दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल घर में बंद हो गए हैं। दरअसल उनकी पत्नी कोविड पॉजिटिव हो गई हैं। ये अलग बात है कि दिल्ली सरकार के कर्मचारी अपनी जान हथेली पर लेकर कोविड प्रोटोकॉल के तहत ड्यूटी पर हैं। वह तभी अवकाश ले सकते हैं जब वह स्वयं कोविड पॉजिटिव हों
दिल्ली सरकार हो या दिल्ली नगर निगम परिवार में कोविड मरीज होने के बाद क्वारंटाइन रहने का न कोई दिशा निर्देश है, न कोई ऐसी छुट्टी दी जा रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री के अरविंद केजरीवाल क्वारंटाइन होने के बाद दिल्ली सरकार के कर्मचारी ही यह सवाल पूछ रहे हैं कि क्या बिना अपनी कोविड रिपोर्ट के केजरीवाल की सरकार अपने कर्मचारियों को छुट्टी देगी ? जब दिल्ली को अपने मुख्यमंत्री की सबसे अधिक जरूरत है, वह पत्नी सुनीता केजरीवाल के कोरोना रिपोर्ट को दिखाकर घर में ‘आइसोलेट’ हो गए हैं। उनकी पत्नी की कोरोना रिपोर्ट 20 अप्रैल को पॉजिटिव आई है। दिल्ली शिक्षक संघ से जुड़े रामवीर सोलंकी के अनुसार- ‘’किसी शिक्षक या दिल्ली सरकार के कर्मचारी का छुट्टी पर जाने के लिए खुद का कोविड पॉजिटिव होना आवश्यक है।‘’
वास्तव में केजरीवाल का ‘आइसोलेट’ होना दिल्ली की जनता के सवालों से भाग कर मुंह छुपाने जैसा है। दिल्ली के लोग अस्पताल दर अस्पताल भटक रहे हैं। दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी है और दिल्ली की सरकार केन्द्र से मदद मांगने के अलावा कुछ नहीं कर पा रही है। यदि सबकुछ दिल्ली वालों के लिए केन्द्र की सरकार को ही करना है फिर दिल्ली वालों ने केजरीवाल को क्यों चुना है ?
अब दिल्ली वालों के सवालों का जवाब देने के लिए केजरीवाल सामने नहीं आ रहे हैं। मनीष सिसोदिया प्रेस कांफ्रेन्स करते हैं और मोदी सरकार से उन्हें क्या-क्या चाहिए यह बताकर फिर अगले दिन के सवाल बनाने में व्यस्त हो जाते हैं। इस बीच दिल्ली वालों का क्या हाल है, यह देखने के लिए वे पलट कर भी नहीं देखते। ना ही उनके सवालों का जवाब देने को वे तैयार हैं। केजरीवाल के मैदान से भागने के पीछे की एक यह भी वजह बताई जा रही है।
अब इस सवाल का जवाब कौन देगा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली में निजी लैब में टेस्टिंग क्यों बंद कराई? क्या केजरीवाल चाहते हैं कि दिल्ली में अधिक से अधिक लोगों का टेस्ट न हो। जिससे अधिक केस सामने आ ना पाएं और राजधानी के अंदर मामले को दबाया जा सके।
कोविड के खतरे से हम पिछले साल ही परिचित हो गए थे। बीते एक साल में केजरीवाल सरकार ने राजधानी में न नए अस्पताल की व्यवस्था की। ना अधिक बेड का इंतजाम कराया। ना ऑक्सीजन की व्यवस्था कराई। वास्तव में इस समय दिल्ली के अंदर लोगों को दवा से अधिक दिल्ली सरकार की अव्यवस्था मार रही है। दिल्ली सरकार पर इस तैयारी की जिम्मेवारी थी। यदि वह समय पर दिल्ली के लिए यह सारी सामग्री नहीं जुटा पाए और मोदी सरकार के भरोसे उन्होंने पूरा साल काट दिया तो दिल्ली की सरकार हत्यारी है, उन लोगों की जो राजधानी में अव्यवस्था के शिकार हो रहे हैं।
दिल्ली कह रही है मुख्यमंत्री केजरीवाल से- ‘‘अखबारों और चैनलों को एड नहीं केजरीवालजी बल्कि दिल्ली वालों को बेड दो।’’
दिल्ली भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता आदित्य झा बताते हैं – ‘‘दिल्ली सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा और डेनिक्स (दिल्ली, अंडमान एंड निकोबार आइसलैंड, दादरा एंड नगर हवेली एंड दमन एंड दीव सिविल सर्विस) के अधिकारियों को अस्पतालों का नोडल आफिसर बनाया है लेकिन हालात ये है कि या तो इनसे बात करनी मुश्किल है और अगर बात हो जाए तो सहायता मिलना और भी मुश्किल है।’’
झा दिल्ली सरकार से पूछते हैं कि ऐसे अधिकारियों को लगाने का क्या फायदा जो दिल्ली वालों के वक्त पर काम ना आ सकें?
