राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कूच बिहार के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर कहा है कि पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के कारण जिन बच्चों की खुशियां छिन गई हैं, उन्हें लौटाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। साथ ही इन बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए दोषियों के विरुद्ध मामले भी दर्ज करें
पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा में हजारों लोग प्रभावित हुए हैं। दंगाइयों ने उनके घरों को जला दिया है। उनके पास कुछ भी नहीं बचा है। मजबूरन उन लोगों को शरणार्थी शिविर में रहना पड़ रहा है। कूच बिहार जिले के लगभग 600 लोग अभी भी असम के धुबरी जिले में रह रहे हैं। उनके साथ 42 बच्चे भी हैं। खेलने, खाने और पढ़ाई की उम्र में ये बच्चे शरणार्थी शिविर में रह रहे हैं। यह पूरे समाज के लिए शर्म की बात है। हिंसा से इन बच्चोें का कुछ लेना—देना नहीं है, फिर भी इन बच्चों को अपने घर से बाहर रहना पड़ रहा है। इन बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है। उनकी खुशियां खत्म हो गई हैं। शिविर में उनके पास न ते पढ़ने के लिए किताबें हैं और न खेलने के लिए खिलौने।
बच्चों की इन परेशानियों को देखते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कूच बिहार जिले के जिलाधिकारी पवन कादियान को 27 मई को एक पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि हिंसा के कारण बच्चों के स्कूल बैग, पुस्तकें, यूनिफार्म, सामान्य कपड़े, बिस्तर, अन्य घरेलू सामान, खिलौने आदि खत्म हो गए हैं। इसलिए जितनी जल्दी हो इन बच्चों को ये सारी चीजें उपलब्ध कराई जाएं। इसके साथ ही पत्र में लिखा गया है कि हिंसा के सदमे से बाहर निकालने के लिए सभी बच्चों की पेशेवर काउंसलर से काउंसलिंग कराई जाए, ताकि ये बच्चे मानसिक रूप से मजबूत होकर अपने जीवन को एक दिशा दे पाएं। यह भी लिखा गया है कि बच्चों का समुचित पुनर्वास कराने के बाद इसकी रिपोर्ट भी आयोग को दें। इसके साथ ही यह भी कहा है कि प्रत्येक बच्चे को 1,00,000 रु. भी दिलाएं।
27 मई को ही आयोग ने कूच बिहार के पुलिस अधीक्षक को भी एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि इस मामले में मुकदमा दायर कर उचित कार्रवाई करें। आयोग ने लिखा है कि बाल संरक्षण कानून 2005 (नं. 4, 2006) के अंतर्गत बच्चों के अधिकारों का संरक्षण होना ही चाहिए। पत्र में लिखा गया है कि यदि बच्चों के अधिकारों के संरक्षण में कोई कदम नहीं उठाया गया तो आयोग संबंधित अधिकािरियों को समन जारी करेगा।
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि आयोग बच्चों को उनके अधिकार दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी हिंसा में बच्चों का कोई योगदान नहीं होता है। इसलिए उन्हें किसी भी हिंसा के कारण कोई समस्या न हो, यह देखना देश की जिम्मेदारी है। उन्होंने यह भी बताया कि आयोग पश्चिम बंगाल के अन्य स्थानों में रह रहे शरणार्थियों के बच्चों के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर रहा है। जैसे ही पूरी जानकारी मिलेगी, वैसे ही उन बच्चोें के लिए भी आयोग जरूरी कदम उठाएगा।
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