अनेक संगठनों के सर्जक थे राष्ट्रभक्त ठेंगड़ी
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अनेक संगठनों के सर्जक थे राष्ट्रभक्त ठेंगड़ी

by WEB DESK
Apr 20, 2021, 01:58 pm IST
in पुस्तकें, दिल्ली
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पुस्तक समीक्षा

पुस्तक का नाम : भारतीय मजदूर संघ संस्थापक दत्तोपंत ठेंगड़ी : जीवन वृत्त
लेखन-संपादन : अमरनाथ डोगरा
पृष्ठ संख्या : 176
मूल्य : 100/-
प्रकाशक : सुरुचि प्रकाशन, केशव कुंज
झण्डेवालान, नई दिल्ली-110055

अपनी आत्मकथा में हिटलर ने लिखा है, ‘‘एक ही व्यक्ति में तत्वचिंतक, संगठक और नेता के गुण हों तो यह विश्व की अत्यंत दुर्लभ घटना होगी।’’

भारत में उक्त दुर्लभ घटना दत्तोपंत ठेंगड़ी के रूप में हो चुकी है। विश्व में ठेंगड़ी जी अकेले ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने भारतीय तत्व-चिंतन, जिसे अनादि कहा गया है, उसे अर्वाचीन वैश्विक परिवेश के दृष्टिगत युगानुकूल परिधान में प्रस्तुत किया है। साथ ही सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में अनेक जनसंगठनों का निर्माण और उनका कुशल नेतृत्व किया है।

ठेंगड़ी जी को जानने के लिए ‘दत्तोपंत ठेंगड़ी : जीवन वृत्त’ को पढ़ सकते हैं। वस्तुत: यह पुस्तक दत्तोपंत जी के बहुआयामी व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित संक्षिप्त जीवनी ही है, जिसमें उनका इतिहास, वैचारिक पक्ष तथा उनके बारे में व्यक्त किए गए कतिपय विचारों का सारांश संकलित किया गया है। प्रखर राष्ट्रवादी ठेंगड़ी जी ने भारतीय मजदूर संघ के निर्माण के समय कहा था, ‘‘लोग अभी तक यही समझते रहे कि ‘मजदूर’ और मालिक दो ही पक्ष हैं। वे यह भूल गए कि एक अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष राष्टÑ है।’’ समरस समाज रचना के महापुरोधा तथा श्रम संघ रणक्षेत्र के महायोद्धा दत्तोपंत जी आदर्शवादियों के आदर्श अलौकिक प्रतिभावान महापुरुष थे।

पुस्तक रूप में दत्तोपंत जी की वांग्मयी मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी के संक्षिप्त किन्तु भावपूर्ण संदेश से हुई है। प्रस्तावना भारतीय मजदूर संघ के राष्टÑीय अध्यक्ष सजीनारायणन सी.के. ने लिखी है। पुस्तक के संपादकीय में अमरनाथ डोगरा लिखते हैं कि पूज्य स्वामी सत्यमित्रानंद जी ने कहा था, ‘जिन्होंने चाणक्य को नहीं देखा वे दत्तोपंत ठेंगड़ी को देख लें।’ राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक पी. परमेश्वरन (जिनका कुछ दिन पहले ही निधन हुआ है) से किसी ने पूछा कि भगवद्गीता में ‘जीवन मुक्त’ शब्द की व्याख्या क्या करेंगे? उन्होंने कहा, ‘दत्तोपंत इसके जीवंत उदाहरण हैं।’

पुस्तक में एक स्थान पर बताया गया है कि दत्तोपंत जी को संघ प्रचारक बनाने में उनकी माताजी की बड़ी भूमिका रही। लेखक ने लिखा है, ‘‘सौभाग्यवती जानकीबाई (दत्तोपंत जी की मां) का जीवन वन्दनीय है, प्रेरक प्रकाशपुंज है। इतिहास में जीजीबाई समान अतुलनीय मातृशक्ति का गौरवशाली परिचय मिलता है, जिन्होंने अपनी संतान को दिव्य गुणों से युक्त किया। जानकीबाई ने अपने ज्येष्ठ पुत्र (दत्तोपंत) को सौंप दिया, जिन्होंने उन्हें संस्कारित करके संघ प्रचारक बनाकर राष्टÑ देवता के चरणों में अर्पित कर दिया।’’ ठेंगड़ी जी मानते थे कि किसी उद्योग का मालिक जो है, वह तो है ही, लेकिन इसके साथ ही उसमें काम करने वालों को भी उस उद्योग का स्वामी माना जाना चाहिए। वे कहते थे, ‘‘जैसे पैसे का स्वामित्व है वैसे ही पसीने का हो। पसीना भी उद्योग की पूंजी का एक अंग है। इस दृष्टि से जैसे पैसा देने वाला वैसे ही पसीना बहाने वाला भी अपने उद्योग का भागीदार है। इस कारण पसीना बहाने वाले भागीदार को भी उद्योग का स्वामी मानना चाहिए।’’ आने वाले समय में दुनिया में भारत और भारतीयता की धाक जमेगी, यह भी ठेंगड़ी जी कह गए थे। एक बार उन्होंने कहा था, ‘‘यह शताब्दी हिन्दू शताब्दी होगी अर्थात् यह मानवीय शताब्दी होगी, क्योंकि हिन्दू और मानव पर्यायवाची हैं। इस मंगल सूचक दृश्य के अवसर पर हम सभी एक पवित्र शपथ लें कि हम वही करेंगे जिससे कि न्याय और स्थाई शांति प्राप्त हो, हमारे मध्य भी और सभी राष्ट्रों में भी। किसी के प्रति द्वेष और दुर्भावना नहीं रखेंगे। सत्य के साथ लगातार खड़े रहेंगे, क्योंकि भगवान ने हमें सत्य को देखने की दृष्टि दी है। यह वही प्रतिज्ञा है जिसे इस पृथ्वी पर अवतरित होने वाले सबसे महान मानवतावादी ने बताया था।’’

पुस्तक को 176 पृष्ठ तक सीमित रखा गया है, फिर भी दत्तोपंत जी के जीवन के महत्वपूर्ण पक्ष इसमें सूत्ररूप में उजागर हुए हैं। सुंदर आवरण पृष्ठ, उत्तम सामग्री एवं बढ़िया छपाई के कारण पुस्तक आकर्षक, पठनीय और प्रेरणादायक है। दत्तोपंत ठेंगड़ी जन्मशताब्दी वर्ष के चलते पुस्तक की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। हालांकि पुस्तक में प्रूफ की अशुद्धियां खटकती हैं। कई शब्द ऐसे भी हैं, जिनका चलन कम है। यदि पुस्तक में ये कमियां नहीं होतीं तो अच्छा होता।
-समीक्षक

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