झारखंड में चर्च और इस्लामी ताकतें छल-कपट से न केवल कन्वर्जन कर रही हैं, बल्कि वनवासियों की जमीन पर कब्जा भी कर रही हैं। रोहि ंग्या, बांग्लादेशी और यहां तक कि पाकिस्तानी भी झारखंड में बेधड़क बस रहे हैं। राज्य सरकार भी भूमाफिया का साथ दे रही है इसलिए शहरों में भी भूमि कब्जाई जा रही है
यदि किसी राज्य की सत्ता को चलाने वाले नेता ही अराजकता फैलाने वाले बयान देने लगें, तो अंदाजा लगा सकते हैं कि वहां के हालात कैसे होंगे। इन दिनों झारखंड की राजधानी रांची में रहने वाले कारोबारी और इस तरह के अन्य लोग इसी अराजकता का सामना कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री रामेश्वर उरांव ने कहा था, ‘‘रांची की जमीन दूसरे लोगों के हाथों में चली गई है। रांची में बिहारी और मारवाड़ी बस गए हैं, जिससे जनजातीय समाज के लोग कमजोर होते जा रहे हैं।’’ इस भड़ाकाऊ बयान में बिहारी और मारवाड़ी समुदाय पर निशाना साधा गया है, जबकि सच यह है कि जनजातीय समाज की जमीन पर चर्च और इस्लामी संगठन गिद्ध की तरह नजर गड़ाए बैठे हैं।
मुस्लिम भी हड़प रहे जमीन
झारखंड में वनवासी समाज की जमीन पर मुसलमान बेरोकटोक कब्जा कर रहे हैं। इसमें स्थानीय मुसलमानों के साथ-साथ बांग्लादेशी और पाकिस्तानी घुसपैठिए भी शामिल हैं। खंूटी के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. निर्मल सिंह कहते हैं, ‘‘जनजातियों की जमीन हथियाने के लिए मुसलमानों ने निकाह का रास्ता अपनाया है। ये लोग निकाह करने के बाद भी लड़की को जनजाति पहचान से जोड़कर रखते हैं। इसके तीन कारण हैं-एक, उसे अपनी ससुराल की जमीन मिल जाती है, दूसरा, जनजाति पत्नी की आड़ में वह जमीन खरीद सकता है और तीसरा, आरक्षण का लाभ लेता रहता है। उल्लेखनीय है कि जनजाति समाज की जमीन को बचाने के लिए दो कानून हैं-छोटानागपुर काश्तकारी एक्ट और संथाल परगना काश्तकारी एक्ट। इन दोनों के अनुसार कोई भी गैर-जनजाति व्यक्ति जनजाति समाज की जमीन नहीं खरीद सकता, लेकिन जनजाति व्यक्ति किसी जनजाति की जमीन खरीद सकता है। इसलिए ये लोग किसी जनजाति लड़की के साथ निकाह करके उसकी आड़ में जैसे-तैसे जमीन पर कब्जा करते हैं।’’
उदाहरण के लिए खूंटी के आजाद रोड निवासी जमील अंसारी को ले सकते हैं। उसने कुछ वर्ष पहले तोरपा के पूर्व विधायक और बिहार सरकार में मंत्री रहे लिएंडर तिड़ू की बेटी विजया तिड़ू से निकाह किया था। विजया सिंचाई विभाग में नौकरी करती है और अपने मायके में ही रहती है। जमील भी वहीं रहता है। ससुर के निधन के बाद ससुराल की पूरी संपत्ति भी उसके कब्जे में आ गई है। वर्तमान में झारखंड मुक्ति मोर्चा, खूंटी जिले के अध्यक्ष जुबैर अहमद ने भी रांची के एक व्यवसायी मित्रा की बेटी से कुछ वर्ष पहले निकाह किया है। मित्रा के निधन के बाद जुबैर रांची स्थित ‘मित्रा मार्केट’ के मालिक हो गए हैं। पूरे झारखंड में जनजातियों और दलितों की जमीन पर मुसलमान कब्जा कर रहे हैं, लेकिन इसका चलन रांची, लोहरदगा, गुमला और पाकुड़ जिलों में सबसे ज्यादा दिखता है। रांची के एक अंग्रेजी दैनिक में कार्यरत एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया, ‘‘गुमला जिले के चैनपुर डिमरी कस्बे में लगभग 20 साल पहले तक एक भी मुसलमान नहीं था। यह कस्बा पूरी तरह जनजातियों का था। अब वहां की लगभग 50 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की हो गई है। उनमें ज्यादातर बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। झारखंड के मुस्लिम संगठनों ने उन्हें वहां बसाया है।’’
चर्च की शैतानी चालें
