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वैदिक सूर्योपासना का वैश्विक प्रसार

by WEB DESK
Apr 1, 2021, 07:51 pm IST
in धर्म-संस्कृति
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प्रो. भगवती प्रकाश

विश्व में सूर्य की उत्तरायण संक्रान्ति के प्रसार पर चर्चा के उपरान्त इस अंक में वैदिक देवता सूर्य अर्थात् मित्र के वैश्विक रूपांकन व उपासना परम्पराओं की समीक्षा की जा रही है। ईसा व इस्लाम पूर्व काल की प्राचीन सभ्यताओं में वैदिक देवता सूर्य अर्थात् मित्र या मिस्र की उपासना के पुरावशेष विश्व के सभी भागों में प्रचुरता में उपलब्ध हैं।

प्राचीन मेसोपोटामिया में इन्द्र, वरुण, अग्नि, सूर्य की पूजा की परम्परा: सिन्धुघाटी की सभ्यता के पश्चिम में ईराक, मिस्र, सीरिया व टर्की (तुर्की) आदि प्राचीन मेसोपोटामिया के भाग रहे हैं। इस क्षेत्र में 6000 वर्ष ईसा पूर्व काल में वैदिक आर्यों की कई सभ्यताएं रही हैं। ईसापूर्व 1400-1900 के बीच वैदिक आर्यों के दो ऐतिहासिक राज्य हित्ती (हिट्टाइट) व मितान्नी रहे हैं। इनके बीच ईसा पूर्व 1380 अर्थात् 3400 वर्ष पूर्व हुए युद्घ के बाद हित्ती व मितान्नी राजाओं ‘सिपिलियमियम’ और ‘शत्तिवाज’ के बीच 4000 वर्ष पूर्व हुई सन्धि में वैदिक देवताओं मित्र अर्थात् सूर्य, वरुण, इन्द्र, नसत्य अर्थात् अश्विनी कुमारों और अग्नि के आवाहन हैं। जर्नल आॅफ इण्डो-यूरोपियन स्टडीज के 2010 के एक अंक में प्रकाशित लेख ‘अबाउट दि मित्तानी आर्यन गॉड्स (1-2:26.40 पृष्ठ)’ में वैदिक देवताओं के नामों और वैदिक अंकों एक, पांच, सात आदि के विवरण हैं।

कई सहस्रब्दियों के प्राचीन मितान्नी राजाओं के हिन्दू नाम यथा वृहदाश्व, प्रीयाश्व, प्रियामेघ, तुषारार्थ (दशरथ का अपभ्रंश), सुबन्धु आदि और रंगों के भी संस्कृत नाम बभ्रु पिंगल आदि एवं अयनान्त संक्रान्तियों के पर्वों के सन्दर्भ 4000 वर्ष प्राचीन शिलालेखों में प्रचुरता में मिल रहे हैं। (देखें, हेडलबर्ग-जर्मनी के मनफ्रेड मयर्होफर के पुरातात्विक अध्ययन, प्राचीन मेसापोटामिया वर्तमान इराक, कुवैत, टर्की व सीरिया के क्षेत्रों से युक्त क्षेत्र) में 3500 से 4000 वर्ष प्राचीन मित्तानी साम्राज्य के भारतीय आर्यों के नाम युक्त राजाओं के शिलालेखों में एक की प्रति चित्र क्रमांक 1 में है। प्राचीन ईराकी ‘बेंबीलोन’ की सभ्यता में भी सूर्य पर प्रचुर साहित्य रहा है।

