स्वदेशी जागरण मंच ने भारत सहित दुनिया के नेताओं और वैज्ञानिक समुदाय से अपील की है कि समस्या के समाधान के लिए वायरस की उत्पत्ति का जल्दी पता लगाना जरूरी है। इसमें डब्लयूएचओ और इसके द्वारा गठित जांच आयोग के सदस्य की भूमिका संदेहास्पद है।
स्वदेशी जागरण मंच ने भारत, दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय और वैश्विक नेताओं से पिछले 15 महीनों से दुनिया और इंसानियत पर कहर ढाने वाले कोरोना वायरस की उत्पत्ति की फास्ट ट्रैक जांच कराने की मांग की है। साथ ही, अपील की है कि इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजे का प्रावधान किया जाए ताकि दोबारा इस तरह की स्थिति उत्पन्न न हो। मंच का कहना है कि कोराना वायरस की उत्पत्ति के बारे में जानने का अधिकार हर व्यक्ति को है, क्योंकि महामारी की वजह बने इस वायरस को वुहान (चीन) की एक प्रयोगशाला में बनाया गया। शुरू से ही इस पर चर्चा हो रही है कि इसे गलती से या सुनियोजित तरीके से प्रयोगशाला से बाहर लाया गया। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इसे बार-बार 'चीनी वायरस' बता रहे थे।
विश्वसनीय नहीं डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. अश्वनी महाजन का कहना है कि हाल ही में कई नए शोध निष्कर्षों से खुलासा हुआ है कि वायरस की उत्पत्ति वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की प्रयोगशाला से हुई। यह समझना होगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कोरोना वायरस की उत्पत्ति का अध्ययन कर तो रहा है, लेकिन केवल प्रतीकात्मक रूप से। इसलिए वायरस की उत्पत्ति के स्रोत को जाने बिना हम इस समस्या का समाधान नहीं कर सकते। डब्ल्यूएचओ ने यह स्वीकार नहीं किया है कि वायरस वुहान की प्रयोगशाला से निकला। मार्च 2021 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में इसने कहा कि वायरस चीन के पशु बाजार से फैला था। वायरस की उत्पत्ति चमगादड़ से हुई और दूसरे जानवरों के जरिए यह इनसानों तक पहुंचा। हालांकि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में वुहान प्रयोगशाला से वायरस की उत्पत्ति की आशंकाओं को पूरी तरह खारिज नहीं किया गया है। चूंकि डब्ल्यूएचओ चीन के भारी दबाव में है, इसलिए वह स्पष्ट रूप से वायरस की उत्पत्ति को वुहान प्रयोगशाला से नहीं जोड़ पाया। लिहाजा, इसने रिपोर्ट को 'अनिर्णायक' बताकर अमेरिका को संतुष्ट करने की कोशिश की। साथ ही, रिपोर्ट में शामिल हर संबंधित मुद्दे पर कहा गया है कि इसके लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है।
वैसे, विशेषज्ञों के एक बड़े समूह ने इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया है और वे लगातार इस पर आगे की जांच कर रहे हैं। हाल के महीनों में कई अध्ययन और शोध-पत्र प्रकाशित हुए हैं, जो स्पष्ट रूप से वुहान प्रयोगशाला से वायरस के जानबूझकर या आकस्मिक फैलाव की ओर इशारा करते हैं। दुनिया भर के अधिकांश विशेषज्ञों ने डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट को सिरे से खारिज किया है। उनका कहना है कि डब्ल्यूएचओ को जिन विषयों पर जांच करनी थी, इसने किया ही नहीं।
डब्ल्यूएचओ और चीन के बीच अनैतिक संबंध
डॉ. महाजन कहते हैं कि डब्ल्यूएचओ और उसके प्रमुख टेड्रोस एडनॉम इस महामारी की शुरुआत से ही संदेह के घेरे में हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच के निदेशक केन रोथ ने डब्ल्यूएचओ पर 'संस्थागत मिलीभगत' का दोषी करार दिया है। उन्होंने डब्लयूएचओ द्वारा चीनी झूठ के अंधे समर्थन पर यह बात कही थी। डब्ल्यूएचओ ने जनवरी 2020 में वायरस के मानव से मानव में संचरण से ही इनकार किया था। दरअसल, डब्ल्यूएचओ अपनी विश्वसनीयता खो चुका है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि डब्ल्यूएचओ को 86 मिलियन डॉलर चीन से, 532 मिलियन डॉलर गेट्स फाउंडेशन और 371 मिलियन डॉलर गेट्स फाउंडेशन की अपनी संस्था गावी अलायंस (GAVI Alliance) से मिलता है। यही कारण है कि यह संगठन चीन और गेट्स फाउंडेशन के जबरदस्त प्रभाव में है।
उन्होंने कहा कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों से उठने वाली आवाजों को नजरअंदाज करते हुए कि वायरस की उत्पत्ति चीन से हुई, इस संगठन ने चीन की भूमिका पर सवाल नहीं उठाया। बिल गेट्स ने भी चीन का बचाव करने की कोशिश की। उसने कहा कि चीन ने महामारी के प्रकोप के बाद से बहुत अच्छा काम किया है। साथ ही, डब्ल्यूएचओ को एक 'अभूतपूर्व' संगठन बताया।
