कोरोना की दूसरी लहर से देश के गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। मीडिया खबरों में कहा जा रहा है कि कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में गांवों को छोड़ दिया गया है। सच यह है कि शहरों के मुकाबले अधिकांश गांव उतने सुविधा संपन्न नहीं हैं। वहां बुनियादी ढांचे और इंटरनेट प्रौद्योगिकी का अभाव है। गांव में कुछ ही लोगों के पास स्मार्ट फोन हैं। तकनीक तक पहुंच कम होने के कारण ग्रामीण कोविन एप से पंजीकरण नहीं करा पा रहे हैं, जिससे टीकाकरण करा सकें। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के सीईओ और कोविन (CoWIN) प्रमुख आर.एस शर्मा भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि गांवों में डिजिटल जागरुकता का अभाव है। उन्होंने कहा कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में गांवों को छोड़ देने की बात गलत है। कोविड-19 वैक्सीन की 20 करोड़ से अधिक खुराक केवल शहरी अभिजात वर्ग को नहीं मिली है। शर्मा ने कहा कि प्रत्यक्ष टीकाकरण कराने वाले 45 वर्ष से अधिक उम्र के 57 प्रतिशत लोगों ने न तो पहले से समय लिया था और न ही पंजीकरण कराया था। 18-44 आयु वर्ग में समस्या का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि टीके की आपूर्ति कम है, लेकिन यह अस्थायी है।
20 करोड़ टीके सिर्फ शहरी लोगों को नहीं लगे
एक साक्षात्कार में कोविन प्रमुख ने कहा कि देश में 2.5 लाख से अधिक सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी) ग्रामीण क्षेत्रों में पंजीकरण प्रक्रिया में सहायता कर रहे हैं। पूरे देश में सभी सीएससी को सक्रिय किया जा रहा है। ये केंद्र ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के लिए स्लॉट बुक करने या आरक्षण और पंजीकरण करने के लिए हमारे साथ साझेदारी कर रहे हैं। लगभग हर दो या तीन गांव में एक कॉमन सेंटर है, खासतौर से पंचायत मुख्यालय, जहां लोग आते हैं और बुकिंग करते हैं। हमने व्यवस्था को यथासंभव समावेशी बनाया है। साथ ही, उन्होंने कहा कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, जिला कलेक्टर और अधिकारी टीकाकरण को लेकर गांवों में जागरुकता भी फैला रहे हैं तथा टीकाकरण में उनकी सहायता कर रहे हैं। ‘लोग इस बात को समझें कि जिन 20 करोड़ से अधिक लोगों को टीके लगाए गए हैं, वे सभी शहरी अभिजात वर्ग के नहीं हैं। हमारी कोविन वेबसाइटों पर जिलावार और दिन-वार टीकाकरण का डेटा है। इसलिए यह कयास लगाना कि गांव के लोगों को छोड़ दिया गया है, सही नहीं है। हमने दूरदराज के इलाकों में 2,000 लोगों को टीके लगाए हैं। हम किसी व्यक्ति का आवासीय पता एकत्रित नहीं करते।
10 साल पहले का भारत नहीं रहा