दिल्ली सरकार की तरफ से बार-बार बताया जा रहा है कि हमारे पास ऑक्सीजन खत्म है। क्या यह बता देने से एक सरकार की जिम्मेवारी खत्म हो जाती है? दूसरे राज्य भी अपने लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था कर ही रहे हैं। लेकिन आप क्यों नहीं कर पा रहे? यदि सरकार ने पिछले एक साल में ईमानदार प्रयास किया होता तो आज यह नौबत ना आती।
दिल्ली बॉर्डर पर बैठे राकेश टिकैत के लोगों को दिल्ली सरकार ने पानी-बिजली, खाना मुहैया कराया था। बॉर्डर पर बैठे लोग दिल्ली के नहीं है। उनकी मदद करके केजरीवाल ने कुछ गलत नहीं किया लेकिन दिल्ली के लोगों ने केजरीवाल को चुना है। दिल्ली के लोगों के प्रति केजरीवाल की जिम्मेवारी पहली बनती है। आज जब दिल्ली के लोगों की मदद करने का समय आया तो पत्नी की पॉजिटिव रिपोर्ट दिखाकर केजरीवाल ‘आइसोलेट’ हो गए। दिल्ली वालों के खाना-पानी की चिन्ता क्या केजरीवाल सरकार को नहीं करनी चाहिए। केजरीवाल के लोगों ने जिन आढ़तियों को पानी-खाना पहुंचाया था। आरोप है कि उन्होंने हरियाणा सरकार के ऑक्सीजन का टैंकर लूटा। क्या अरविन्द केजरीवाल फिर एक बार दिल्ली में अराजकता की राजनीति करने की मंशा रखते हैं? यदि ऐसा नहीं है तो आढ़तियों के माध्यम से हरियाणा में ऑक्सीजन की सप्लाई को क्यों बाधा पहुंचाई जा रही है?
