जहां भाजपा अपने पांच साल के शासन के दौरान किए कामों के साथ चुनाव मैदान में है, वहीं कांग्रेस कट्टर उन्मादी तत्वों को बैसाखियां बनाए हुए है। वह उन बदरुद्दीन अजमल के सहारे चुनाव लड़ रही है, जो घुसपैठियों को भारत में बसाकर इसे ‘मुस्लिम राष्टÑ’ बनाने का सपना देख रहे हैं
असम में जैसे-जैसे मतदान की तिथि पास आ रही है, वैसे-वैसे राजनीतिक गहमागहमी तेज हो रही है। इसी के साथ जनता भी यह जानना चाहती है कि मैदान में मौजूद दल उनके लिए क्या करने वाले हैं। कांग्रेस जहां प्रियंका गांधी द्वारा घोषित ‘पांच निश्चय’ के लोकलुभावन वादों के सहारे बेड़ा पार करने की कोशिश में है, तो वहीं भाजपा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा शुरू किए गए ‘सेल्फी विद डेवलपमेंट’ और ‘अग्रगामी असम’ जैसे अभियानों के माध्यम से पिछले पांच वर्ष के अपने काम का प्रतिसाद मांग रही है।
वादों और दावों के बीच दिलचस्प बात यह है कि जहां एक ओर कांग्रेसी वादे आरंभ से ही खोखले मालूम पड़ रहे हैं, वहीं भाजपा अपने दावों के समर्थन में ठोस प्रमाण प्रस्तुत कर रही है। कांग्रेस के पांच निश्चय में सबसे पहला निश्चय है नागरिकता अधिनियम को रद्द करना। थोड़ा-सा भी सामान्य ज्ञान रखने वाले व्यक्ति को यह मालूम होगा कि यह अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया है और इसमें कोई भी रद्दोबदल करने का अधिकार संसद को ही है, असम की विधानसभा की इसमें कोई भूमिका है ही नहीं। फिर ऐसा वादा कर कांग्रेस भावनाएं भड़काने के अलावा और क्या हासिल कर सकेगी? इसी कारण भाजपा सांसद राजदीप रॉय चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘‘जब कांग्रेस नेताओं को शासन प्रणाली का सामान्य ज्ञान ही नहीं है, तो वे सत्ता मिल जाने पर क्या कर बैठेंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।’’
महाजोट को उम्मीदवारों का टोटा
आठ दलों को मिलाकर कांग्रेस ने ‘महाजोट’ बना तो लिया, मगर इसे हर जगह दमदार प्रत्याशी मिल नहीं रहे। इसलिए जोड़-तोड़ और उधार के खिलाड़ियों के भरोसे चल रही उसकी लड़ाई ढीली नजर आ रही है। 17 मार्च को समाचार लिखे जाने तक, महाजोट को भाजपा के दिग्गज नेता हिमंत बिस्व शर्मा के समक्ष जालुकबाड़ी विधानसभा क्षेत्र में कोई प्रत्याशी मिल नहीं पाया। कांग्रेस कुल 87 सीटों पर लड़ रही है। इनमें से 69 सीटों के प्रत्याशी पार्टी ने समाचार लिखे जाने तक तय किए थे, इनमें जालुकबाड़ी का नाम नहीं था। अटकलें लगने लगीं कि कहीं जालुकबाड़ी का भी हाल वही न हो जाए जो तिनसुकिया का हुआ। तिनसुकिया सीट नामांकन के अंतिम दिन राष्ट्रीय जनता दल को दे दी गई। जिन सीटों पर उम्मीदवार घोषित भी हुए, वहां भी बाहरी-भीतरी को लेकर पार्टी की अंतरकलह हावी है। तिनसुकिया और सोनाई जैसे विधानसभा क्षेत्र सहयोगी को दिए जाने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का गुस्सा फूटा। वहीं बराक घाटी की जिन 11 सीटों पर कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी दिए, उनमें से पांच प्रत्याशी पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी के खिलाफ (किसी अन्य दल के टिकट पर या निर्दलीय) चुनाव लड़े थे। इनमें से कई तो गत लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के विरुद्ध थे। अंत समय में बिखरे र्इंट-रोड़ों को जोड़कर भानुमती का कुनबा बनाने की कांग्रेसी कोशिश को उसके स्थायी कार्यकर्ता ही कहीं पलीता न लगा दें। हालत यह है कि प्रत्याशियों की घोषणा में नए नवेले राइजर दल और असम जातीय परिषद भी कांग्रेस से आगे हैं।
