नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित दुनिया के जाने—माने बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी मानते हैं कि सोशल मीडिया में अश्लील चित्र और साहित्य मौजूद है। इस कारण बच्चों के प्रति यौन हिंसा बढ़ रही है। अश्लीलता पर रोक लगाने के लिए कानून बनना चाहिए। विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर पाञ्चजन्य संवाददाता ने कैलाश सत्यार्थी से बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश—
सवाल : कुछ वर्ष पहले रांची में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की ओर से संचालित "निर्मल हृदय" और अभी हाल ही में जमशेदपुर में भी एक संगठन पर बच्चों के बेचे जाने और यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हैं। इन पर आप क्या कहेंगे?
जवाब- अभी तक जो आरोप सामने आए हैं, वे बहुत ही गंभीर, अमानवीय और आपराधिक हैं। चर्च की संस्थाओं, मदरसों और मठों में बच्चों के साथ होने वाले दुराचार की घटनाएं और भी ज्यादा शर्मनाक होती हैं। यहां मिशनरीज ऑफ चैरिटी के मामले में एक और गंभीर सवाल जुड़ा है। जब वहां पर बच्चों का रिहायशी केंद्र था तो अब तक उसे कानून के दायरे में क्यों नहीं रखा गया? यानी किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसका रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं हुआ? कुछ समय पहले दिल्ली में 70 साल के मौलवी द्वारा 9 साल की बच्ची के साथ बलात्कार की घटना सामने आई है। कुछ साल पहले मेरे संगठन ने ईसाई मत की आड़ में चलने वाले दो बालगृहों से दर्जनों बच्चों को मुक्त कराया था। मैं बच्चों के सभी रिहायशी केंद्रों को कानून के दायरे में लाकर नियंत्रित और निगरानी के लिए लगातार संघर्ष करता आ रहा हूं।
सवाल : कुछ वर्ष पहले हिमाचल में गुड़िया की घटना को आपने बड़ी मुखरता से उठाया था, लेकिन मंदसौर में 7 साल की मासूम की दरिंदगी पर आपकी ऐसी मुखरता नहीं दिखी थी?
जवाब- हिमाचल की गुड़िया और मंदसौर की निर्भया दोनों ही मेरी बेटियां हैं। उनके साथ बलात्कार करने वाले लोग राक्षस हैं। जो उन्हें हिंदू या मुसलमान मनाता है, वह हिंदुत्व और इस्लाम को नहीं समझता। मैंने दोनों मामलों में ही सख्त रवैया अपनाया है। दुर्भाग्य से गुड़िया की बर्बरता और दरिंदगी से हत्या करने वाले हत्यारों की पहचान करने में देर लगी।
जबकि दूसरी ओर मंदसौर की निर्भया के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार ने जो मुस्तैदी दिखाई है, वह सराहनीय है।
सवाल : देश में छोटे बच्चों के साथ बलात्कार के मामले बढ़े हैं। आखिर इसके पीछे कारण क्या हैं?
जवाब : देश में बच्चों के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। यह भी सच है कि हमारे देश में बाल हिंसा रोकने के लिए अच्छे कानून भी हैं, लेकिन सामाजिक जागररूकता और पारिवारिक मूल्यों के पतन की वजह से बलात्कार और बच्चों का यौन शोषण महामारी का रूप ले चुकी है। मैं इसे “अनैतिकता की महामारी” कहता हूं। बलात्कार और बच्चों के खिलाफ बढ़ती यौन हिंसा हमारे परिवार और समाज के ताने-बाने को तहस—नहस कर रही है। जिन मूल्यों में भारत की आत्मा बसती है, वह परिवार और कुटुम्ब में आस्था से उपजा स्वाभाविक संरक्षण है। लेकिन आज जब छोटी-छोटी बच्चियों से रिश्तेदार ही नहीं, बल्कि सगे पिता और भाई बलात्कार करने लगे हों तो हम किस भारतीयता पर नाज कर पाएंगे?
बच्चों के खिलाफ बढ़ती यौन हिंसा की एक बड़ी वजह है अश्लील चित्र और साहित्य। पिछले दिनों एक केंद्रीय मंत्री से भेंट हुई तो मैंने उन्हें सोशल मीडिया पर बढ़ती पोर्नोग्राफी के प्रति आगाह किया और आग्रह किया कि वे इसे रोकने के लिए सभी देशी-विदेशी कंपनियों पर शिकंजा कसने के लिए कानून बनाएं। मैंने उनसे वायदा भी किया कि इस काम में मैं उनका साथ दूंगा और पोर्नोग्राफी के खिलाफ सामाजिक चेतना जगाने में कोई कोर कसर नहीं छोडूंगा। मैं तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्षों के साथ मिलकर प्रयास कर रहा हूं कि पोर्नोग्राफी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संघ का एक कानून बने।
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