इतना ही नहीं जिस कथित किसान आंदोलन का केजरीवाल ने समर्थन किया। उनके चलते दिल्ली में ऑक्सीजन लाने वाली गाड़ियों को 100 किलोमीटर अतिरिक्त सफर तय करना पड़ा। वहीं राकेश टिकैत कोविड 19 के इस भयावह दौर में खुद कोविड 19 इंजेक्शन लेकर बाकी सभी की जान को खतरे में डाल रहे हैं। राकेश टिकैत की रोजा इफ्तार करते हुए तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई। क्या केजरीवाल ऐसे लोगों की मदद करते हैं ? और दिल्ली को जब उनसे मदद की जरूरत है तो खुद घर में बंद हो गए हैं।
स्टील उद्योग से जुड़े वेदांत मिश्रा के अनुसार – ‘‘एक छोटे से ऑक्सीजन प्लांट को लगाने की लागत 30 लाख के लगभग आती है, ये इसलिए पता है क्योंकि मैं स्टील इंडस्ट्री में काम करता हूं। और स्टील बिना ऑक्सीजन के बन ही नहीं सकता।’’ वह आगे बताते हैं- ‘‘ मेरी पिछली कंपनी का प्लांट नागपुर के पास वर्धा में था, एक ग्राहक था, जिसका स्वयं का ऑक्सीजन प्लांट था। उनसे पूछा था मैंने, उन दिनों अपना व्यवसाय करने का भी बड़ा मन था तो लोगों से जानकारी लेता रहता था। आप सोचिये किसी भी राज्य सरकार के लिए प्रत्येक जिले में 10-20 टन का प्लांट लगवाना कौन सी बड़ी बात है?’’ वह कहते हैं ‘‘शेष राज्य तो फिर भी किसी तरह इंतजाम कर रहे हैं रहे हैं लेकिन दिल्ली का हाल ऐसा क्यों है? दिल्ली में केजरीवाल क्या ऑक्सीजन के चार-छह प्लांट नहीं लगवा सकते थे? अभी भी देर नहीं हुई केजरीवाल डीआरडीओ से मदद मांग सकते हैं। वे तीन दिनों में प्लांट तैयार करके दे सकते हैं लेकिन उसके लिए केजरीवाल और सिसोदिया को मेहनत करनी पड़ेगी। और दिल्ली सरकार को आदत है, बात-बात पर केन्द्र के सामने हाथ फैलाकर गिड़गिड़ाने की। उन्हें उससे बाहर आने कोशिश करनी चाहिए और अपना पुरुषार्थ दिखाना चाहिए।’’
आज दिल्ली को कोविड 19 के महामारी काल में केजरीवाल के मोहल्ला क्लीनिक की सबसे अधिक जरूरत है। मनीष सिसोदिया प्रतिदिन ऑक्सीजन मांगते हुए दिख रहे हैं लेकिन उनके मोहल्ला क्लीनिक दिल्ली वालों के लिए क्या कर रहे हैं, वे नहीं बताते ? यह क्लीनिक भी कहीं आने वाले समय में केजरीवाल सरकार का कोई घोटाला न निकले। दिल्ली केजरीवाल सरकार से पूछ रही है अब कोविड मरीजों के लिए कितने बेड खाली हैं? वहां अब तक कितने मरीजों को एडमिट किया गया है? यदि एक भी नहीं तो क्या मोहल्ला क्लीनिक क्या सिर्फ विज्ञापनों में थे। मोहल्ला क्लीनिक के विज्ञापन पर केजरीवाल सरकार ने अब तक कितना पैसा बहाया है? यही जानकारी दिल्ली वालों को दे दीजिए।
दिल्ली वालों के सवालों से बचने के लिए ही क्या केजरीवाल एकांतवास में चले गए हैं ? दिल्ली ने उन्हें गद्दी दी है तो दिल्ली सवाल तो पूछेगी। इतनी बड़ी संख्या में दिल्ली से मजदूरों का पलायन हो रहा है। उन्हें रोकने के लिए सरकार के पास क्या योजना थी? किसी खबरिया चैनल पर उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का कोई बयान आया क्या? दिल्ली के मजदूर, दिल्ली की सरकार पर विश्वास क्यों नहीं कर पा रहे? मीडिया रिपोर्ट के अनुसार – मजदूर लगातार दिल्ली से पलायन कर रहे हैं।
जबकि दिल्ली की सरकार ‘एनजीओ’ वालों की सरकार है, आम आदमी पार्टी के नेता ही बताते हैं कि उनका सबसे बड़ा वोट बैंक दिल्ली की झुग्गियों में रहता है फिर भी दिल्ली के मजदूरों की इतनी उपेक्षा दिल्ली सरकार में हो रही है। दिल्ली सरकार का कोई प्रतिनिधि बता सकता है कि इस सरकार में यह सब क्यों हो रहा है? जब दिल्ली के लिए सब कुछ केन्द्र की मोदी सरकार को ही करना है फिर दिल्ली में केजरीवाल सिर्फ अराजकता फैलाने और बयानबाजी के लिए ही चुने गए हैं क्या ?
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