आशीष कुमार 'अंशु'
वायर, आल्ट न्यूज जैसी वेबसाइट संघ और भाजपा को बदनाम करने का कोई भी मौका नहीं चूकतीं। इसके लिए उन्हें यदि झूठी खबर का सहारा लेना पड़े या फिर कोई अफवाह उड़ानी पड़े तो भी वे तैयार नजर आती हैं। गाजियाबाद मामले में भी उन्होंने यही किया। पर समय रहते वे पकड़े गए
सोशल मीडिया पर फेक न्यूज एक बड़ी समस्या है। जिसकी वजह से कई बार विधि—व्यवस्था के बिगड़ने का खतरा भी रहता है। दिल्ली दंगे हों या फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए साम्प्रदायिक दंगे। उसके पीछे भी जांच-पड़ताल में अफवाहों की बड़ी भूमिका पाई गई। ऐसी ही एक झूठी खबर गाजियाबाद के लोनी में एक बुजुर्ग पर हुए हमले को लेकर फैलाई गई। जिसमें बताया गया कि लोनी में अब्दुल समद नाम के एक बुजुर्ग से जबरन ‘जय श्री राम’ बुलवाया गया, जबकि जान बुझकर आरोपितों में शामिल आरिफ, आदिल और मुशाहिद का नाम छुपाया गया। पुलिस की जांच में ये मामला सांप्रदायिक नहीं निकला। जिसके बाद 'सेकुलर' खेमे में घोर निराशा दिखी। खुद को फैक्ट-चेकर बताने वाले पोर्टल आल्ट न्यूज का सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर खुद झूठी खबर फैलाता हुआ पकड़ा गया। जब फैक्ट चेकर ही झूठी खबर फैलाएंगे फिर आम आदमी तथ्यों के लिए किस पर विश्वास करेगा ?
वायर, आल्ट न्यूज जैसी वेबसाइट संघ और भाजपा को बदनाम करने का कोई भी मौका नहीं चूकतीं। इसके लिए उन्हें यदि झूठी खबर का सहारा लेना पड़े या फिर कोई अफवाह उड़ानी पड़े तो भी वे तैयार नजर आती हैं। आल्ट न्यूज के संस्थापकों में से एक प्रतीक सिन्हा के पिता मुकुल सिन्हा गुजरात में संघ और भाजपा से नफरत करने वालों के बीच बड़ा सम्मान पाते थे। तीस्ता सीतलवाड़ जब पूरी दुनिया में घूम—घूमकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संबंध में झूठ फैला रही थी। गुजरात में अधिवक्ता मुकुल सिन्हा ही थे जो उनके साथ खड़े थे और तीस्ता को दस्तावेज उपलब्ध करा रहे थे। प्रतीक सिन्हा संघ और भाजपा से नफरत की ‘मुकुल सिन्हा’ परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
इस पूरे मामले में काबिले गौर गाजियाबाद पुलिस की तत्परता रही। जिस तरह वह हरकत में आई और फेक न्यूज फैलाने वालों पर कार्रवाई की, उसके लिए गाजियाबाद पुलिस की हर तरफ तारीफ हो रही है।
फेक न्यूज फैलाने के लिए आल्ट न्यूज के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर, पिछले दिनों कोविड के नाम पर इकट्ठा किए गए पैसों के हेर-फेर के आरोप से चर्चित हुई लेखिका राना अयूब, आउट लुक की पूर्व पत्रकार सबा नकवी, कांग्रेस नेत्री शमा मोहम्मद, फेक न्यूज का कारखाना बन रही वायर और सोशल साइट ट्विटर का नाम शामिल है।
अभी यह खबर आई कि ट्विटर का इंटरमीडियरी का दर्जा खत्म हो गया है और दर्जा खत्म होते ही उस पर पहली एफआईआर भी दर्ज हो गई। इंटरमीडियरी का दर्जा खत्म होने का मतलब है कि भारतीय कानून के मुताबिक अब ट्विटर पर कार्रवाई की जा सकती है।
गाजियाबाद प्रकरण में सबसे पहले फैट चेक फैक्टमिथ डॉट कॉम ने किया। जब आल्ट न्यूज जैसे फैक्ट चेक करने वाले खुद फेक न्यूज फैलाने लगे, तो फैक्टमिथ डॉट कॉम जैसे फैक्ट चेक करने वाली निष्पक्ष वेबसाइट की समाज में मांग बढ़ जाती। आल्ट न्यूज का पक्षपाती रवैया देखकर समाज का उस पर से विश्वास खत्म हो रहा है। यही आल्ट न्यूज का सच है।