इजिप्ट में परमात्मा के रूप में सूर्य अर्थात् एटन या एटेन: भारत में जिस प्रकार सूर्य की मार्तण्ड, भास्कर आदि अनेक नामों से पूजा होती है, उसी प्रकार मिस्र अर्थात् इजिप्ट में सूर्य की ‘रे’ व एटन या एटेन आदि कई नामों से 3000 ईसा पूर्व से पूजा होती रही है। मिस्र के राजा अखेनाटोन, महारानी नेफेरतिति और उनकी तीन पुत्रियों को सूर्य से आशीर्वाद की याचना करते हुए ईसा पूर्व मध्य 14वीं सदी अर्थात् ईसा के 1450 वर्ष पहले अर्थात् आज से 3470 वर्ष प्राचीन एक नक्काशीपूर्ण वेदिका में दिखाया गया है। (देखें, चित्र क्रमांक 2) इस वेदिका के चित्र जर्मनी में बर्लिन संग्रहालय फोटो मारबर्ग एवं न्यूयॉर्क के आर्ट रिसोर्स संग्रहालय में उपलब्ध हैं। सभी सूर्योपासक सम्प्रदायों में सूर्य को जीवन का आधार एवं सत्य व न्याय का पोषक और सभी प्रकार के ज्ञान का स्रोत माना जाता है। भारत की ही भांति प्रात:कालीन बाल सूर्य, मध्यान्ह कालीन पूर्ण प्रकाशमान सूर्य व अस्ताचलगामी सन्ध्याकालीन सूर्य के भिन्न-भिन्न नाम क्रमश: खेपेर, रे और एटुम रहे हैं। राजा अखेनाटोन के काल के शिलालेखों में सूर्य को वैदिक साहित्य के अनुरूप पृथ्वी का नियामक बतलाया गया है। ईराक स्थित सुमेर व ईरान के एक भाग में अक्कोडियन रही प्राचीन सभ्यताओं में भी वेदों की भांति सूर्य शीर्ष देवताओं में है, जो रोग रहित बनाता है।

लेबनान में सूर्योपासना
पश्चिम एशिया स्थित इस्लामी देश लेबनान के मन्दिरों के नगर बालबेक की विगत कैलाश पर्वत के सन्दर्भ में चर्चा की जा चुकी है, जहां इस बालबेक नामक प्राचीन नगर का नाम ही सूर्य नगरी अर्थात् हीलियोपॉलिस रहा है।

चीन में सूर्योपासना
चीन के सिंक्यांग प्रान्त की ‘तिआन शान’ पहाड़ियों में हिमालयीन ऋषियों की 334 किजिल गुफाएं प्राचीन सिल्क मार्ग पर भारत, ईरान, रोम व चीन की प्राचीन सौर सभ्यताओं के मध्यवर्ती स्थित हैं, इनमें 100 से अधिक में बौद्घ युग के शैलचित्र हैं। इन गुफाओं के मन्दिरों की रेडियों कार्बन डेटिंग के अनुसार ये चौथी से सातवीं सदी के हैं। इनमें कई गुफाओं में खडेÞ बुद्ध के साथ सूर्य, चन्द्र, गरुड़, नाग, वायुदेव आदि के चित्र भी हैं। बौद्ध मत में बुद्ध को सूर्य- बन्धु मानने के कारण पालि भाषा में बुद्ध का एक विशेषण ‘आदिक्कबन्धु’ पाया जाता है जो संस्कृत शब्द आदित्य-बन्धु का ही पालि में भाषान्तर है। बौद्ध जातक ‘वेस्सान्तर जातक’ में मिस्र अर्थात् सूर्य को न्याय का सृजक बतलाया है। चौथी सदी में किजिल की इन प्राचीन गुफाओं में वैदिक देवताओं व रथारूढ़ सूर्य व बुद्ध का संयुक्त रूपांकन उस काल में बौद्ध व वैदिक संस्कृतियों में समन्वय की परम्परा का द्योतक है।

विश्व के सभी भागों में सूर्योपासना
विश्व के सभी भागों में इण्डोनेशिया सहित दक्षिण पूर्व एशिया, हमारे पड़ोसी देशों बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका व म्यांमार के अतिरिक्त ईरान, ईराक, लेबनान, सीरिया व तुर्की, मिस्र अरब प्रायद्वीप में भी प्राचीन सूर्योपासना के प्रमाण आज भी विद्यमान हैं। यूरोपीय ग्रीको-रोमन क्षेत्र में 5वीं सदी पर्यन्त मित्र देवता का प्रसार रहा है। चीन, जापान, अंटार्कटिक, आॅस्ट्रेलिया और अमेरिकी महाद्वीपों सहित सर्वत्र सौर उपासना के प्रचुर पुरावशेष विद्यमान हैं।

सूर्योपासना की इस प्राचीन परम्परा के अध्ययन एवं विमर्श से विश्व में सांस्कृतिक एकता की स्थापना सहज हो सकती है। अतएव इस विषय पर शेष चर्चा आगामी लेख में अपेक्षित है।
(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति हैं)

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