कोरोना वायरस का ऐसा डर है कि किसी संक्रमित व्यक्ति से उसके अपने लोग भी दूर रहना चाहते हैं, लेकिन सूरत के मजूरा गेट स्थित सिविल अस्पताल और स्मीमेर स्थित नगरपालिका अस्पताल में संघ के स्वयंसेवक मरीजों के पैर दबाते हैं, ताकि उनकी थकान दूर हो और वे अच्छी नींद ले सकें। इसके अलावा वे लोग मरीजों की हर वह सेवा कर रहे हैं, जिसकी वे मांग करते हैं
महामारी के इस दौर में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक अनेक तरह के सेवा कार्य कर रहे हैं। कोई आक्सीजन बांट रहा है, कोई जरूरतमंदों तक खाना पहुंचा रहा है, कोई दवाई बांट रहा है, तो कोई मरीजों को घर से अस्पताल पहुंचा रहा है। कोरोना का इतना डर है कि कोई बेटा भी अपने कोरोना पीड़ित माता-पिता की सेवा नहीं करना चाहता है, लेकिन संघ के स्वयंसेवक कोरोना को चुनौती देते हुए सेवा कार्य कर रहे हैं। ऐसे स्वयंसेवकों की कोई कमी नहीं है। उदाहरण के लिए सूरत के दो स्वयंसेवक कौशिक दोबरिया और अमित भाई को ले सकते हैं। ये दोनों संघ के दायित्ववान कार्यकर्ता हैं। कौशिक सुदामा नगर और अमित मोटा वरछा नगर के नगर कार्यवाह हैं। दोनों ‘नीलकंठ डायमंड’ कंपनी में एक साथ कार्य करते हैं। पिछले दिनों जब अस्पतालों में मरीजों की दुर्दशा होने लगी, तो इनके मन में आया कि उनके लिए कुछ करना चाहिए। फिर दोनों ने अपने नगर के कार्यकर्ताओं से चर्चा की कि किस तरह मरीजों की सेवा की जा सकती है। तय हुआ कि स्वयंसेवक विभिन्न अस्पतालों में जाएं और वहां पता करें कि वे क्या मदद कर सकते हैं। इसी सोच के साथ लगभग दो हफ्ते पहले कौशिक और अमित मजूरा गेट स्थित सिविल अस्पताल पहुंचे। वहां उन्होंने अस्पताल के प्रभारी से बात की और कहा कि वे मरीजों की सेवा करना चाहते हैं। आजकल अस्पतालों में सेवा करने वालों की जरूरत तो है ही। उसको देखते हुए उन दोनों को मरीजों की सेवा करने की अनुमति भी मिल गई। इसके बाद वे दोनों पीपीई किट पहन कर कोरोना मरीजों की सेवा में जुट गए। जो खाना नहीं खा सकते थे, उन्हें खाना खिलाने लगे, जिन्हें पानी की जरूरत थी, उन्हें पानी देने लेग। उसी दौरान कुछ बुजुर्ग मरीजों ने कहा कि कई दिनों से बिस्तर पर रहने के कारण पैरों में दर्द होता है। इस कारण नींद नहीं आती है। यह सुनते ही कौशिक एक मरीज के पैरों को दबाने लगे। कुछ देर बाद ही उस मरीज को नींद आ गई। इसके बाद उन्होंने कुछ और मरीजों के पैर दबाए और वे सभी आराम से सो गए। यही काम अमित ने भी किया।
इसके बाद दोनों ने तय किया कि घर चलाने के ए नौकरी करते हुए अस्पताल में सेवा करनी है। अब वे दोनों हर दिन सायं 5 बजे दफ्तर से छुट्टी मिलते ही सिविल अस्पताल पहुंच जाते हैं। फटाफट पीपीई किट पहनते हैं और मरीजों की सेवा में लग जाते हैं। 10 बजे के लगभग घर वापस आते हैं। ऐसा वे पिछले 18 दिन से कर रहे हैं। हालांकि अब उन्होंने अपने स्वयंसेवकों की एक टीम बना ली है, जिसमें लगभग 30 स्वयंसेवक हैं। ये सभी बारी-बारी से सिविल अस्पताल और स्मीमेर स्थित नगरपालिका अस्पताल में सेवा कर रहे हैं। हर स्वयंसेवक एक दिन में दो घंटे अस्पताल में सेवा करते हैं।
कौशिक से पूछा कि यह ऐसी बीमारी है कि कोई अपना भी अपने की सेवा नहीं करना चाहता है। क्या आपको कोरोना का डर नहीं लगता है? इस पर वे कहते हैं,‘‘जहां सेवा का भाव रहता है, वहां किसी डर की जगह नहीं होती है। डर होता तो सेवा नहीं कर पाता। संघ में स्वयंसेवकों को जो बताया जाता है, उस पर चलने का प्रयास कर रहा हूं। समाज के लिए कुछ करने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता है। यह सौभाग्य संघ के स्वयंसेवकों को मिला है तो वे कर रहे हैं।’’
उल्लेखनीय है कि कौशिक और अमित की टोली 2020 के लॉकडाउन के दौरान भी लोगों की सेवा में लगी थी। इस कारण टोली के प्राय: सभी सदस्य कोरोना से पीड़ित हो चुके हैं। अमित कहते हैं,‘‘यह अच्छा ही हुआ कि हमारी टोली के सदस्य भी कोरोना से पीड़ित हुए, फिर ठीक भी हो गए। इससे हम लोगों की सेवा का दायरा बढ़ गया। अब हम लोग प्लाज्मा भी दान कर रहे हैं। यदि हम लोग संक्रमित नहीं होते तो प्लाज्मा दान नहीं कर पाते। इसलिए प्रभु जैसा रख रहे हैं, वैसा रह रहे हैं और सेवा करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।’’
उल्लेखनीय है कि अमित 5 मई तक पांच बार और कौशिक दो बार प्लाज्मा दान कर चुके हैं। बता दें कि प्लाज्मा वही व्यक्ति दान कर सकता है, जो ‘पॉजीटिव’ के बाद ‘नेगेटिव’ हुआ हो। ‘नेगेटिव’ होने के 30 दिन बाद उस व्यक्ति की जांच की जाती है और पता लगाया जाता है कि वह प्लाज्मा दान करने की स्थिति में है या नहीं।
अब इन स्वयंसेवकों की सेवा की प्रशंसा हर कोई कर रहा है। वास्तव में इनका कार्य प्रशंसनीय और अनुकरणीय है।
-अरुण कुमार सिंह
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