तीसरे चरण में नामांकन की समय-सीमा नजदीक आ जाने के बाद भी कांग्रेस अपनी अंतिम सूची जारी नहीं कर पाई। शायद यह आपसी सिरफुटौवल से बचने की कवायद है। दूसरे चरण में भी नामांकन के अंतिम दिन ही कांग्रेस की सूची सार्वजनिक हो पाई थी।
कांग्रेस दूसरी गारंटी दे रही है 5,00,000 सरकारी नौकरियों की, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के कार्यकाल में सरकारी नौकरियों खासकर असम लोक सेवा आयोग की नौकरियों में जो घपले हुए, उनका भूत कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ पा रहा। भ्रष्टाचार-मुक्त शासन का जो उदाहरण भाजपा ने प्रस्तुत किया, उसे चुनावी जनसभाओं में जमकर भुनाया जा रहा है और कांग्रेस पर यह दोतरफा वार का काम कर रहा है। सरकारी नौकरी के उसके वादे की हवा भी इस हथियार से निकल जा रही है, दूसरे जनता को विश्वास का एक आधार भी मिल रहा है। यह तो बिल्कुल सत्य है कि चुनावी माहौल में सरकार की आलोचना करने उतरी कांग्रेस भी सोनोवाल सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगा सकी है। विपक्ष अधिकतम यही कह पा रहा है कि कल्याण योजनाओं का सामूहिक आयोजन ‘नौटंकी’ है। इसके अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं है। महाजोट की अगुआ कांग्रेस का तीसरा वादा है, गृहिणियों को 2000 रु. प्रतिमाह उनके खाते में देने का। केंद्र की उज्ज्वला योजना, चाय बागानों में महिला श्रमिकों के लिए विशेष मानदेय आदि के सहारे भाजपा विपक्ष के इस तीर को भी मंद कर दे रही है। कांग्रेस ने 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली और बागान श्रमिकों को न्यूनतम 365 रु. के दैनिक पारिश्रमिक का भी वादा किया है। इन वादों की बात करने पर राजदीप रॉय कांग्रेस को उसका इतिहास याद दिलाते हैं, ‘‘वादा तो तरुण गोगोई ने भी किया था, बराक घाटी के लिए 1,000 करोड़ रु. का पैकेज देने का। क्या हुआ उस वादे का?’’ चाय बागान के लिए 3,000 करोड़ रु. का केंद्र का पैकेज, बागानी इलाकों में सैकड़ों मॉडल स्कूल और मॉडल अस्पताल भाजपा सरकार के कामों के जीवंत और मूर्त विज्ञापन हैं।
भाजपा के पास जहां एक ओर कांग्रेस के अधूरे वादों की खिल्ली उड़ाने का मौका है, वहीं अपने पूरे किए गए वादों को जोर-शोर से उठाने का भी। पार्टी यह काम कर भी रही है। हर भाजपा नेता की सभा में केंद्र और राज्य की उपलब्धियां और पूर्वोत्तर, खासकर, असम में आए परिवर्तन का आख्यान स्वाभाविक रूप से आता है। यह भी पार्टी के पक्ष में है कि पिछले पांच साल पूर्णत: ‘डबल इंजन’ सरकार के रूप में गुजरे हैं। इससे पहले कांग्रेस के 15 वर्ष के शासन का अधिकांश समय भी ‘डबल इंजन’ वाली हालत में गुजरा था, लेकिन दोनों कालखंडों की तुलना करने पर अंधेरे और उजाले जैसा अंतर दिखता है और भाजपा नेता बखूबी यह दिखाते भी हैं। अपनी सरकार के पिछले पांच वर्ष के काम-काज को वोट में बदलने के लिए भाजपा ने ‘सेल्फी विद डेवलपमेंट’ हैशटैग के साथ अभियान शुरू किया है। इसका उद्घाटन करते हुए अमित शाह ने भूपेन हजारिका के पोस्टर के साथ ‘सेल्फी’ ली और युवाओं से अपील की कि वे अपने आसपास हुए विकास को ‘सेल्फी’ के माध्यम से प्रचारित करें।
