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इन दिनों जो कट्टरपंथी बांग्लादेश में हिंसा कर रहे हैं, उन्होंने 1971 में बांग्लादेश मुक्ति का भी विरोध किया था। वे नहीं चाहते कि देश पंथनिरपेक्षता के रास्ते पर चले। उस समय बांग्लादेश ने 70 और 80 के दशक में हुए इस्लामीकरण के धब्बों को मिटाना शुरू किया था। बांग्लादेश में कई कट्टरपंथी संगठन हैं। ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ उन सभी कट्टरपंथी संगठनों का अगुआ है। यह धीरे-धीरे आतंकी संगठन जमात-ए-इस्लामी की जगह लेता जा रहा है, जिस पर प्रतिबंध है। यही नहीं, यह देशभर में मदरसों का संचालन करता है। 2017 में इकोनॉमिस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि इस कट्टरपंथी संगठन के मदरसों को सऊदी अरब के सलाफी-वहाबी इस्लामिस्टों से आर्थिक सहायता मिलती है।
हिफाजत-ए-इस्लामी चाहता है कि देश में इस्लामी शासन हो और ईशनिंदा के खिलाफ पाकिस्तान की तरह ही कानून बने। साथ ही, इसकी मांग है कि देश में प्रतिमाएं लगाने और सार्वजनिक स्थलों पर स्त्रियों-पुरुषों के एक साथ जाने पर भी रोक लगाई जाए। इसके अलावा, अहमदियों को गैर-मुसलमान घोषित किया जाए और स्त्रियों के विकास का कानून रद्द किया जाए। अवामी लीग सरकार ने शुरू में इन मांगों को नजरअंदाज किया, जिससे इनके हौसले बढ़ गए। इन्हीं की मांग पर 2017 में सरकार ने आंख पर पट्टी और हाथ में तराजू लिए ग्रीक देवी थेमिस की प्रतिमा को सर्वोच्च न्यायालय परिसर से हटवा दिया था।
दरअसल, शेख हसीना सरकार ने कट्टरपंथियों और आतंकी संगठनों की नकेल कस रखी है। इस सरकार ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान हुए अपराधों की जांच के लिए 2009 में अंतरराष्ट्रीय युद्ध अपराध न्यायाधिकरण की स्थापना की थी, जो अब तक कई अपराधियों को मौत की सजा सुना चुका है। इनमें जमात-ए-इस्लामी पार्टी के नेता भी शामिल हैं। अदालत के कई आदेशों को लागू किया जा चुका है। भले ही शेख हसीना सरकार ने कट्टरपंथियों और जिहादियों की नकेल कस रखी हो, फिर भी वे मौका मिलते ही सिर उठाने से बाज नहीं आते। हाल में एक अदालत ने 2000 में शेख हसीना की हत्या की साजिश रचने के आरोप में 14 इस्लामी आतंकियों को मौत की सजा सुनाई है। ये आतंकी प्रतिबंधित हरकत-उल-जिहाद बांग्लादेश से जुड़े हैं। ज्यादातर आतंकी प्रतिबंधित जमातुल-मुजाहिदीन-बांग्लादेश (जेएमबी) के सदस्य हैं। जेएमबी के अलावा अंसारुल बांग्ला टीम यानी (एबीटी) नामक कट्टरपंथी संगठन भी सक्रिय है। इसे अल-कायदा का करीबी माना जाता है। कुछ वर्ष पहले कट्टरपंथी उन ब्लॉगरों को निशाना बना रहे थे, जो तार्किक बात करते थे। 2014 में बांग्लादेशी मूल के अमेरिकी लेखक अविजित रॉय, 2015 में ब्लॉगर निलय नील की हत्या के अलावा 2016 में भी कई लोगों की हत्या की गई थी। ये हत्याएं मध्ययुगीन कू्रर तौर-तरीकों से की गई थीं। इससे पूर्व 2013-14 में देश के 20 जिलों में हिंदू विरोधी दंगे भी कराए गए।
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