संस्कृत के समीप है रोमा भाषा
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संस्कृत के समीप है रोमा भाषा

by WEB DESK
Apr 7, 2021, 03:45 pm IST
in दिल्ली
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जमीर अनवर

भारतीय और रोमा समुदाय एक-दूसरे से सांस्कृतिक, आनुवंशिक, भाषायी, शारीरिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से काफी करीब हैं। दरअसल, ये लोग मूलत: भारतीय ही हैं। इनके वंशजों को सन् 1018 में महमूद गजनवी अपने साथ अफगानिस्तान ले गया था। कालक्रम में इनकी संस्कृति का नाम रोमा हो गया। आज पूरी दुनिया में रोमाओं की संख्या लगभग सवा दो करोड़ है। गत अंक में आपने रोमाओं के पूर्वजों के बारे में पढ़ा। इस अंक में आप उनकी भाषा के बारे में जानें

रोमा भाषा का एक साहित्य

रोमा भाषा का उद्गम इंडो-यूरोपीय परिवार की इंडो-आर्यन शाखा से हुआ है। इसका संस्कृत, प्राकृत और अन्य भारतीय भाषाओं के साथ अटूट संबंध है। उत्तर भारत की भाषाओं से रोमा का संबंध इतना विशिष्ट है कि भाषाई प्रशिक्षण के बिना भी साधारण व्यक्ति रोमा और भारतीय भाषाओं के शब्दों के बीच समानता की पहचान कर सकते हैं। रोमा और भारतीय भाषाओं के बीच संबंधों की जांच करते समय प्रो. जोहान क्रिश्चियन क्रिस्टोफ रूडिगर ने रोमा भाषा के व्याकरण और शब्दावली के तुलनात्मक विश्लेषण के महत्वपूर्ण संदर्भों को ध्यान में रखा था। उन्होंने 1782 में पूर्वी भारत की भाषाओं से रोमा की उत्पत्ति को सत्यापित किया। उन्होंने भारतीय भाषाओं से संपर्क के परिणामस्वरूप रोमा भाषा की वाक्य रचना में परिवर्तन की ओर भी संकेत किया है। उनके निष्कर्ष के अनुसार रोमा और भारतीय भाषाएं समान हैं तथा रोमा और भारतीय किसी भी तरह एक-दूसरे से भिन्न नहीं हैं।
अलेक्जेंड्रे जी पसापति ने 1870 में फ्रांसीसी भाषा में (ए३४ीि२ २४१ ’ी२ ळूँ्रल्लॅँ्रंल्ली२ ङ्म४ इङ्मँीे्रील्ल२ ीि ’’ऐस्र्र१ी ड३३ङ्मेंल्ल) ग्रंथ प्रकाशित किया था, जो रोमा वंशजों की अटकलों को दूर करता है। यह अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि रोमा भाषा इंडो-आर्यन भाषा परिवार की ही सदस्य है और मूल रूप से संस्कृत के साथ जुड़ी है। अगस्त पोट्ट (1844-45) ने अपने तुलनात्मक व्याकरण और रोमा के व्युत्पत्ति कोश को संकलित किया। उन्होंने कई दर्जन वर्णनात्मक स्रोतों की बाबत बताया, जो यूरोपीय रोमा बोलियों की विविधता को दर्शाते हैं। पोट्ट को आमतौर पर आधुनिक रोमा भाषा-विज्ञान के जनक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने इस भाषा की ऐतिहासिक और संरचनात्मक सुसंगतता को स्थापित किया और पूर्व-यूरोपीय ऋण शब्दावली की परतों की ओर इंगित किया है, जो भारत से यूरोप तक रोमा के प्रवासी इतिहास पर दृष्टि डालती हैं।
जॉर्ज हेनरी बॉरो का कथन है कि रोमा भाषा विश्व की किसी भी अन्य भाषा की तुलना में संस्कृत भाषा के सबसे अधिक अनुरूप है। उनके अनुसार रोमा शब्दावली में 3,000 शब्द हैं। इनमें से ज्यादातर शब्द भारतीय मूल के हैं, जो संस्कृत या अन्य भारतीय भाषाओं से संबंधित हैं। शेष शब्दों को रोमा लोगों ने भारत से विभिन्न देशों की अपनी यात्रा के दौरान एकत्र किया।