यह सत्य है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के पहले तक ब्रह्मपुत्र नदी पर एकमात्र पुल हुआ करता था। बीते छह वर्ष में इस सरकार ने इस विशाल नदी पर छह नए विशालकाय पुल बनाकर जनता को समर्पित कर दिए। और भी नए पुलों का निर्माण कार्य आरंभ कर दिया गया है। इन पुलों ने कई स्थानों पर दो निकटवर्ती बसावटों के बीच की दूरी 200 किमी तक घटा दी है। असम को राष्ट्रीय जलमार्ग के रास्ते कोलकाता और चटगांव को जोड़े जाने का काम लगभग पूरा हो गया है। लगभग 20,000 किमी नई सड़कों का जाल ऐतिहासिक गति से तैयार हुआ है। इन्हीं छह वर्ष में छह नए मेडिकल कॉलेज बने हैं। गुवाहाटी में कैंसर अस्पताल की स्थापना, प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना के तहत गरीबों को लाभ आदि वैसे क्षेत्र हैं जिनमें पूर्वोत्तर राज्यों का खास ध्यान रखा गया है। रिफाइनरी क्षेत्र में केंद्र के प्रयास से 46,000 करोड़ रु. का निवेश, असम के तेल खनन के लिए 8,000 करोड़ रु. की रॉयल्टी, नुमालीगढ़ रिफाइनरी द्वारा जैव ईंधन का उत्पादन जैसे अभिनव कदम विकास की कहानी कहने के लिए काफी हैं।
भाजपा को विकास पर भरोसा : असम में ब्रह्मपुत्र की सहायक लोहित नदी पर बना भूपेन हजारिका सेतु। 2014 से पहले ब्रह्मपुत्र नदी पर केवल एक पुल था। भाजपा के शासन में छह साल के अंदर ब्रह्मपुत्र नदी पर छह पुल बनाए गए हैं।
यह भाजपा की विकास केंद्रित राजनीति का ही परिणाम है कि जो कांग्रेस शुरू से सीएए के विरोध में हवा बनाने और इसके सहारे गद्दी हथियाने की फिराक में थी, उसे अपने आधार बिंदुओं में कुछ नए मुद्दे जोड़ने पड़े। यह कांग्रेस को भी पता है कि बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में जो ऐतिहासिक काम भाजपा सरकार ने कर दिया है, उसकी बराबरी कर पाना उसके वश में नहीं है। इसलिए कांग्रेसी नेताओं की जुबान पर भी कभी गलती से भी बुनियादी ढांचे को और बेहतर करने की बात नहीं आती है, बल्कि पर्यावरण आदि का बहाना बनाकर वे इस मुद्दे से कन्नी काट लेते हैं, जबकि वास्तव में इस क्षेत्र की सबसे बड़ी आवश्यकता अवसंरचना विकास ही है। अमित शाह के शब्दों में, ‘‘पूरे पूर्वोत्तर का क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश से कहीं ज्यादा है, इसलिए पूर्वोत्तर का विकास पूरे भारत के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा।’’
राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार नियंत्रण, सुलभ सुशासन, जनशिकायत निपटान, स्कूली व उच्च शिक्षा, स्थानीय स्वास्थ्य सुविधाएं आदि को मजबूत करने पर पूरा जोर दिया जिससे आमजन का विश्वास उसमें जगा है। इनके साथ ही, शांति प्रक्रिया, सांस्कृतिक संरक्षण आदि की दिशा में भी उल्लेखनीय कार्य कर पार्टी ने दिलों को जीतने का प्रयास किया है। राज्य में पिछले पांच साल के अंदर अलग-अलग 10 उग्रवादी समूहों के हजारों युवा हथियार छोड़कर मुख्यधारा में आए हैं। असम में पिछले पांच साल में कोई बड़ी उग्रवाद की घटना, उग्रवादी नहीं कर पाए हैं। इतना ही नहीं, सामाजिक सौहार्द की दिशा में भी सरकार ने खासा ध्यान दिया है। इसी कारण विधानसभा उपाध्यक्ष अमीनुल हक कहते हैं, ‘‘पिछले पांच वर्ष में पूरे राज्य में कहीं भी कोई दंगा नहीं हुआ, कहीं सांप्रदायिक तनाव नहीं हुआ, यह हमारी सरकार की उपलब्धि है।’’ उल्लेखनीय है कि हक जिस सोनाई विधानसभा के प्रतिनिधि हैं, वहां लगभग 65 प्रतिशत से अधिक वोट मुस्लिम समुदाय का है। यह ‘सबका विश्वास’ नीति की ही परिणति है कि ऐसे कई मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में भाजपा हाल के समय में बढ़त में रही है।
वैसे यह सर्वविदित तथ्य है कि चुनाव केवल मुद्दों से नहीं, बल्कि मुद्दों के साथ-साथ समीकरणों से भी जीता जाता है। हालांकि इस मोर्चे पर भी भाजपा आगे ही दिखती है। समीकरणों का समीकरण जोड़ते हुए असम में राजग ने पांच स्तंभों के आधार पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। ये हैं- सुरक्षा और सम्मान, संस्कृति और सभ्यता, समृद्धि और जुड़ाव, शांति और संवाद तथा आत्मनिर्भरता। अब वक्त ही बताएगा कि भाजपा के ये स्तंभ कितने मजबूत हैं।
लापता राहुल-प्रियंका!