झारखंड में सबसे ज्यादा जमीन ईसाई संगठन हथिया रहे हैं। यह सिलसिला अंग्रेजों के समय ही शुरू हो गया था और अब भी निरंतर जारी है। लोभ-लालच देकर हिंदुओं का कन्वर्जन किया जाता है। ऐसे लोगों से चर्च या स्कूल बनाने के नाम पर जमीन आसानी से ले ली जाती है। रांची, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा जैसे जिलों में आप जिधर भी निकल जाएं, आपको चारों ओर सलीब लगे बड़े-बड़े भवन दिख जाएंगे। ये सब जनजातियों की जमीन पर बने हैं। चर्च ने कन्वर्जन का ऐसा जाल बुना है कि एक ही घर के कुछ लोग ईसाई हो गए हैं, तो कुछ हिंदू बने हुए हैं। इस कारण घर-घर में झगड़े होते हैं। इससे जुड़ी एक बात पिछले दिनों सामने आई है। फरवरी के प्रथम सप्ताह में उत्तराखंड में आई विपदा में गुमला जिले के किस्कू प्रखंड के चौगांगी-महूरांग गांव के नौ लोग लापता हो गए थे। इनमें से तीन (विक्की भगत, ज्योतिष बाखला और सुनील बाखला) के ही शव मिले हैं। ये तीनों एक ही परिवार के थे। चर्च के स्कूल में पढ़ने के कारण ज्योतिष और सुनील ईसाई बन गए थे और ‘सरनेम’ भगत से बाखला कर लिया था। बाखला इनका गोत्र होता है। जब उत्तराखंड से इन तीनों के शव गांव लाए गए तो अंतिम संस्कार के लिए विवाद शुरू हो गया। अंत में विक्की का शव अग्नि को समर्पित किया गया और ज्योतिष और सुनील के शव को दफनाया गया। इसके लिए स्थानीय चर्च के लोग गांव पहुंचे थे और उन्होंने अपनी देखरेख में शवों को जबरन दफनाया।
गुमला जिले की नवादी पंचायत के गांव दूरहुल सरना टोली पर चर्च की इतनी बुरी नजर पड़ी कि अब वहां एक भी सरना यानी हिंदू नहीं है। गांव में एक हनुमान मंदिर और उसके परिसर में एक अखाड़ा है। अब उस मंदिर में दीया जलाने वाला भी कोई नहीं बचा है।
लोहरदगा में पाकिस्तानी
लोहरदगा बहुत पहले से आईएसआई के निशाने पर रहा है। 7 नवम्बर, 2004 को लोहरदगा से एक पाकिस्तानी सैयद मोहम्मद निहास अहमद पकड़ा गया था। सूत्रों ने बताया कि यह अभी भी लोहरदगा में ही रह रहा है। हिन्दुस्तान टाइम्स (8 नवम्बर, 2004) की एक रपट के अनुसार अहमद 20 फरवरी, 1995 को अमृतसर पहुंचा और बीमारी का बहाना लेकर दो महीने के लिए अपना वीजा बढ़वा लिया। दो महीने बाद भी उसने वही तरीका अपनाया और फिर दो महीने के लिए उसका वीजा बढ़ गया। इसके बाद उसने अपने बारे में किसी को नहीं बताया और न ही पुलिस ने उसकी खोजबीन की। वह लोहरदगा आ गया और यहां उसने निकाह कर लिया। वह मादक पदार्थों की तस्करी, फर्जी नोट, हथियारों की आपूर्ति, आतंकवाद जैसी गतिविधियों में शामिल था।
भूमाफिया को सरकार की शह
जनजाति के नाम पर कुछ लोग रांची शहर के उन भूखंडों पर जबरन कब्जा करने लगे हैं, जिन्हें उनके मालिकों ने 60-70 साल पहले ही बेच दिया था। ताजा उदाहरण रांची के बूटी चौक का है। यहां 20 फरवरी की रात 11 बजे कारोबारी मुंजाल परिवार की 2.90 एकड़ जमीन पर सैकड़ों लोगों की भीड़ ने कब्जा कर लिया। इन लोगों का नेतृत्व संजय पाहन नामक एक व्यक्ति कर रहा था, जो जनजातीय समाज का है। जैसे ही कब्जे की खबर मिली, मुंजाल परिवार ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को इसकी सूचना दी, लेकिन किसी ने भी उनकी गुहार नहीं सुनी। इस परिवार ने सरकार में बैठे नेताओं से भी मदद मांगी, परंतु किसी ने उनकी बात सुनने की कोशिश नहीं की। मुंजाल परिवार का मानना है कि उनकी बात कोई इसलिए नहीं सुन रहा है कि सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने ही उनकी जमीन पर कब्जा करवाया है।
यह सब जानते हुए भी मुंजाल परिवार अपनी जमीन को वापस पाने के प्रयास में है। परिवार के दो लोगों (हरीश मुंजाल और प्रकाश मुंजाल) ने 27 फरवरी, 2021 को झारखंड के पुलिस महानिदेशक को एक आवेदनपत्र देकर जमीन से कब्जा हटाने का अनुरोध किया है, लेकिन अब तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। दूसरी ओर जिन लोगों ने जमीन पर कब्जा किया है, वे वहां निर्माण कार्य भी कर रहे हैं। उस आवेदनपत्र के अनुसार संजय पाहन ने लगभग 400 लोगों की भीड़ के साथ रांची के बूटी चौक स्थित 2.90 एकड़ जमीन (खाता सं.-79, प्लॉट सं-1947, 1948 और 1949) पर कब्जा कर लिया है।