जी.ए.जोग्राफ (1976) ने न्यू इंडो-आर्यन भाषाओं के अप्राकृतिक प्रारूप के विस्तृत विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि रोमा भाषा नव्य इंडो-आर्यन भाषाओं के साथ घनिष्ठ संबंध रखती है। आधुनिक भाषाविद् जैसे हैनकॉक, एक्टन, मातृस आदि मानते हैं कि रोमा भारतीय भाषाओं की ही एक शाखा है। जॉन सैम्पसन ने अपने लेख ‘द डायलॉग आॅफ वेल्श जिप्सी, 1926’ में रोमानी मोनोजेनेसिस सिद्धांत को प्रस्तावित किया, जिसे सर राल्फ टर्नर ने तुरंत चुनौती दी और तर्क दिया कि डोमरी और रोमा का एकल मूल संभव नहीं है और दोनों के भाषाई पूर्वज भारतीय बोलियों के विभिन्न समूहों से संबंधित हैं।

सर टर्नर ने भाषाई विश्लेषण के माध्यम से इयान हैन्कोक के तर्क को स्वीकार करते हुए कहा है कि रोमा और डोमरी बोलियां प्रत्यक्ष रूप से भिन्न हैं, क्योंकि डोमरी में तीसरे निर्जीव लिंग की उपस्थिति है, जो उत्तर-पश्चिमी भारत की बोलियों की तुलना में केंद्रीय प्राकृत बोली के समान है। हालांकि, रोमा और डोमरी की उत्पत्ति पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती और पश्चिमी हिंदी जैसी केंद्रीय क्षेत्रों की बोलियों से संबंधित है।

टर्नर ने रोमा और कई इंडो-आर्यन भाषाओं के बीच तुलना के जरिए अद्वितीय वर्गीकरण प्रस्तुत किया। उन्होंने आधुनिक भारतीय भाषाओं के केंद्रीय समूह (हिंदी क्षेत्र- नेपाली और केंद्रीय पहाड़ी) में ‘पैतृक रोमा’ की स्थिति, रोमा और अन्य इंडो-आर्यन भाषाओं में पाई जाने वाली पुरातनता और नवाचारों के बीच टकराव की एक शृंखला के आधार पर दर्शाया। इसी के समानांतर टर्नर ने ब्रज, हिंदी और रोमा भाषाओं के बीच घनिष्ठ संबंध को भी प्रदर्शित किया।

रोमा भाषा ने न केवल भारतीय भाषाओं की प्राथमिक शब्दावली को बरकरार रखा है, बल्कि जटिल अप्राकृतिक शब्दों, व्याकरण की संरचना और ध्वनि प्रणाली की मुख्य विशेषताओं को भी बनाए रखा है। इसके सभी रूपों में रोमा भाषा की मूल शब्दावली भारतीय मूल की है, ज्यादातर संस्कृत मूल से संबंधित हैं। प्रो. मार्सेल के अनुसार रोमा भाषा में लगभग 900 भारतीय मूल, 220 यूनानी, 30 अर्मेनियाई और 60 फारसी शब्द शामिल हैं, लेकिन बाद में स्लैविक, रोमानियन तथा हंगेरियन मूल के नए शब्दों को इसमें शामिल किया गया।
रोमा और संस्कृत के शब्दानुशासन के बीच का संबंध पूरी तरह से स्पष्ट है। यदि हम दोनों भाषाओं के क्रिया पदों की समाप्ति, संज्ञारूप तथा प्रत्यय का तुलनात्मक अध्ययन करें तो रोमा तथा आधुनिक भारतीय भाषाओं में शब्दों की संरचना और व्याकरणिक प्रक्रिया की विभिन्न विशेषताओं जैसे प्रश्नवाचक, सर्वनाम तथा पुरुषवाचक सर्वनाम (ह्य‘ङ्मल्लह्ण कौन, ह्य‘ं्नह्ण कहां, ह्य‘ंल्लंह्ण कब) की एकरूपता प्रमाणित होती है। आधुनिक इंडो-आर्यन भाषाएं रोमानी भाषा की प्रत्यक्ष वंशज हैं। रोमा में उपपद का प्रयोग भारतीय भाषाओं से मिलता-जुलता है। उदाहरणस्वरूप ह्यङ्मह्ण पुल्लिंग, ह्य्र/ीह्ण स्त्रीलिंग तथा ह्यङ्म / ीह्ण का बहुवचन बनाने के लिए प्रयोग होता है। उदाहरणस्वरूप ‘ओ बकर’-एक बकरी, ‘ई बकरे’- बकरियां, साथ ही उदाहरण के लिए बेन और पेन जैसे प्रत्यय जोड़कर अमूर्त संज्ञाओं का गठन; खेतानिपेन या खेतानिबेन – समुदाय, टैको- सत्य, टैसीबेन – सत्य। इन सभी विशेषताओं के साथ-साथ आधुनिक भारतीय भाषाओं के साथ रोमा भाषा के संबंध का पता चलता है तथा फोनोलॉजिकल विश्लेषण से भी रोमा और भारतीय भाषाओं के बीच ध्वन्यात्मक समानता सामने आती है। भारतीय भाषाओं की प्रमुख विशेषताएं ‘फ’, ‘थ’, ‘छ’ और ‘ख’ भी रोमा में मौजूद हैं। रोमा और भारतीय भाषाओं में ‘य’ का अक्सर उपयोग किया जाता है। हां, ऐसी कुछ विशिष्ट ध्वनियां हैं जो केवल भारतीय भाषाओं के साथ-साथ रोमा भाषा में पाई जाती हैं।