इस बार के चुनाव को लेकर भाजपा शुरू से आक्रामक अंदाज में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो पिछले छह वर्ष में यहां नियमित अंतराल पर आ रहे हैं, चुनावों की घोषणा के बाद उनके दौरों की गति बढ़ गई है। गृहमंत्री अमित शाह भी तूफानी अंदाज में राज्य के अलग-अलग हिस्सों में यात्राएं कर रहे हैं। उन्होंने 15 मार्च को राज्य के सात अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के युवा कार्यकर्ताओं से एक साथ बातचीत सेटेलाइट कार्यक्रम के माध्यम से की। भाजपा के अन्य दिग्गज नेता भी यहां चुनाव घोषणा के पहले भी कैम्प करते रहे हैं और अब वोट मांगने भी आ रहे हैं। खासकर जब किसी केंद्रीय मंत्री की यात्रा पहले यहां हुआ करती थी, तो हर सभा में योजना रूपी उपहारों का पिटारा खुला करता था। परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आदि की चुनाव पूर्व यात्राएं इसका प्रमाण हैं। चुनाव प्रचार जोर पकड़ने के बाद मोदी, शाह के अलावा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, सांसद मनोज तिवारी आदि मैदान में आ गए हैं, वहीं कांग्रेसी खेमे में एक तरह से सन्नाटा पसरा हुआ है।
चुनाव की अधिसूचना के बाद प्रियंका गांधी की एक मार्च की गुवाहाटी रैली छोड़ दें, तो तीसरे चरण के लिए नामांकन शुरू हो जाने तक कांग्रेस की ओर से किसी दिग्गज नेता की कोई और रैली हुई नहीं है। राहुल गांधी अधिसूचना जारी होने से पहले 14 फरवरी को सीएए विरोधी रैली में शामिल हुए थे, जो पार्टी के भीतर मतभेद का कारण भी बना था। राहुल-प्रियंका की इस गैर-मौजूदगी पर मतदाताओं की प्रतिक्रिया देखने वाली होगी। राष्ट्रीय चेहरों की बात करें तो अकेले भंवर जितेंद्र सिंह ने कमान संभाल रखी है। वे पार्टी के असम प्रभारी भी हैं। हाल में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मैदान में आए। कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह तक के नाम हैं, लेकिन मतदान शुरू होने में महज 10 दिन बचने तक ये कहीं दिखाई नहीं दिए। महाजोट के अन्य सहयोगियों की ओर से भी कोई बड़ा चेहरा यहां नहीं पहुंचा है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कांग्रेस एक तरह से असम में हार मान चुकी है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से एक समाचार पत्र ने लिखा, ‘‘राहुल तमिलनाडु और केरल में ही ज्यादा समय देना चाहते हैं, जहां पार्टी के लिए कुछ संभावना बनती दिख रही है। वे असम में हार की जिम्मेदारी अपने माथे पर नहीं लेना चाहते हैं, इसलिए यहां आने से भी बच रहे हैं।’’
सही मायने में देखें तो महाजोट में एकमात्र प्रभावी चेहरा बदरुद्दीन अजमल का सक्रिय दिख रहा है, जो अपने स्थाई मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करने में लगे हुए हैं। यह महाजोट के गुप्त एजेंडे की ओर भी इशारा कर रहा है। जिस अजमल को असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने असम की राजनीति में पासंग का भाव नहीं दिया था, उसी अजमल को आज गोगोई की पार्टी माथे पर बिठाए घूम रही है।
अजमल लगातार अपने सांप्रदायिक एजेंडे पर चल रहे हैं, वहीं भाजपा भी स्थिति को भांपकर अब अजमल पर आक्रामक हो चली है।
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