आलोक गोस्वामी
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने प्रदेश में अल्पसंख्यकों से गरीबी दूर करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण के उपाय करने को कहा है। उन्होंने यह भी कहा कि धर्म स्थलों पर कोई अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा
अभी पिछले ही हफ्ते धार्मिक स्थलों और सरकारी जमीन से बांग्लादेशी घुसपैठियों के अतिक्रमण हटाने की मुहिम शुरू करने का आदेश देने के फौरन बाद, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने अल्पसंख्यकों का आह्वान किया है कि गरीबी दूर करनी है तो अपनी आबादी को नियंत्रित करें। असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों को कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा मिलते रहे अभयदान और परोक्ष शह से हालात ये हैं कि आम असमिया के खेतों, दुकानों, गांवों, मैदानों, रोजगारों और धर्म स्थलों पर उनका कब्जा हो चला है। उनकी आबादी भी शेष समाज के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ती गई है। सरकार की गरीब हित योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ यही वर्ग लेता आ रहा था। लेकिन हाल के इन दोनों ही फैसलों ने यहां सेकुलर राजनीति के शिकार होते आए हिन्दू समाज में संतोष का भाव पैदा किया है।
उल्लेखनीय है कि 10 जून को राज्य सरकार के तीस दिन पूरे होने पर, अल्पसंख्यकों की आबादी के संदर्भ में आया मुख्यमंत्री सरमा का यह बयान कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस मौके पर हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि सरकार मंदिरों, सत्रों और सरकारी जमीन पर किसी तरह का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं करेगी। हालांकि उनके अनुसार, अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियों ने जमीन का अतिक्रमण न करने का भरोसा दिया है।
इसके साथ ही मुख्यमंत्री सरमा ने अल्पसंख्यक समुदाय का आह्वान किया कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए वे परिवार नियोजन को अपनाएं। उनका कहना है कि गरीबी बढ़ने की मुख्य वजह आबादी का लगातार बढ़ते जाना है। इसलिए अल्पसंख्यक समुदाय के सभी लोगों को आगे आकर इस दृष्टि से सरकार का समर्थन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार गरीबों की सुरक्षा और उनके लिए काम करने के लिए प्रतिबद्ध है, परन्तु सरकार को बढ़ती जनसंख्या की समस्या से निपटने के लिए अल्पसंख्यकों का पूरा सहयोग चाहिए होगा। सरमा कहते हैं, इसी के कारण गरीबी और अशिक्षा की समस्या उत्पन्न हुई है।
मुख्यमंत्री सरमा ने अल्पसंख्यक समुदाय का आह्वान किया कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए वे परिवार नियोजन को अपनाएं। उनका कहना है कि गरीबी बढ़ने की मुख्य वजह आबादी का लगातार बढ़ते जाना है। इसलिए अल्पसंख्यक समुदाय के सभी लोगों को आगे आकर इस दृष्टि से सरकार का समर्थन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सरकार अल्पसंख्यकों और महिलाओं को शिक्षित करने के सभी प्रयास करेगी, इससे समस्याओं का हल प्रभावी तरीके से निकाला जा सकेगा। उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियों से अपने समुदाय में इस संदर्भ में जागरूक करने व जनसंख्या नियंत्रण पर गंभीरता से विचार करने की अपील की।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री बनने के फौरन बाद हिमंत बिस्व सरमा ने गोरक्षा का समर्थन किया था। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि हिन्दू गोवंश को पूजते हैं, ऐसे में गोहत्या किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
असम की जनसांख्यिकी बदल दी बांग्लादेशी घुसपैठियों ने
