अभिषेक तिवारी
ओशो ने एक जगह लिखा है कि तुमने क्रोध किया कि तुम हारे। क्रोध तुम्हारी हार का सबूत है। मैं ओशो की बात में अपनी बात जोड़ू तो यूं कहूंगा कि तुम उस स्थिति को सम्भाल न सके कि तुमने सामने वाले की शक्ति के आगे खुद को नतमस्तक कर दिया कि तुम भीतर से मान चुके हो कि सामने वाला तुम पर भारी है।
क्रोध उसी का परिचायक है। इसलिए देखिएगा आप जब-जब कमज़ोर पड़ते हैं, क्रुद्ध हो जाते हैं। शक्तिशाली लोगों को गुस्सा नहीं आता और न ही वे असंयमित होते हैं। शक्तिशाली लोग अंत तक मर्यादा में रहते हैं, भाषा में रहते हैं, सीमा में रहते हैं। लेकिन कमज़ोर असंसदीय भी होता है, क्रुद्ध भी, हिंसक भी और असहाय भी।
आप उपर्युक्त विवेचना के आधार पर पश्चिम बंगाल चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ममता बनर्जी की भाव-भंगिमा, भाषा-विचार को देखिए। आप पाएंगे नरेंद्र मोदी एकदम शांत हैं। जबकि ममता नाराज़, परेशान, क्रुद्ध और बेचैन। मोदी उन्हें प्रेम से दीदी कह रहे हैं, चुटकुले बोल रहे हैं, शांति से सम्मान से अपने आइडियाज़ सुना रहे हैं, जबकि ममता एक पीएम को तू—तू कर रही हैं, चिल्ला रही हैं, पसीने—पसीने हो रही हैं। असंसदीय तेवर में मोदी को जैसे डांट रही हों वैसे बोल रही हैं। 34 साल के बरगद को उखाड़ फेंकने वाली नेत्री को ऐसी शैली अपनाते देख दुःख होता है।
हालांकि दोनों ही संवाद कर रहे हैं। दोनों ही जनता को साक्षी बनाकर एक दूसरे पर प्रश्न उछाल रहे हैं, उत्तर दे रहे हैं, ताने मार रहे हैं, चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन दोनों की शैली में ज़मीन आसमान का फर्क है। इसी शैली में सारा रहस्य छिपा हुआ है। अगर आपने इसे डिकोड कर लिया तो सब समझ लिया। और यहां चूक गए तो सब चूक गए। चुनावों में क्या होगा इसे जानना हो तो चैनलों पर नहीं दोनों लोगों की शैलियों में जाना होगा। दोनों लोग अपनी रैलियों में वे सूत्र दे चुके हैं, जिसकी आपको प्रतीक्षा है।
इसी शैली में दोनों का भी मन प्रकट हो रहा है और राज्य का भी। इसी शैली में दोनों का अंतर बाहर आ जा रहा है। दोनों पक्ष क्या सोच रहे हैं, क्या चाह रहे हैं और क्या जी रहे हैं, इसे जानना हो तो इन दोनों नेताओं की चुनावी शैली पर दृष्टि गड़ा लीजिए। दोनों दलों का पूरा कैम्पैन इसी पर निर्धारित हुआ है, इसी के आधार पर फ्रेम्ड हुआ है।
ममता बनर्जी के प्रति घृणा की दो मुख्य वज़हें हैं। एक, पार्टी कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी और दूसरी (जबकि यही पहली है) मुस्लिम तुष्टीकरण। बंगाल की जनता मुस्लिम तुष्टीकरण से तबाह हो चुकी है। एक आम बंगाली खुद को साम्प्रदायिक खेमे में नहीं देखता, लेकिन पिछले दस सालों में बंगाल में ऐसी हवा चली है कि वह इस ओर से जागरूक हुआ है। वह रोजमर्रा के जीवन में बंगाल सरकार द्वारा मुसलमानों के पक्ष में होते जाने से क्रुद्ध है। भाजपा की मज़बूती की यही प्रमुख वजह है।
यहां एक चीज और गौर करने वाली है कि राज्य में विधान सभा चुनाव भाजपा नहीं लड़ रही बल्कि बंगाल की जनता लड़ रही है। ममता मोदी के डर से इसलिए चंडी पाठ कर रही हैं क्योंकि उन्हें बंगालियों के भीतर का हिन्दू दिख गया है। यह डर उसी का प्रकटीकरण है
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