देश में तकनीक की कमी से जुड़े सवाल के जवाब में शर्मा ने कहा, ‘‘आज का भारत 10 साल पहले का भारत नहीं है। देश में 120 करोड़ मोबाइलधारक, 60 करोड़ स्मार्ट फोन और 70 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं। यही नहीं, अधिकांश टेलीकॉम कंपनियां 4जी डेटा मुहैया करा रही हैं। प्रति माह लगभग 10 गीगाबाइट खपत के साथ हम दुनिया में डेटा के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। भारतीय मोबाइल पर वीडियो देखते हैं और यूपीआई से लेन-देने करते हैं। भारत व्हाट्सएप और फेसबुक का सबसे बड़ा ग्राहक है। इसलिए यह कहना अपमानजनक है कि यहां तकनीक की कमी है। हां, देश में डिजिटल विभाजन है, एक असमानता है। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन प्रौद्योगिकी को समाप्त कर दिया जाए, क्योंकि यह 100 प्रतिशत खरा नहीं उतर रहा है, यह समाधान नहीं है। प्रौद्योगिकी को आसान बनाना ही एकमात्र समाधान है।’’
समावेशी और सुलभ व्यवस्था
उन्होंने कहा कि व्यवस्था को समावेशी और सुलभ बनाया गया है। अब मोबाइल पर एक साथ चार लोग पंजीकरण करा सकते हैं। इसके अलावा, कॉल सेंटर के जरिए भी पंजीकरण करा सकते हैं, गांवों के कॉमन सर्विस सेंटर्स जुड़े हुए हैं। यह तो स्वीकार करना ही होगा कि एक परिवार में कम से कम एक फोन है। उन्होंने कहा कि नई नीति की घोषणा के साथ अब तीसरा पक्ष भी पंजीकरण प्रक्रिया में मदद कर सकता है। इसके तहत कोई भी एप बनाकर इसे कोविन से जोड़ सकता है। तीसरा पक्ष एकीकरण नीति (थर्ड पार्टी इंटीग्रेशन पॉलिसी) कोविन वेबसाइट और सोशल मीडिया पर उपलब्ध है। राज्य सरकारें और जो कोई भी लिंक करना चाहता है, वह एपीआई का उपयोग अपना एप बनाने के लिए कर सकता है। लेकिन प्रमाण-पत्र एक ही जगह जारी किया जाएगा।
निठल्ले लोग अफवाह फैलाते हैं
डेटा लीक से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि कोविन से संबंधित डेटा लीक होने का कोई मामला सामने नहीं आया है। जिन लोगों के पास कोई काम नहीं है, जिन्हें व्यवस्था की समझ नहीं है, वही इस तरह के सवाल उठाते हैं। कोविन कौन सा डेटा एकत्र करता है? यह केवल नाम, लिंग और जन्म का वर्ष एकत्र करता है। अगर मुझे किसी का नाम ही मालूम नहीं है तो उसे कैसे संबोधित करूंगा? नाम कोई निजी चीज नहीं है। यह कुछ ऐसा है, जिसे आप दुनिया से जोड़ने के लिए उजागर करते हैं। इसी तरह, आपका लिंग भी निजी नहीं है और आपकी जन्म तिथि या जन्म का वर्ष भी देश के लिए रहस्य नहीं है। यही जानकारी एकत्र की गई है। इसलिए यह गोपनीयता भंग होने का कोई मामला नहीं है और न कोई मामला होगा।
अस्थायी है वैक्सीन संकट
वैक्सीन के स्लॉट जल्दी भरने पर शर्मा ने कहा कि यह मांग और आपूर्ति के अंतर का मामला है, जो अस्थायी है। अगर स्लॉट एक है और उस पर एक साथ 50-100 लोग नजर रखेंगे तो क्या होगा? जो भाग्यशाली होगा वह दूसरों से एक माइक्रोसेकंड आगे होगा और वैक्सीन लगवा लेगा। वैक्सीन की कमी एक अस्थायी स्थिति है, क्योंकि उस व्यक्ति को दो खुराक मिल जाएगी, वह कोविन एप को देखेगा भी नहीं। जब अधिक से अधिक टीकों का उत्पादन और खरीद होगी तो व्यवस्था पर दबाव घटेगा। टीकाकरण की मांग करने वाले बढ़ते नहीं रहेंगे। देश में कितने खुराक की जरूरत है, यह मालूम है। देश में अधिक से अधिक वैक्सीन आ रहे हैं। जैसे-जैसे टीकों का उत्पादन बढ़ेगा, मांग में कमी आती जाएगी और संतुष्ट ग्राहक लगातार बढ़ते रहेंगे। इसलिए, व्यवस्था पर दबाव कम होना तय है। यह एक साधारण बात है।
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