सऊदी अरब में मोहम्मद बिन सलमान के क्राउन प्रिंस बनने के बाद से देश की दिशा बदली है। इससे पूर्व मजहबी कट्टरता का पर्याय बना सऊदी अरब अब खुलेपन और सर्वधर्म सद्भाव की ओर बढ़ रहा है।
शासक वर्ग की जब पीढ़ी परिवर्तित होती है, तो देशों में भी परिवर्तन होता है और होते हुए दिखाई भी देता है। वैसा ही पीढ़ी परिवर्तन सऊदी अरब में हो रहा है।
प्रथम सऊदी शासक किंग बिन सऊद, जो 1932 में सऊदी अरब के शासक बने थे, अब तक के सभी शासक उन्हीं के पुत्र रहे हैं और यदि वर्तमान क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, पूर्व क्राउन प्रिंस 62 वर्षीय मोहम्मद बिन नाईफ (जो स्वयं भी प्रथम शासक बिन सऊद के पुत्र ही हैं), को हटाकर स्वयं को क्राउन प्रिंस घोषित नहीं करते तो यह पीढ़ी परिवर्तन शायद सऊदी अरब में नहीं हो पाता।
मानवाधिकार हनन, प्रेस की स्वतंत्रता आदि की बात न करें तो यह तो सत्य है कि प्रिंस सलमान ने सऊदी अरब को मजहबी कट्टरता से निकालने के लिए बहुत कार्य किये हैं, जैसे महिलाओं को आगे लाना, कई पाबंदियां ढीली करना आदि। साथ ही उन्होंने शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया है जिसमें अपने नागरिकों को सर्वधर्म सद्भावना के भाव से जोड़ने हेतु बौद्ध धर्म तथा रामायण व महाभारत को भी स्कूली शिक्षा में जोड़ा है। इसके अलावा योग और आयुर्वेद को भी शिक्षा में शामिल किया गया है। यह सब क्राउन प्रिंस के विजन 2030 के तहत शामिल किया गया है। रामायण व महाभारत तथा बुद्ध की शिक्षा का स्कूली शिक्षा में आना वास्तव में खुले दिमाग की ओर तथा सद्भावना की दृष्टि से बड़ी पहल है। यदि अब तक की सऊदी कट्टरता को देखें तो वह मजहबी से अधिक अपने राजनैतिक ध्येयों को सिद्ध करने हेतु सऊदी सरकार द्वारा प्रेरित थी।
1979 की ईरानी क्रांति के उपरांत ईरान तथा सऊदी अरब में होड़ थी इस्लामिक दुनिया का नेता बनने की, और सऊदी अरब ने इस राजनैतिक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मजहबी कट्टरता को न केवल अपने देश में प्रोत्साहित किया बल्कि इसका वैश्विक निर्यात भी किया और इस कृत्य में पश्चिमी देशों ने सहयोग भी किया। यह इसलिए था क्योंकि यह पश्चिमी खेमा बनाम यूएसएसआर के बीच शीत युद्ध का कालखंड था। सऊदी अरब द्वारा निर्यातित कट्टरता ने अफगान युद्ध में सोवियत सेना के खिलाफ मुजाहिद्दीन (मजहबी लड़ाके) निर्यात करने शुरू किए, जिन्हें पश्चिमी देशों ने हथियार व प्रशिक्षण दिया। वैसे सऊदी अरब खुद भी कम्युनिज्म से डरा था। सऊदी का पड़ोसी दक्षिणी यमन (1969-1990) समाजवादी हो गया था तथा मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट पार्टी के शासन में था। पर अब दुनिया के हालात वैसे नहीं हैं और इसे नई पीढ़ी के प्रिंस सलमान भली-भाँति समझ रहे हैं। यही कारण है कि आज के समय में सऊदी अरब का सबसे बड़ा मित्रदेश यदि कोई है तो वह इजराइल है। और आज का सऊदी अरब, ईरान से भी संबंध सुधारने की प्रक्रिया में है।
बदले हालात की नस पर हाथ रखने वाले प्रिंस सलमान का कर्तव्य भारत-पाकिस्तान से रिश्तों में भी साफ दिखता है। पुरानी पीढ़ी के शासक पाकिस्तान के मित्र थे, तो प्रिंस सलमान भारत तथा प्रधानमंत्री मोदी के। यही कारण है कि मोदी को सऊदी अरब का सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार दिया गया तथा इमरान को फटकार। भारतीय सेनाध्यक्ष को सऊदी अरब के दौरे पर आमंत्रित किया गया और बाजवा को प्रिंस सलमान से मिलने का समय भी नहीं दिया गया।
सऊदी अरब में योग के प्रति प्रेम को देख भारत सरकार ने भी वर्ष 2018 में सऊदी योग गुरु नौआॅफ मरवाही को पद्मश्री पुरस्कार दिया। धारा 370 के खत्म करने के समय भी सऊदी अरब भारत के संग खड़ा था और आज जब भारत, कोरोना से लड़ रहा है, तब सऊदी अरब, भारत को आॅक्सीजन भेजकर अपनी मित्रता का परिचय दे रहा है। यह सब तब है जब प्रिंस सलमान क्राउन प्रिंस हैं, राजा बनने के बाद और भी अच्छी अपेक्षा की जा सकती है।
डॉ. गुलरेज शेख
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