इस कब्जे से रांची के उन कारोबारियों में दहशत है, जिनके पूर्वजों ने कुछ दशक पहले रांची को अपनी कर्मभूमि बनाया था। उन्हें लग रहा है कि हो न हो, एक दिन उनकी जमीन, दुकान या मकान पर जनजाति के नाम पर कोई कब्जा कर लेगा। रांची में जनरल स्टोर चलाने वाले एक व्यवसायी श्याम खेमका (परिवर्तित नाम) कहते हैं, ‘‘1910 में मेरे परदादा अलवर से रांची आए थे। उन्होंने यहीं व्यवसाय शुरू किया और सैकड़ों लोगों को रोजगार भी दिया। अब मेरे परिवार में जितने भी लोग हैं, उन सबका जन्म रांची में ही हुआ है। कभी यह अहसास नहीं हुआ कि हमारे पूर्वज रांची में बाहर से आए थे, लेकिन अब लग रहा है कि हम यहां के लिए बाहरी हैं। रांची में डर लगने लगा है। बूटी चौक की घटना कोई छोटी घटना नहीं है। इसके जरिए कारोबारियों को एक संदेश दिया गया है कि यहां से बोरिया-बिस्तर बांध लो।’’
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रांची के बूटी चौक पर कब्जाई गई जमीन को इस तरह बाड़ से घेरा गया है
जिस जमीन पर कब्जा हुआ है, उसको मुंजाल परिवार के मुखिया जीवनलाल ने 2 दिसंबर, 1959 को खरीदा था। हर तरह की कागजी कार्रवाई के बाद 5 अक्तूबर, 1962 को जमीन की जमाबंदी भी जीवनलाल के नाम पर कर दी गई थी। तब से लेकर 20 फरवरी, 2021 तक इस जमीन पर मुंजाल परिवार का ही कब्जा रहा है। हालांकि कुछ लोगों ने इस जमीन को लेकर कई बार विवाद खड़े किए और अदालत में मुकदमा भी दायर किया, लेकिन हर बार मुंजाल परिवार को ही जीत मिली। पहला मुकदमा शेख शम्सुद्दीन ने 1961-62 में दायर किया था। उस पर रांची के भू-समाहर्ता ने सुनवाई की थी और 5 अक्तूबर, 1962 को उसका निपटारा करते हुए जीवनलाल के पक्ष में ही निर्णय दिया था। 1990-91 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम की धारा 71-ए के तहत भी एक मुकदमा दायर हुआ था। इसका निपटारा पटना उच्च न्यायालय की रांची खंडपीठ ने 10 अप्रैल, 2001 को कर दिया था। इसमें भी जीवनलाल की जीत हुई थी। एक अन्य मामला सोमरा पाहन (संजय पाहन के पिता) ने भी दायर किया था, जिसे 23 जुलाई, 2002 को खारिज कर दिया गया था। यानी इस जमीन को लेकर जितने भी मुकदमे हुए, उनमें मुंजाल परिवार को ही जीत मिली। इसके बाद भी कुछ लोगों ने बराबर इस पर विवाद पैदा करने की कोशिश की। फिर कुछ समय तक यह मामला शांत रहा। इसके बाद अचानक 6 अक्तूबर, 2020 को संजय पाहन ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उसने मुख्यमंत्री से निवेदन किया है कि उक्त जमीन मेरी खतियानी जमीन है, उस पर मुझे कब्जा दिलाया जाए। मुख्यमंत्री ने भी तुरंत उस पत्र को रांची के उपायुक्त के पास भेज दिया। उपायुक्त ने दोनों पक्षों को सुना तो जरूर, लेकिन कोई आदेश नहीं दिया। मुंजाल परिवार का मानना है कि जिस मामले का निपटारा एक बार नहीं, कई बार अदालत में हो चुका हो, उसे अचानक मुख्यमंत्री के पास ले जाना एक षड्यंत्र है। परिवार का यह भी कहना है कि संजय पाहन तो केवल एक मोहरा है। उसके पीछे कुछ नेता हैं, जो उनकी जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं और जो कुछ हुआ है, उन्हीं के इशारे पर हुआ है। उनके इस शक को इस बात से भी बल मिलता है कि जब उपायुक्त ने कोई आदेश नहीं दिया तो कहा जाता है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार मंत्री चंपई सोरेन को पीठासीन पदाधिकारी बनाकर एक समिति का गठन किया गया। इस समिति के समक्ष मुंजाल परिवार के वकील ने तीन दिन तक बहस की। अंतिम बहस 17 फरवरी, 2021 को हुई। इसके बाद भी इस समिति ने कोई आदेश नहीं दिया। हरीश मुंजाल के अनुसार, ‘‘चंपई सोरेन की समिति ने इसलिए कोई आदेश नहीं दिया कि यह अदालत की अवमानना के दायरे में आता।’’ इन घटनाओं को देखते हुए झारखंड के अनेक लोग यह मानने लगे हैं कि आने वाले कुछ बरसों में केरल की तरह झारखंड में भी चर्च और मुस्लिम संगठनों की ही चलेगी। इसका परिणाम क्या होता है, वह सबको पता है।
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