असम में बांग्लादेशी घुसपैठिए 1971 के भारत—पाकिस्तान युद्ध के दौरान आने शुरू हुए थे। उस वक्त भारत पर शासन करने वाली कांग्रेस सरकार ने सेकुलर होने की दुहाई देते हुए, उन पर कोई कार्रवाई नहीं की। हुआ यह कि आम असमियाओं का हक मारा जाता रहा, उनके रोजगारों, काम—धंधों पर घुसपैठिए मुसलमानों का कब्जा होता रहा। परिणाम यह हुआ कि असम के विभिन्न संगठनों ने 'घुसपैठिए निकालो' आंदोलन छेड़ा। आल असम स्टूडेंन्ट्स यूनियन ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई और अंतत: कई अवरोधों को पार करते हुए 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने आईएमडीटीएक्ट बनाकर घुसपैठियों की पहचान करके उन्हें वापस बांग्लादेश लौटाने के कायदे तय किये। लेकिन सरकारी स्तर पर निष्क्रियता के चलते बहुत अधिक काम नहीं हुआ।
इधर असम आकर घुसपैठिए अंधाधुंध अतिक्रमण करते गए। सबसे ज्यादा शिकार बने लोअर असम के नौगांव, बरपेटा के सत्र। उनकी सैकड़ों एकड़ की जमीन पर बांग्लादेशी मुसलमानों ने दबंगई करते हुए कब्जा ली। सरकारी जंगलों में बस्तियां बसा लीं। अब तो हालत यह हो गई थी कि जहां देखो, बांग्लादेशी मुस्लिमों की अवैध बस्ती नजर आने लगी थी। सीमांत जिलों की हालत तो और खतरनाक हो चली है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार, नौगांव, धुबरी, बरपेटा, करीमगंज, गोलपाड़ा, मोरीगांव, दरांग, बोंगाईगांव और हैलाकांडी, ये नौ जिले मुस्लिम बहुल हो चुके थे। असम की जनसांख्यिकी में तेजी से बदलाव हुआ है। इतिहास में झांकें तो, 1941 और 1971 के बीच मुस्लिम आबादी में 25 प्रतिशत पर कमोबेश स्थिरता रही थी। हालांकि हिन्दुओं की जनसंख्या में इस अवधि में भी गिरावट दर्ज की गई थी, जो क्रमश: 74.3 प्रतिशत से 72.8 प्रतिशत तक आ गई थी। जैसा पहले बताया, 1971 के बाद से यहां पर मुस्लिमों की आबादी लगातार बढ़ रही है। 1971 में यह 24.6 प्रतिशत थी तो 2011 में यह बढ़कर 34.2 प्रतिशत हो चुकी थी। आज यह 40 प्रतिशत के आसपास मानी जा रही है।
असम में बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ पार्टी खुलकर बांग्लादेशियों के पक्ष में बोलती है क्योंकि वही उसका कथित वोट बैंक हैं। कांग्रेस और एआईयूडीएफ में चुनावी तालमेल रहा है, इस बार के चुनाव में भी था। लेकिन आखिरकार वहां भाजपा की ही सरकार बनी, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री बने हिमंत बिस्व सरमा।
गत 7 जून, 2021 तक मुख्यमंत्री के अतिक्रमण हटाने के आदेश के तहत होजाई जिले में करीब 275 बीघा तो दरांग जिले में 125 बीघा जमीन से अतिक्रमण हटाए जा चुके थे। लेकिन बढ़ती मुस्लिम आबादी के पक्षधर रहे कांग्रेस और मुस्लिम संगठन कैसे चुप बैठते! कांग्रेस और आल असम माइनोरिटी स्टूडेंट्स यूनियन ने अतिक्रमण हटाने की इस मुहिम का विरोध किया है। कांग्रेस के विधायक सिद्दीक अहमद का कहना है कि वे इसके खिलाफ उच्च और सर्वोच्च न्यायालय तक जाएंगे। जमीनों से हटाए गए लोग बेसहारा हो गए हैं। उधर मुस्लिमों के उपरोक्त छात्र संघ ने अतिक्रमण हटाने के खिलाफ प्रदेश में विरोध प्रदर्शन करके कहा कि महामारी के दौरान ऐसा करना गलत है। उसने कहा, यह सरकार सांप्रदायिक है, जो सांप्रदायिक एजेंडे के तहत यह कार्रवाई कर रही है।
लेकिन आश्चर्य की बात है कि न तो कांग्रेस ने, न ही अन्य किसी विपक्षी दल या मुस्लिम संगठन ने प. बंगाल से हाल की हिंसा के बाद, वहां से पलायन करके असम आए करीब 400 हिन्दू परिवारों के दर्द पर एक शब्द भी नहीं बोला। अतिक्रमण हटाने से 'बेघर' हुए बांग्लादेशी घुसपैठियों पर टसुए बहाने वाले आल असम माइनोरिटी स्टूडेंट्स यूनियन को पड़ोसी राज्य में मजहबी उन्मादियों द्वारा बरपाई भीषण हिंसा के शिकार होकर अपने घरों को छोड़, पलायन करके दर—दर भटकने को मजबूर किए गए हिन्दुओं का दर्द नहीं दिखा।
उल्लेखनीय है कि भाजपा ने इस बार के चुनाव घोषणा पत्र में ही कहा था कि वह लैंड जिहाद के खिलाफ कड़े कदम उठाएगी। भाजपा के भावी कार्यक्रमों के आधार पर ही राज्य की जनता ने भाजपा को सरकार बनाने का मौका दिया है। मुख्यमंत्री सरमा अपने चुनावी घोषणापत्र के अनुसार ही फैसले लेते दिख रहे हैं।
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