तमिलनाडु स्थित पेरंबलुर जिले के वी कलाथुर इलाके के मुस्लिम साल, 2012 से हिन्दुओं के उत्सवों में न केवल रोड़ा अटकाते रहते, बल्कि मंदिरों से निकलने वाले जुलूस का विरोध करते चले आ रहे हैं। इसी को लेकर दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘धार्मिक’ असहिष्णुता सेकुलर देश के लिए अच्छी नहीं है और एक ‘धार्मिक’ समूह द्वारा किया गया ‘विरोध’ दंगे एवं विवाद में तब्दील हो सकता है। यदि अन्य द्वारा भी पारस्परिक विरोधी रवैया अपनाया जाए.
न्यायमूर्ति एन किरुबाकान और न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन की पीठ ने मामले की सुनवाई की। अदालत ने कहा कि तीसरे प्रतिवादी (पुलिस अधीक्षक) के हलफनामे से जाहिर है कि वर्ष 2011 तक संबंधित मंदिर के तीन दिवसीय उत्सव का आयोजन शांतिपूर्वक होता रहा और वर्ष 2012 के बाद से मुसलमानों ने कुछ हिंदू त्योहारों को ‘पाप’ करार देते हुए आपत्ति दर्ज करानी शुरू की। पीठ ने कहा कि भारत एक सेकुलर देश है और केवल इसलिए कि एक विशेष इलाके में एक मजहबी समूह बहुसंख्यक है। अन्य धर्म के लोगों को त्योहार मनाने या जुलूस निकालने से नहीं रोका जा सकता।
अदालत ने आगे कहा, “इस मामले में, एक विशेष धार्मिक समूह की असहिष्णुता उन त्योहारों पर आपत्ति जताते हुए दिखाई जा रही है, जो दशकों से एक साथ आयोजित किए जा रहे हैं। गलियों और सड़कों से निकलने वाले जुलूस को सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित करने की मांग की गई क्योंकि इलाका मुस्लिम बहुल है।” न्यायालय ने तर्क दिया कि अगर इस तरह के मामलों को स्वीकार किया गया तो कोई भी अल्पसंख्यक समुदाय देश के ज्यादातर हिस्सों में अपने त्योहारों को मना ही नहीं पाएगा।
उल्लेखनीय है कि इस इलाके के कुछ स्थानीय मुस्लिम साल, 2012 से हिंदू उत्सवों पर होने वाले जुलूसों,यात्राओं को निकाले जाने का विरोध कर रहे थे। इन कट्टरपंथियों ने हिंदू त्योहारों को ‘पाप’ करार दे रखा था।
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