पाकिस्तान में पत्रकारों की हालत बहुत खराब है। पाकिस्तान में सेना के विरुद्ध बोलना मीडिया के लिए इतना खतरनाक हो चुका है, कि इसके लिए पत्रकारों को न केवल कठोर शारीरक यातनाएं भुगतनी पड़ रही हैं, बल्कि अनेकानेक पत्रकार अपनी जान गवां चुके हैं। पिछले एक वर्ष में पत्रकारों पर 148 हमले हो चुके हैं। पत्रकारों के लिए असुरक्षित देश के रूप में पाकिस्तान दुनिया में नौवें स्थान पर है।
पाकिस्तान में सेना के विरुद्ध बोलना मीडिया के लिए इतना खतरनाक हो चुका है, कि इसके लिए पत्रकारों को न केवल कठोर शारीरक यातनाएं भुगतनी पड़ रही हैं, बल्कि अनेकानेक पत्रकार अपनी जान गवां चुके हैं। हाल ही एक पत्रकार असद तूर पर हुए जानलेवा हमले और इसके विरुद्ध पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार हामिद मीर के वक्तव्य ने पाकिस्तान में मीडिया और पत्रकारों के विरुद्ध सेना, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) और सरकार की दुरभिसंधियों को एक बार फिर उजागर किया है। स्थानीय मीडिया और समाचार एजेंसी डीपीए ने बताया कि पाकिस्तानी पत्रकार और ब्लॉगर असद अली तूर पर पिछले मंगलवार की रात अज्ञात हमलावरों ने उनके इस्लामाबाद अपार्टमेंट के अंदर हमला किया और धमकी दी। उल्लेखनीय है कि उन्हें पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना की आलोचना के लिए जाना जाता है। जियो टीवी के वरिष्ठ पत्रकार और कैपिटल टॉक नामक शो के प्रस्तोता हामिद मीर ने इस हमले की कड़ी निंदा की और सेना और आईएसआई की भूमिका पर सवाल उठाये। नतीजन सेना के दबाव में उन्हें इस कार्यक्रम के प्रस्तोता के रूप में हटा दिया गया है।
मीर और कैपिटल टॉक !
2002 में जियो टीवी में अपने कैरियर की शुरुआत के समय से ही मीर टॉक शो ‘कैपिटल टॉक’ को होस्ट करते आ रहे थे, जो कि पाकिस्तान का सबसे पुराना सम-सामयिक घटनाओं पर आधारित कार्यक्रम है। दिसंबर 2007 में, मीर द्वारा पाकिस्तान सरकार की लगातार आलोचना के कारण सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा इस कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। जनवरी 2008 में इस कार्यक्रम का पुन: प्रसारण शुरू हुआ परन्तु हामिद मीर के बजाय मुहम्मद मलिक ने इसकी मेजबानी की। और अंतत: 2008 के आम चुनाव के बाद, जब जनरल की विदाई तय हो गई , मीर की कैपिटल टॉक में दोबारा वापसी हुई।
सेना और जियो टीवी !
जियो टीवी के साथ सेना की खूनी रंजिश का किस्सा भी पुराना है। हामिद मीर नवंबर 2012 में तब बाल-बाल बचे थे जब उनकी कार में लगभग आधा किलोग्राम अत्यंत खतरनाक विस्फोटक रखा गया था, हालांकि इसे बम दस्ते द्वारा सफलतापूर्वक निष्क्रिय कर दिया गया था। बाद में पाकिस्तानी तालिबान ने इस घटना की जिम्मेदारी ली थी पर यहाँ संदेह की कोई गुंजाइश नहीं थी कि यह किसकी शह पर किया जा रहा था ।
इसी तरह अप्रैल 2014 को, हामिद मीर पर अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा गोलियां चलाई गईं जिसमे वह गंभीर रूप से घायल हुए। उल्लेखनीय है कि इस हमले से पूर्व ही मीर ने अपने सहयोगियों से कहा था कि यदि उन पर हमला किया जाता है, तो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस, और इसके प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जहीर-उल-इस्लाम इसके जिम्मेदार होंगे। पर दोषियों पर कार्यवाही के बजाय हामिद मीर के इस बयान को प्रसारित करने के कारण जियो न्यूज पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
सितम्बर 2015 में जियो टीवी के वरिष्ठ पत्रकार आफताब आलम की कराची में उनके घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। आलम को राजनीति में सेना की भागीदारी की आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए जाना जाता था और इस कारण वह सेना और उसके जासूसी संगठन, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के प्रकोप का सामना कर रहे थे। इस घटना के कुछ ही दिन बाद जियो टीवी सैटेलाइट के इंजीनियर अरशद अली जाफरी की शहर में तीन बंदूकधारियों द्वारा हत्या कर दी गई थी। उत्पीड़न के इस क्रम में जियो टीवी चैनल के मालिक मीर शकीलुर रहमान को पिछले साल एक रियल एस्टेट खरीद में कर चोरी के आरोपों से जुड़े एक दशक पुराने मामले में गिरफ्तार किया गया था। महीनों बाद कोर्ट के आदेश पर उन्हें रिहा कर दिया गया।
पाकिस्तान में मीडिया कितनी स्वतंत्र?
