कुछ लोग वैचारिक रूप से इतने असंवेदनशील और कट्टर होते हैं कि किसी के मरने पर भी खुशी मनाते हैं। वामपंथी झुकाव वाले मणिपुर के दो लोगों ने ऐसा ही किया है। इनमें से एक वहां का स्थानीय पत्रकार है और दूसरा अपने को मानवाधिकारी और राजनीतिक कार्यकर्ता कहता है। लोगों की भावनाओं पर चोट करने वाले ये दोनों अब जेल में हैं
वामपंथी और सेकुलर किस्म के लोग भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों से कितनी नफरत करते हैं, इसका एक उदाहरण मणिपुर में मिला है। ये लोग अपने वैचारिक विरोधियों को शत्रु मानकर चलते हैं। इसलिए किसी वैचारिक विरोधी के मरने पर खुशी मनाने जैसी घटिया हरकत करते हैं और फिर अपने को बहुत ही प्रगतिशील कहते अघाते नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि गत 13 मई को मणिपुर के भाजपा अध्यक्ष प्रो. टिेकेंद्र सिंह का कोरोना के कारण निधन हो गया। इसके बाद मणिपुर के एक स्थानीय पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम ने अपनी फेसबुक वॉल पर मणिुपरी में प्रो. टिकेंद्र सिंह के लिए लिखा, ”गोबर और गोमूत्र से होगा क्या! आपको कोई पंसद नहीं करता था। आप जबर्दस्ती बहस करने वाले थे। कल मैं मछली खाऊंगा।”
यानी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के मरने पर उस पत्रकार को इतनी खुशी हुई कि उसने मछली खाने का विचार कर लिया। इसे मणिपुर के लोगों ने बहुत ही बुरा माना है। बता दें कि मणिपुरी समाज में किसी के मरने पर जब तक उसका श्राद्ध नहीं हो जाता है, तब तक परिवार के लोग मछली या मांस नहीं खाते हैं। लेकिन किशोर चंद्र ने प्रो. टिकेंद्र सिंह को अपना वैचारिक शत्रु मान कर उनके मरने का भी मजाक उड़ाया। पार्टी के अध्यक्ष बनने से पहले प्रो. टिकेंद्र मणिुपर भाजपा के प्रवक्ता थे। इस नाते वे चैनलों में पार्टी का पक्ष रखने के लिए बहस में जाया करते थे, और अच्छी बहस करते थे। यह शायद किशोर चंद्र को पसंद नहीं था और इसलिए उन्होेंने लिखा कि आप जबर्दस्ती बहस करने वालों में थे।
इसी तरह अपने को मानवाधिकार कार्यकर्ता मानने वाले मणिपुर के एक राजनीतिक कार्यकर्ता एरेंड्रो लिचोम्बम ने लिखा, ”गोबर और गोमूत्र से कोरोना का इलाज नहीं होता है। विज्ञान से ही इलाज हो सकता है और यह सामान्य ज्ञान की बात है, प्रोफेसर जी।”
इनकी पोस्ट भी बहुत ही आपत्तिजनक है। इसलिए मणिुपर भाजपा ने इन दोनों की पोस्ट की घोर निंदा की है। इस संबंध में मणिपुर भाजपा के महासचिव पी. प्रेमानंद मीतेई कहते हैं, ”दोनों ने बहुत ही असंवेदनशीलता का परिचय दिया है। किसी के मरने पर भी खुशी मनाना और अभद्र टिप्पणी करना, किसी भी तरह ठीक नहीं है। इन दोनों ने प्रो. टिकेंद्र सिंह के परिवार वालों और भाजपा के लाखों कार्यकर्ताओं की संवेदनाओं का मजाक उड़ाया है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए हमने 13 मई को ही किशोर चंद्र वांगखेम तथा एरेंड्रो लिचोम्बम के विरुद्ध पुलिस में शिकायत की थी।”
इसके बाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए/505(बी) (2) आर/डब्ल्यू 201/ /295-ए/503/504/34 के अंतर्गत मामला दर्ज कर 13 मई को ही किशोर चंद्र वांगखेम तथा एरेंड्रो लिचोम्बम को गिरफ्तार कर लिया था। चार दिन जेल में रहने के बाद 17 मई को दोनों को छोड़ दिया गया। इसके बाद 18 मई को राज्य सरकार ने उन दोनों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा दिया। इस कारण इंफाल पूर्वी के जिला दंडाधिकारी किरण कुमार ने दोनों को 18 मई को ही जेल भेज दिया है।
इस कार्रवाई के बाद वामपंथी और सेकुलर जमात कह रही है किे देखो भाजपा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट रही है, लेकिन इस जमात ने यह कभी नहीं कहा कि किसी के मरने की खुशी मनाना ठीक नहीं है।
किशोर चंद्र वांगखेम के बारे में कहा जाता है कि वे अक्सर भाजपा और भाजपा के नेताओं के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करते रहते हैं। इस कारण वे पहले भी कई बार जेल जा चुके हैं। इससे पहले भी उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लग चुका है। वहीं एरेंड्रो लिचोम्बम अपने को मानवाधिकारी कार्यकर्ता कहते हैं, लेकिन वे मूल रूप से राजनीतिक हैं। पिछली बार उन्होंने विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उन्हें केवल 75 वोट मिले थे।
ये लोग व्यक्तिगत क्या हैं और क्या करते हैं, इस पर किसी को कुछ बोलने या लिखने की जरूरत नहीं है, लेकिन ये लोग किसी के मरने पर खुशी मनाएं, इसे तो एक सभ्य समाज में किसी भी तरह ठीक नहीं कहा जा सकता है। किसी से वैचारिक मतभेद होने का मतलब यह नहीं है कि वह आपका शत्रु है। इसलिए वैचारिक मतभेदों को इतना भी बड़ा न बनाएं कि आपके अंदर की मानवता ही खत्म हो जाए।
—अरुण कुमार सिंह
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