध गाने की रिकॉडिंग होनी थी तो इसमें सवाल तो लीड सिंगर का था जो केवल और केवल अमेरिका ही हो सकता था। संशय इसलिए था कि ट्रंप की गायन शैली अलग और बिडेन की अलग। एक धूम-धड़ाके के साथ गाने का आदी तो दूसरा धीर-गंभीर शास्त्रीयता के साथ। लेकिन बुनियादी बात तो सुर-ताल की होती है और उसको लेकर ही संशय था। लेकिन अब कोई दुविधा नहीं रही, यह ट्रंप के समय जैसा था, बिडेन के समय भी वैसा ही है। तो मानकर चलिए कि दुनिया में चीन विरोधी यह गाना लोकप्रियता के झंडे गाड़ने जा रहा है। तीन महीनों की अपेक्षाकृति शांति के बाद बिडेन प्रशासन ने धीरे-धीरे डोनाल्ड ट्रंप का सुर पकड़ लिया है और अब दुनिया में जगह-जगह तरह-तरह के साज कसे-दुरुस्त किए जा रहे हैं और उसकी प्रतिक्रिया चीन में कैसी हो रही है, यह देखना जरूरी है।
चीनी बौखलाहट का मतलब
चीन में जबर्दस्त बौखलाहट है। वहां के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिका को परमाणु युद्ध की धमकी दी है। अखबार के संपादक हू शीजिन ने अपने लेख में कहा, ‘हमें अमेरिका के साथ बड़े टकराव के लिए तैयार रहना चाहिए’ और अमेरिका में सामरिक खौफ पैदा करने के लिए चीन के परमाणु कार्यक्रम को और बेहतर करना जरूरी है। शीजिन ने कहा कि ‘चीन के परमाणु हथियारों की संख्या इतनी होनी चाहिए कि चीन के साथ सैन्य टकराव की बात सोचकर ही अमेरिका के सहयोगी कांप उठें’। इसके साथ ही, शीजिन लंबी दूरी तक परमाणु हथियारों के साथ मार करने में सक्षम डॉंगफेंग-41 जैसी मिसाइलों की धमकी देते हुए कहते हैं कि ऐसी मिसाइलों की संख्या बढ़ानी चाहिए क्योंकि ‘अमेरिका के साथ टकराव में डीएफ-41, जेएल-2 और जेएल-3 हमारे सामरिक हौसले की रीढ़ होंगी। अगर चीन के प्रति अमेरिका की आक्रामकता ऐसी ही रही तो हमें ताकत का इस्तेमाल तो करना ही होगा, अगर उन्होंने हमें शांत बैठ जाने के लिए बाध्य करने का खतरा उठाया तो उन्हें असहनीय जोखिम उठाने के लिए तैयार रहना होगा।’ लेकिन इतना कुछ कहने के बाद वह यह भी जोड़ते हैं कि ‘अपनी परमाणु मिसाइलों की संख्या को बढ़ाकर हम अमेरिका के साथ अपने विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से निपटा सकेंगे और गोला-बारूद चलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।’
अमेरिका को धमकी देने के चीन के इस अंदाज में नया कुछ भी नहीं।
पिछले साल भी जब कोरोना वायरस को लेकर ट्रंप प्रशासन ने त्योरियां चढ़ाई थीं तो चीन ने ऐसी ही धमकी देते हुए कहा था कि अगर अमेरिका ने उकसाया तो चीन चुप नहीं बैठेगा और इसका खामियाजा पूरे क्षेत्र को भुगतना होगा क्योंकि यह टकराव बड़ा होगा जो किसी भी स्तर तक जा सकता है। तब भी चीन की ओर से आसपास के छोटे देशों से लेकर अमेरिका के लिए संदेश था, इस बार भी है। चीन जानता है कि उसे घेरने के लिए अमेरिका उसके पड़ोसी देशों को मोहरे के तौर पर इस्तेमाल करेगा, इसलिए उसका स्पष्ट संदेश अपने पड़ोसियों को है कि अमेरिका के झांसे में आकर उससे दुश्मनी मोल लेने की जुर्रत नहीं करें। वहीं, अमेरिका के लिए संदेश है कि अगर उसने चीन को पीछे धकेलते हुए उसकी पीठ दीवार से सटाने की कोशिश की तो फिर उसके सामने हमला बोलने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहेगा और फिर वह किसी भी हद तक जाने से नहीं हिचकेगा। फिर, वह यह भी कहता है कि वह अपने परमाणु हथियारों को बढ़ाना चाहता है ताकि अमेरिका के साथ विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से निपटाने की क्षमता हासिल कर सके। यानी वह अमेरिका के साथ उलझने से बचना चाहता है।