सभी रोमा बोलियों में स्वर और व्यंजन की प्रणालियां हैं, जो स्पष्ट रूप से संस्कृत से ली गई हैं। रोमा भाषा आधुनिक भारतीय भाषाओं के अनुरूप एक व्याकरणिक प्रणाली पर जोर देती है। इसमें दो वचन (एक वचन तथा बहुवचन), दो लिंग, तीन मनोदशाएं, तीन कारक (कर्ता, कर्म, संबंध), तीन प्रकार के व्यक्ति और पांच काल हैं। रोमा और भारतीय भाषाओं के वाक्यों की संरचना लगभग एक समान है जो निम्नलिखित है- ‘मे पियेल शुद्रो पानी अर्थात् मैं ठंडा पानी पीता हूं’, ‘तू पी शुद्रो पानी अर्थात् तुम ठंडा पानी पीते हो’, ‘अमेन पिया शुद्रो पानी : हम ठंडा पानी पीते हैं’, ‘वौन पियान शुद्रो पानी अर्थात् वे ठंडा पानी पीते हैं’, ‘मे जाव आनो बाजार अर्थात् मैं बाजार जाता हूं’, ‘तू जा अनो बाजार यानी तुम बाजार जाते हो’, ‘अमेन ड्जा अनो बाजार यानी हम बाजार जाते हैं’, ‘वौन जान अनो बाजार यानी वे बाजार जाते हैं’, ‘अमारो काको प्रस्ताल यानी हमारे चाचा दौड़ते हैं’, ‘अमारो काको परवारेल ई बकरिया यानी हमारे चाचा बकरी को खिलाते हैं’, ‘देव ना मारि यानी ईश्वर नहीं मरता।’ ‘मानुश ना लेक स्चीउता यानी मनुष्य दीर्घायु नहीं होता’।
प्रतिष्ठित कवि पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि ने ‘रोमा रामायण’ के रचयिता रूसी रोमा कवि लेक्सा मानुस की एक कविता का हिंदी अनुवाद किया है। कविता का अंश इस प्रकार है-
भारत से- मेरी मातृभूमि तुम्हें बताऊं
रोमा भले ही रहते हों तमाम विश्व में
न घर के हैं न घाट के
लेकिन जुबान पे तुम्हारा ही नाम है
आर्यावर्त शब्द अच्छा लगता है
मैं संस्कृत में गाना चाहता हूं।
(लेखक ‘सेंटर फॉर रोमा स्टडीज एंड कल्चरल रिलेशंस,
अंतरराष्टÑीय सहयोग परिषद’ में रिसर्च एसोसिएट हैं)

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