यानी सूत्रों को जोड़ने पर हम चीन, डब्ल्यूएचओ और गेट्स फाउंडेशन के बीच अनैतिक संबंध को स्पष्ट रूप से देख पाते हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि टेड्रोस को डब्ल्यूएचओ का महानिदेशक बनाने में चीन ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। यह घिनौना रिश्ता किस तरह दुनिया में तबाही मचा रहा है, यह भी साफ तौर पर सामने आ रहा है।
इसे वायरस को वायरस कहें, वुहान वायरस या चीनी वायरस, यह चीन और वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से लीक (गलती से या जान-बूझकर) हुआ, जिसका पता नवंबर 2019 में चला, लेकिन दुनिया को जनवरी में इसके बारे में जानकारी दी गई। इस देरी में साजिश भी परिलक्षित हो रही है। महत्वपूर्ण बात यह है कि 14 जनवरी, 2020 को डब्ल्यूएचओ ने ट्वीट कर इस वायरस के मानव-से-मानव संचरण से इनकार किया था। डब्ल्यूएचओ ने कहा था, “चीनी अधिकारियों द्वारा की गई प्रारंभिक जांच में नोवेल कोरोना वायरस मानव-से-मानव संचरण का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है।”
डब्ल्यूएचओ के इस रवैये के कारण खतरनाक होने के बावजूद इस वायरस के मानव-से-मानव संचरण को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया जा सका। चीन से दुनिया भर के देशों के लिए उड़ानें बेरोक-टोक जारी रहीं और यह वायरस चीन से पूरी दुनिया में फैल गया। इस भूल की जिम्मेदारी भी डब्ल्यूएचओ ने नहीं ली थी। हालांकि, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस संगठन से अलग होने की घोषणा करते हुए इसे दी जाने वाली वित्तीय सहायता रोक दी। लेकिन किसी अन्य देश ने इतना कठोर कदम नहीं उठाया। इससे डब्ल्यूएचओ की छवि को बड़ा झटका लगा है। वाशिंटगन पोस्ट में छपे ताजा लेखों और कई अन्य शोध अध्ययनों में इस खेल में चीन के साथ अमेरिका के संस्थानों व लोगों की भागीदारी का खुलासा हुआ है।
सामने आ रहे तथ्यों के अनुसार, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के शोधकर्ता 'गेन ऑफ फंक्शन' नामक एक शोध परियोजना पर काम कर रहे थे, जिसका उद्देश्य उच्च संक्रामकता वाले कोरोना वायरस के काइमेरिक संस्करण विकसित करना था। यानी ऐसा प्रयोग जिसमें संभवतः कोविड-19 वायरस को विकसित किया गया। इस तथ्य को कई वैज्ञानिक प्रकाशनों और प्रसिद्ध विज्ञान लेखकों जैसे निकोलस वेड द्वारा प्रकाश में लाया गया है। इस तथ्य को स्थापित करने वाले ढेरों डेटा प्रकाशित हो चुके हैं कि प्रयोगशाला में कोविड-19 की आनुवंशिक संरचना से छेड़छाड़ की गई।
जांच आयोग के सदस्य की भूमिका संदिग्ध
पीटर दासज़क की भूमिका और भी संदिग्ध है। वे डब्ल्यूएचओ द्वारा वुहान भेजे गए आयोग के अहम सदस्य रह चुके हैं। यह वही व्यक्ति है जिसने लैंसेट नाम की प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में एक पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि वायरस के प्रसार में प्रयोगशाला की कोई भूमिका नहीं है। लेकिन इस पत्र में यह नहीं बताया गया कि पीटर दासज़क न्यूयॉर्क स्थित ‘इको हेल्थ एलायंस’ के माध्यम से वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के लिए फंडिंग की व्यवस्था कर रहे हैं। यानी हितों के टकराव का खुलासा नहीं किया गया था। चूंकि डब्ल्यूएचओ पर चीन का दबदबा है, इसलिए वायरस की उत्पत्ति की जांच करने वुहान गया आयोग भी संदेह के घेरे में है।
इन लोगों के अलावा, कुछ बहुत ही उच्च पदस्थ लोगों के नाम भी सामने आ रहे हैं, जिन्होंने वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में 'गेन ऑफ फंक्शन्स' शोध के वित्तपोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वायरस की उत्पत्ति के बारे में निर्णायक सबूत तक पहुंचने के लिए और जांच की आवश्यकता है, ताकि मानव जाति के लिए तबाही मचाने वाले इतिहास की सबसे खराब महामारी के लिए जिम्मेदारी तय की जा सके।
इसलिए स्वदेशी जागरण मंच भारत, दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय और वैश्विक नेताओं से वायरस की उत्पत्ति की जड़ तक पहुंचने के लिए ठोस प्रयास करने और वायरस के निर्माण व प्रसार में शामिल लोगों या देशों की जिम्मेदारी तय करने का आह्वान करता है। साथ ही, नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा सुनिश्चित किया जा सके ताकि ऐसी स्थिति फिर कभी न बने।
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