फिलहाल दुनिया में कुल मिलाकर लगभग 13,500 परमाणु हथियार हैं जिनमें से 9,500 विभिन्न देशों में सेनाओं के पास हैं और बाकी के हथियार अलग-अलग संधियों के तहत खत्म किए जाने हैं। इनमें से 90 फीसदी अमेरिका और रूस के पास हैं। अमेरिका के पास सबसे ज्यादा 5,800, रूस के पास 6,375 और चीन के पास 320 परमाणु हथियार हैं। सोचने वाली बात है कि एक न्यूनतम संख्या के बाद क्या वाकई इस बात का कोई मतलब है कि किसके पास कितने परमाणु हथियार हैं? दुनिया में जितने परमाणु हथियार हैं, उनसे एक नहीं कई बार पूरी दुनिया का खात्मा हो सकता है। खैर, सोचने वाली बात यह है कि अभी यह बौखलाहट क्यों?
उखड़ रहा है गड़ा मुर्दा
हाल-फिलहाल चीन एक बार फिर दवाब में है। जिस अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट की कुछ बातों के लीक हो जाने के कारण दुनियाभर में कोहराम मचाने वाले कोरोना वायरस के स्रोत की जांच की मांग उठी है, उसी रिपोर्ट के एक हिस्से को 7 जून को वॉल स्ट्रीट जर्नल ने प्रकाशित किया है जिसमें गोपनीय दस्तावेजों के हवाले से कहा गया है कि कैलिफोर्निया की लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैबोरेटरी ने कोविड-19 के जीनोम के अध्ययन के बाद अमेरिकी सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी, उसी के आधार पर अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का मानना है कि जांच होनी चाहिए कि वायरस वुहान के लैब से दुर्घटनावश निकला या फिर किसी संक्रमित जानवर के संपर्क में किसी इंसान के आने से इसका प्रसार हुआ। इस रिपोर्ट पर ग्लोबल टाइम्स ने तत्काल प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि इसमें कोई नई बात नहीं है और वायरस के वुहान लैब से निकलने की बात राजनीति से प्रेरित है जिसे कुछ ‘तथाकथित’ वैज्ञानिक फैला रहे हैं जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन को अब तक ऐसा कुछ भी नहीं मिला है।
दबा दी दुखती रग
दरअसल, चीन की बौखलाहट की बड़ी वाजिब वजह है। पिछले चंद दिनों में अमेरिका की ओर से ऐसे कई कदम उठाए गए हैं जो चीन को परेशान किए जा रहे हैं। उनमें एक तो यही है कि राष्ट्रपति जो बिडेन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को कहा है कि वे 90 दिन के भीतर जांच करके रिपोर्ट दें कि कोविड-19 वायरस का स्रोत कोई जानवर था या फिर यह लैब से दुर्घटनावश निकला। चीन की चिंता यह है कि वह हजार इनकार कर ले, लेकिन अगर इसी तरह वायरस के स्रोत को लेकर अलग-अलग एजेंसियों की रिपोर्ट उसके शामिल होने की ओर इशारा करेंगी तो उसके लिए बचाव का रास्ता संकरा होता चला जाएगा। और फिर मिट्टी हटाएंगे, तो वही निकलेगा जो उसमें दबा होगा।
इस बीच, वायरस के स्रोत पर खुफिया एजेंसियों से रिपोर्ट तलब करने के बिडेन प्रशासन के फैसले के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि चीन के बारे में आखिरकार उनका अंदाजा सही ही था और अब तो हर कोई, मान रहा है कि वायरस वुहान से ही निकला। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि चीन पर इसके लिए 10 खरब डॉलर का जुमार्ना लगाया जाना चाहिए। चीन पर इसके लिए किसी तरह का जुमार्ना लगाना अभी बेशक दूर की कौड़ी है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ऊन के गोले में बस धागे के छोर को खोजने की देर होती है, बाकी धागे तो परत-दर-परत खुलते चले जाते हैं। चीन को इसी की चिंता सता रही होगी। इसके अलावा, बिडेन प्रशासन ने हाल ही में कई और ऐसे कदम उठाए हैं जो यह बताने के लिए काफी हैं कि कम से कम चीन के मामले में वह उसी सुर-ताल पर चल रहा है जो ट्रंप प्रशासन ने साधे थे।
