पंजाब के किसान कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ आंदोलन के बीच केंद्र सरकार के एक फैसले से खुश हैं। केंद्र सरकार ने फसलों की खरीद का भुगतान सीधे किसानों के खाते में करने के निर्देश दिए हैं। दरअसल पंजाब के किसान लंबे समय से फसल खरीद की सीधी अदायगी की मांग कर रहे थे। लेकिन, इस निर्देश से आढ़तियों में बेचैनी है और वे चाहते हैं कि किसान संगठन इसका विरोध करें
पंजाब में पैदा हुआ 182 लाख मीट्रिक टन और एमएसपी पर बिका 202 लाख मीट्रिक टन धान में पंजाब में किस कदर घपलेबाजी हो रही है, इसका ताजा उदाहरण सामने आया है। राज्य में पिछले साल 182 लाख मीट्रिक टन धान की पैदावार हुई, जबकि आढ़तियों के माध्यम से 202 लाख मीट्रिक टन धान बेच दिया गया। इस तरह की गड़बड़ियों को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने पंजाब-हरियाणा के किसानों को फसलों का भुगतान सीधे बैंक खाते में करने की बात की है और किसानों की पैदावार का हिसाब रखने के लिए उनसे जमीन का रिकार्ड मंगवाया है। केंद्र के इस कदम का कांग्रेस के नेतृत्व वाली कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने विरोध किया, परंतु अब धीरे-धीरे कैप्टन सरकार रास्ते पर आती दिखने लगी है। दूसरी ओर केंद्र के इस फैसले से आढ़ती व किसान आमने-सामने आते दिखाई देने लगे हैं। आशा की जानी चाहिए कि केंद्र के इस कदम से पंजाब के किसानों को केंद्र सरकार के कृृषि सुधार कानूनों की सचाई और दिल्ली की सीमा पर चल रहे कथित किसान आंदोलन की वास्तविकता का भी भान हो सकेगा।
पंजाब के किसान कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ आंदोलन के बीच केंद्र सरकार के एक फैसले से खुश हैं। केंद्र सरकार ने फसलों की खरीद का भुगतान सीधे किसानों के खाते में करने के निर्देश दिए हैं। दरअसल पंजाब के किसान लंबे समय से फसल खरीद की सीधी अदायगी की मांग कर रहे थे। लेकिन, इस निर्देश से आढ़तियों में बेचैनी है और वे चाहते हैं कि किसान संगठन इसका विरोध करें। बताया जाता है कि पंजाब में भारतीय किसान यूनियन राजेवाल को छोड़कर ज्यादातर किसान इससे खुश हैं, लेकिन आढ़ती संगठन लगातार किसानों से बात करके उनके पक्ष में बयान देने को कह रहे हैं। अभी तक बलबीर सिंह राजेवाल के अलावा किसी ने भी आढ़तियों के पक्ष में आवाज नहीं उठाई है। दरअसल ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं है क्योंकि लंबे समय से किसान ये मांग कर रहे हैं कि उन्हें उनकी फसल का भुगतान सीधा किया जाए न कि आढ़तियों के माध्यम से। उधर, भारतीय खाद्य निगम ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वह उन्हीं किसानों की फसल खरीदेगी, जिनका पूरा रिकार्ड उपलब्ध होगा। इसके चलते पंजाब के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री श्री भारत भूषण आशु ने कृषि और खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की। इसमें किसानों को सीधी अदायगी करने, भू-रिकार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने आदि पर चर्चा की गई। आढ़तियों ने यह मामला केंद्र के पास उठाने और किसानों को अदायगी उनके मार्फत करने के लिए दबाव बनाया हुआ है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी आढ़ती एसोसिएशन को मीटिंग के लिए 22 मार्च का समय दिया है।
दरअसल केंद्र सरकार भारतीय खाद्य निगम के खर्चों को कम करने के लिए लगातार कदम उठा रही है। उसमें आढ़तियों को दी जाने वाली 2.5 फीसदी आढ़त और सरकार को दी जाने वाली तीन प्रतिशत ग्रामीण विकास निधि पर अंकुश लगाना भी शामिल है। आढ़तियों को यह भी लग रहा है कि केंद्र सरकार उन्हें धीरे-धीरे फसल खरीद प्रणाली से बाहर करना चाहती है। साथ ही आढ़तियों ने एक अप्रैल से हड़ताल पर जाने का ऐलान भी किया है। आढ़ती एसोसिएशन के प्रधान रविंदर सिंह चीमा ने बताया कि किसान अपनी फसल का भुगतान तो पहले ही आढ़तियों से ले लेते हैं। जब उनकी फसल की पूरी कीमत आढ़तियों के पास आती है तो आढ़ती अपनी राशि काटकर शेष उन्हें लौटा देते हैं। इसके अलावा मंडियों में फसल की सफाई, खरीदकर उसे बोरियों में भरने और लदाई-उतराई का काम वही करते हैं। किसानों को सीधी अदायगी करने से फिलहाल तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन आढ़तियों को आशंका है कि ऐसा करके सरकार आढ़तियों को खरीद सिस्टम से बाहर कर देगी। आढ़तियों का तर्क है कि अगर उन्हें बाहर कर दिया जाता है तो मंडियों में खरीद के बड़े अभियान को चला पाना सरकारी एजेंसियों के बस में नहीं होगा। भारतीय खाद्य निगम समेत ज्यादातर एजेंसियों के पास कर्मचारियों की पहले से ही कमी है। दूसरा, जब मंडियों में अनाज आता है तो उसे खरीदने का समय बहुत सीमित होता। इसलिए मंडियों में देर रात तक भी काम चलता है। सरकारी कर्मी नौ से पांच बजे तक काम करते हैं और वे उतनी ही शिद्दत दिखाते हुए मंडी में पहुंची फसल को खरीद पाएंगे, इसको लेकर संदेह है। लेकिन इन सभी तर्कों को दरकिनार करते हुए किसानों का कहना है कि अगर सरकार उनकी फसल को लेकर आढ़तियों द्वारा किए जा रहे काम का भुगतान उन्हें कर दे तो किसानों को इससे कोई दिक्कत नहीं है, परंतु उनका भुगतान सीधे खाते में होता है तो यह केंद्र सरकार का स्वागतयोग्य कदम होगा। फिलहाल मौजूदा समय में किसान और आढ़ती आमने-सामने आते दिखाई पड़ रहे हैं।
टिप्पणियाँ