पाकिस्तान में सेना और अब उसके संरक्षण में चल रही इमरान खान सरकार के विरुद्ध बोलना और लिखना अत्याधिक दुष्कर हो गया है। देश में कोरोना महामारी फैलने के बाद से से ऐसे अनेक घटनाएं सामने आई हैं जब पत्रकारों को उत्पीड़ित किया गया। जुलाई 2020 में प्रमुख पत्रकार मतीउल्लाह जान, जो पाकिस्तान की सेना और सरकार के मुखर आलोचक माने जाते हैं, का अपहरण कर लिया गया । पत्रकार शाहज़ेब जिलानी पर साइबर आतंकवाद, अभद्र भाषा, इलेक्ट्रॉनिक धोखाधड़ी, उकसाने और मानहानि से संबंधित कानूनों के तहत आरोप लगाए गए थे, लेकिन सबूतों के अभाव में मामले को अदालत द्वारा बरी कर दिया गया । पिछले वर्ष सितम्बर में सेना, सरकार और धार्मिक चरमपंथी समूहों के मुखर आलोचक रहे एक पाकिस्तानी पत्रकार बिलाल फारूकी को देश की शक्तिशाली सेना को बदनाम करने और धार्मिक घृणा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया ।
यह दिखाता है कि मीडिया और पत्रकारों को गैरकानूनी तरीके से चुप कराया जा सकता है जो सरकार की आलोचना कर रहे हैं और दूसरी तरफ प्रधानमंत्री इमरान खान लगातार इस बात की रट लगाए हुए हैं कि पाकिस्तान के पास एक स्वतंत्र मीडिया है। इस सब के बावजूद, मई 2021 के अंत में बीबीसी कार्यक्रम “हार्डटॉक” के लिए स्टीफन साकुर के साथ एक साक्षात्कार के दौरान इमरान खान की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने यह स्वीकार करने से स्पष्ट इनकार कर दिया कि पाकिस्तान अपने पत्रकारों की रक्षा करने में विफल रहा है। मंत्री ने कहा कि पत्रकारों को देश में ‘सुरक्षा’ दी जाती है और उन्हें अपनी ‘राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता’ प्राप्त है।
एक वर्ष में पत्रकारों पर 148 हमले
वहीँ दूसरी ओर पाकिस्तान के स्थानीय पत्रकार समूह, जो पाकिस्तान में पत्रकारों के खिलाफ हमलों या उल्लंघन का दस्तावेजीकरण करते हैं, के अनुसार मई 2020 से अप्रैल 2021 की अवधि में पत्रकारों पर 148 ऐसे हमले हुए हैं। अक्टूबर 2020 में जारी ग्लोबल इंप्यूनिटी इंडेक्स 2020 भी कुछ ऐसी भयावह स्थिति को दर्शाता है। यह उन देशों पर प्रकाश डालता है जहां पत्रकार मारे गए हैं और उनके हत्यारे मुक्त घूम रहे हैं। ऐसी भीषण स्थिति वाले देशों की सूची में पाकिस्तान नौवां सबसे खराब स्थिति वाला देश है। सोमालिया, सीरिया, इराक और दक्षिण सूडान जैसे युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता से ग्रस्त देश इस सूची में पाकिस्तान से ऊपर हैं। इस रिपोर्ट ने आगे तीन देशों को इंगित किया, जिनमें पाकिस्तान भी शामिल है, जहां “भ्रष्टाचार, कमजोर संस्थान, और पत्रकारों की हत्याओं की मजबूत जांच को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। इसमें पाकिस्तान के अलावा दो अन्य देश मैक्सिको और फिलीपींस हैं। उल्लेखनीय कि पिछले 10 वर्षों में, पाकिस्तान में 15 पत्रकारों की हत्या की गई है और इनमे से किसी भी मामले में हत्यारों को सजा नहीं मिली है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट के डेटाबेस के अनुसार पाकिस्तान में 1992 से अब तक हमलों में 61 पत्रकार अपनी जान गवां चुके हैं।
पाकिस्तान में अराजक स्थिति
पाकिस्तान इस समय अराजकता की स्थिति में है। तथाकथित लोकतान्त्रिक सरकार लाचारी की स्थिति में है और लगातार बिगड़ती आर्थिक स्थिति और अंदर तथा वैश्विक रूप से बिगड़ती साख ने उसकी स्थिति को और भी कमजोर किया है। सेना और कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी संगठन पाकिस्तान के अंदर वास्तविक शक्तिशाली हैं और जिनका मुजाहिदीन युद्ध के समय से चला आ रहा गठजोड़ आज की स्थिति में कमजोर भले ही पड़ा हो पर यह अभी भी बरक़रार है। और ऐसे मीडिया समूह और पत्रकार जो इस संगठित अव्यवस्था और गठजोड़ को उजागर करते हैं, इस के स्वाभाविक शिकार बनते हैं।
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