ताइवान में घुसे चीनी विमान
एक के बाद एक कई देशों को निगल चुका विस्तारवादी चीन 2.4 करोड़ आबादी वाले लोकतांत्रिक देश ताईवान को अपना इलाका मानता है और इसी ताईवान के कारण हाल ही में चीन ने आॅस्ट्रेलिया को मिसाइल हमले की धमकी दी। यह धमकी तब दी जब आॅस्ट्रेलिया के गृह मंत्री माइक पेजुलो ने चीन का नाम लिए बिना अपने मिशन के कर्मचारियों को संदेश दिया कि ‘युद्ध के नगाड़े बज रहे हैं, कभी धीरे तो कभी तेज, कभी दूर तो कभी पास।’ इसी के बाद चीन आपे से बाहर हो गया और इस मामले में भी आॅस्ट्रेलिया को धमकी देने के लिए सामने आए ग्लोबल टाइम्स के प्रधान संपादक हू शीजिन। उन्होंने कहा, ‘आॅस्ट्रेलिया अगर अपनी सेना को चीन के समुद्री इलाके में भेजता है तो हमारे पास आॅस्ट्रेलिया की जमीन पर उनकी अहम जगहों और सैन्य ठिकानों पर लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियारों से हमला बोलने की योजना होनी चाहिए।’
पिछले साल सितंबर से ही चीन के लड़ाकू विमान रह-रहकर ताईवान के वायुक्षेत्र में घुस जाते रहे हैं। अभी 15 जून को चीन ने एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का उल्लंघन करते हुए पड़ोसी देश ताइवान के एयर स्पेस में अपने 28 लड़ाकू विमानों की घुसपैठ कराई। यह करके चीन ताईवान को तो संदेश देता ही रहा, अमेरिका को भी साफ करता रहा कि वह इस क्षेत्र से दूर ही रहे। हाल के समय में तो लगभग रोज ही चीन के विमान ताईवान में घुसते रहे। अकेले मई के महीने में चीन ने 29 बार ताईवान के वायुक्षेत्र का उल्लंघन किया। इनमें बमवर्षक विमान भी थे। लेकिन जून के पहले सप्ताह में उसे करारा जवाब मिला।
3 जून को सुबह अमेरिका का आरसी-135-यू टोही विमान जापान के ओकिनावा के कडेना बेस से उड़ा और सीधे पूर्वी चीन सागर क्षेत्र में चीन के वायुक्षेत्र में घुस गया फिर वह पश्चिम की ओर से चक्कर काटते हुए चीन के तटीय फुजियान प्रांत तक गया और फिर उसी रास्ते से लौट गया। चीन के लिए पानी-पानी होने वाली बात यह है कि फुजियान में एक बड़ा सैन्य बेस है उसके बाद भी कम से कम 21 लोगों को ले जाने में सक्षम यह बड़ा टोही विमान बड़े आराम से चीनी वायु क्षेत्र में इधर-उधर घूमकर वापस गया।
इतना ही नहीं, इससे एक दिन पहले, यानी 2 जून को भी अमेरिकी नौसेना का पी-8ए टोही विमान ताईवान की खाड़ी के साथ-साथ उड़ान भर के गया था। इसी दिन ताईवान और फिलीपीन्स के बीच बाशी चैनल में अमेरिकी नैसेना का वी-22 टिट्रोटर जहाज और खास अभियानों में शामिल होने वाले दो एमसी-130 वायुयानों को और इस चैनल के दक्षिण-पश्चिम में दो आरसी-130 टोही विमानों, एक केसी-135 टैंकर एयरक्राफ्ट और पी-8ए टोही विमान को भी देखा गया।
अमेरिका ने भी इस तरह चीनी वायुक्षेत्र की घुसपैठ के साथ-साथ आसपास के इलाकों में गश्त करके साफ बता दिया है कि अगर चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो उसके लिए मुश्किलें हो सकती हैं। गौर करने वाली बात यह है कि ये विमान स्टेल्थ भी नहीं थे, जबकि अमेरिका के पास एफ-35, एफ-22 रैप्टर और बी-2 बमवर्षक जैसे विमान भी हैं जो राडार की पकड़ में नहीं आते।