धीरे—धीरे झूठे और मनगढंत ट्वीट अब डिलीट किए जा रहे हैं। झूठ फैलाने वाली एक यू ट्यूबर के पति ने लिखा-''ये बेहद गंभीर है। झूठी और मनगढ़ंत कहानी बनाकर समाज में विद्वेष और सांप्रदायिक ज़हर फैलाने वाले अब्दुल समद को तुरंत गिरफ़्तार किया जाना चाहिए।''
लेकिन ‘दुष्प्रचार’ करने वाली उनकी पत्नी के साथ क्या किया जाना चाहिए, वे नहीं बताते। वही पत्रकार फिर लिखते हैं कि ''मैसेंजर और माध्यम पर इस एफआईआर का कोई अर्थ नहीं है। हाईकोर्ट में पहली ही सुनवाई में इस पर रोक लग जाएगी। अब्दुल समद के वीडियो उसके बयान और आरोप के आधार पर ट्वीट हुए। पुलिस जांच में तथ्य सामने आते ही ट्वीट डिलीट हो गए। सांप्रदायिक रंग देने के लिए कार्रवाई समद पर होनी चाहिए।''
क्या अब्दुल समद को अकेला छोड़ दिया सोशल मीडिया के निष्पक्ष-सेकुलर बिग्रेड ने। जब अब्दुल समद के साथ हुई घटना में कहीं श्रीराम का नाम था ही नहीं। उसने श्रीराम का नाम अपनी एफआईआर में भी शामिल नहीं किया है। फिर जो खुद को इतने बड़े धुरंधर पत्रकार मानते हैं, उन्हें झूठ फैलाने की इतनी जल्दी क्या थी कि तथ्यों की जांच भी ठीक प्रकार से वे नहीं कर पाए और इस झूठ को फैलाने में फैक्ट चेकर भी शामिल हो गए। अब निष्पक्ष—सेकुलर कहलाने वाले लोग तथ्यों की सत्यता को कहां जाकर परखेंगे ? जब आल्ट न्यूज वाले ही झूठ फैलाने वालों के औजार बन गए।
क्या आरफा खानम अब्दुल समद का झूठ साबित होने के बाद यह बता सकती हैं कि उसकी उम्र अब उनके दादाजी से कम हो गई या अधिक ? आरफा ने लिखा — तुम्हारे दादा के उम्र के एक बूढ़े आदमी को पीटा गया और उसकी दाढ़ी काट दी गई और उसे जय श्रीराम बोलने के लिए मजबूर किया गया।
उत्तर प्रदेश में दंगा भड़काने के लिए तत्पर किसी सोशल मीडिया एक्टिविस्ट ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि अब्दुल समद का वीडियो वायरल करने वाले ने वहां से सारी आवाज क्यों गायब कर रखी है ? श्रीराम का नाम जब वारदात करने वालों ने तो एक बार भी नहीं लिया। फिर यह निष्पक्ष-सेकुलर पत्रकारों और यूट्यूबरों के ही विमर्श में क्यों आया ?
राणा अयूब एक कदम आगे निकल गईं। उन्होंने वीडियो में वह सब सुन लिया जो किसी और ने नहीं सुना। राणा ने ट्वीट में लिखा— ''मैंने ऐसे वीडियो देखे हैं जिन्होंने मुझे परेशान किया है। लेकिन इसने मुझे बेदम कर दिया है। एक मुस्लिम व्यक्ति को भीड़ ने पीटा, जय श्री राम का नारा लगाने के लिए मजबूर किया।'' राणा को बताना होगा कि यह जयश्री राम वीडियो में कहां से आया। यह जय श्रीराम अब्दुल समद के एफआईआर में भी नहीं आया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी इस पूरे प्रकरण पर आशंका जताते हैं कि यह सब उत्तर प्रदेश में दंगा भड़काने की साजिश हो सकती है। इसलिए सच कुछ और था और दंगाइयों ने कुछ और कहानी गढ़ी।
उत्तर प्रदेश में चुनाव नजदीक है। कथित निष्पक्ष और सेकुलर शक्तियां वहां दंगा कराने के लिए सक्रिय हो गईं हैं। इसलिए आप हिन्दू हों या मुसलमान, सभी को सोशल मीडिया के अफवाहबाजों से सावधानी बरतने की जरूरत है।
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