नाभि पर वार
डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल वैसी कंपनियों पर अमेरिका में प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव किया था जिनके चीनी सेना से ताल्लुकात हों। तब यह मामला अदालत में भी पहुंचा और कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन से ठोस साक्ष्य देने को कहा था। लेकिन जो बिडेन ने न केवल ट्रंप की उस नीति को बनाए रखा बल्कि उसे और भी सख्त कर दिया। बिडेन प्रशासन ने इसमें वैसी कंपनियों को भी शामिल कर दिया जिनपर जासूसी जैसी गतिविधियों में शामिल होने का संदेह है। हाल ही में बिडेन ने 59 कंपनियों में अमेरिकियों के निवेश पर रोक लगा दी है। इनमें सेना से जुड़ी कंपनियां तो हैं ही, दूरसंचार उपकरण बनाने वाली बड़ी कंपनी हुवावेई और चिप बनाने वाली चीन की सबसे बड़ी कंपनी सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉरपोरेशन भी शामिल है। हुवावेई पर जासूसी के आरोप लगते ही रहे हैं और कई देशों ने इसे अपने यहां घुसने नहीं दिया है। यह प्रतिबंध 2 अगस्त से लागू हो जाएगा। लेकिन निवेशकों को अगले एक साल तक छूट होगी कि वे अपने शेयर को धीरे-धीरे बेच दें। एक साल के बाद अमेरिकी इन चीनी कंपनियों के शेयर बेच नहीं सकेंगे। हां, अगर अमेरिकी वित्त मंत्रालय विशेष अनुमति दे, तभी कोई इन 59 चीनी कंपनियों के शेयर बेच सकेगा।
इसके अलावा, बिडेन प्रशासन ने उन फंड में भी निवेश पर रोक लगा दी है जिनके पोर्टफोलियो में इन चीनी कंपनियों की सिक्योरिटी होंगी। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि ट्रंप के पिछले साल के उस आदेश के दायरे में हाइकविजन समेत उन निगरानी रखने वाली कंपनियों को भी लाया जाएगा जो चीन के जिंगजियांग प्रांत के यातना शिविरों में रखे गए उइगर मुसलमानों पर अत्याचार ढाने में चीनी सरकार की मदद कर रही हैं। इन कंपनियों में एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन आॅफ चीन, चीन नेशनल आॅफशोर आॅयल कॉरपोरेशन, चीन रेलवे कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन और चीन नेशनल न्यूक्लियर कॉरपोरेशन शामिल हैं। इनके अलावा इनमें चीन की तीन बड़ी दूरसंचार कंपनियां चीन मोबाइल, चीन टेलीकॉम और चीन यूनिकॉम भी हैं। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसपर आपत्ति जताते हुए कहा है कि अमेरिका ‘राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को कुछ ज्यादा ही खींच रहा है और वह अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रहा है। इसलिए चीन अमेरिका से अनुरोध करता है कि बाजार के नियम-कायदे कासम्मान करे।’
चीन की बौखलाहट की असल वजह यही है कि जो बिडेन, जिनके बारे में दुनिया भर में कहा जा रहा था कि चीन के प्रति उनकी नीतियां डोनाल्ड ट्रंप की तुलना में नरम रहेंगी, वह तो ट्रंप से भी दो कदम आगे निकले। फर्क सिर्फ इतना है कि ट्रंप थोड़ा कहो-ज्यादा समझो की शास्त्रीय कूटनीति में भरोसा नहीं करते थे। न मौके का इंतजार किया, न दिल से जुबान तक की यात्रा करते शब्दों पर अंकुश लगाने की कोशिश की। लेकिन बिडेन कूटनीति के उसी पुराने शास्त्रीय तौर-तरीके में भरोसा करते हैं। तो, महफिल सजने लगी है। आॅर्केस्ट्रा भी तैयार है। लीड सिंगर ने ‘माइक टेस्टिंग’ शुरू कर दी है और गाने को रिकॉर्ड करने की तैयारी की जा रही है।
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