शिव को लिंग रूप में पूजने का पर्व है महाशिवरात्रि । भारत में द्वादश ज्योतिर्लिंगों सहित ऐसे अनेक शिव मंदिर हैं जो अपने वास्तुशिल्प और दिव्य स्वरूप के कारण श्रद्धालुओं के मन में विशेष स्थान रखते हैं
देवाधिदेव महादेव अपने अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत माने जाते हैं। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि पर्व भगवान् शिव की इस दिव्यता का महापर्व है। ‘ईशान संहिता’ में कहा गया है कि भगवान् सदाशिव महाशिवरात्रि को ही ज्योतिर्लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे, इसीलिए सनातनधर्मी महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग के जलाभिषेक को अत्यंत शुभफलदायी मानते हैं। उल्लेखनीय है कि केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम् तक एक सीधी देशांतर रेखा में स्थापित सात ऐसे विश्वविख्यात शिव मंदिर हैं जहां महादेव लिंग रूप में पूजे जाते हैं। बेशक, प्राचीन भारत के ज्ञान, विज्ञान और अध्यात्म ने जिन ऊंचाइयों को छुआ था, उसकी आज भी कोई बराबरी नहीं है।
भारत के सुदूर उत्तर में केदारनाथ से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के बीच की कुल दूरी 2,383 कि.मी. है। इनके मध्य पांच अन्य शिव मंदिर (तेलंगाना का कालेश्वरम्, आंध्र प्रदेश का कालहस्ती तथा तमिलनाडु के एकम्बरेश्वर, चिदंबरम् और तिरुवन्नामलै मंदिर) हैं, एक-दूसरे से 500 से 600 किमी दूर। सभी एक ही देशांतर रेखा 79 डिग्री पू., 41’54’’ में अवस्थित हैं। इस रेखा को ‘शिव शक्ति अक्ष रेखा’ कहा जाता है, जो उत्तर से दक्षिण तक भारत को दो हिस्सों में बांटती है। कितना श्रेष्ठ रहा होगा हमारे महान ऋषियों का यह अनूठा ज्ञान-विज्ञान! इन शिव मंदिरों से जुड़ी एक अन्य खास बात यह है कि इनमें से पांच मंदिर प्रकृति के पांच तत्वों (वायु, जल, आकाश, पृथ्वी और अग्नि) का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में इन्हें पंचभूत के नाम से जाना जाता है। महादेव के अर्चन-वंदन के महापर्व पर आइए जानें इन अनूठे शिवमंदिरों से जुड़ी कुछ रोचक चीजें।
केदारनाथ मंदिर
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में 3,584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारेश्वर का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में मिलता है। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों के वंशज राजा जनमेजय ने करवाया था। तत्पश्चात विक्रम संवत् 1076 से 1099 के मध्य मालवा के राजा भोज ने यहां कत्यूरी शैली में शिवमंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद 8वीं शताब्दी में जगद्गुुरु आदि शंकराचार्य ने इसका जीर्णोद्धार कराया। मंदिर के गर्भगृह में चार कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं। विशाल सभामंडप की एक ही पत्थर से बनी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है जिसके गवाक्षों में अत्यंत कलात्मक मूर्तियां हैं। कहते हैं, भगवान् विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे।
कालेश्वरम् मंदिर
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव तेलंगाना की तीन पवित्र पहाड़ियों पर लिंग रूप में विराजमान हैं। उनके ये सुप्रसिद्ध त्रिलिंग हैं-कालेश्वर मुक्तेश्वर स्वामी देवस्थानम्, श्रीशैलम् के श्री मल्लिकार्जुन स्वामी और द्राक्षारामा अर्थात् दक्षिण की काशी। इन त्रिलिंगों को शिव के तीन नेत्र माना जाता है। श्रीशैलम् के श्री मल्लिकार्जुन मंदिर की गिनती द्वादश ज्योतिर्लिंगों में होती है। कहा जाता है कि आदिकाल में इन पहाड़ियों पर हुए सुर-असुर महासंग्राम में महादेव ने भगवान् विष्णु की मदद से आसुरी शक्तियों का संहार किया था। तभी वे यहां मृत्यु के देवता श्री कालेश्वरम् के रूप में पूज्य हो गये।
पंच तत्वों के प्रतिनिधि शिव मंदिर
दक्षिण भारत के पांच अनूठे शिव मंदिर प्राचीन भारत के वास्तु-विज्ञान व वेदों का अद्भुुत समागम दर्शाते हैं। तमिलनाडु में कांचीपुरम के एकंबरेश्वर मंदिर में पूजित रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है। इसी तरह तमिलनाडु के ही तिरुचिरापल्ली के जंबुकेश्वर मंदिर के भूगर्भ जल स्रोत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। इसी तरह तिरुवन्नमलै के अरुणाचलेश्वर मंदिर में प्रज्ज्वलित विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्निलिंग है। चिदंबरम् मंदिर की निराकार अवस्था आकाश तत्व की द्योतक है तथा आंध्रप्रदेश के श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायुलिंग है। है न अचरज की बात! ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार दक्षिण भारत के इन सुप्रसिद्ध शिव मंदिरों का निर्माण पल्लव शासकों ने करवाया था। बाद में इसका पुनर्निर्माण चोल और विजयनगर के राजाओं ने करवाया। एकम्बरनाथ मंदिर का मुख्य आकर्षण इसके 1000 स्तम्भों का मंडप व कलात्मक मूर्तियां हैं।
मार्च-अप्रैल में मनाया जाने वाला इस मंदिर का दस दिवसीय ‘पंगुनी उथिराम उत्सव’ विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसी तरह चिदंबरम् मंदिर भगवान् शिव के नटराज स्वरूप को समर्पित 40 एकड़ क्षेत्र में फैला अत्यधिक भव्य मंदिर है। नाट्य कला के जनक भगवान शिव ने सर्वप्रथम आनंद तांडव की प्रस्तुति यहीं दी थी। खास बात यह है कि इस मंदिर में शिव व विष्णु (पेरूमल) दोनों देवता एक ही स्थान पर प्रतिष्ठित हैं। इसी कड़ी का अन्य प्रमुख मंदिर है आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले का श्रीकालहस्ती मंदिर। इस मंदिर की लिंगमूर्ति वायुतत्व की मानी जाती है, अत: पुजारी भी उसका स्पर्श नहीं कर सकता। पौराणिक कथा के अनुसार सर्वप्रथम इन्हीं तीनों ने इस लिंग की आराधना की थी। इस मंदिर की सबसे बड़ी खूबी यह है कि देश में इसी इकलौते मंदिर में ग्रहण के दौरान खास पूजा-अर्चना की जाती है।
रामेश्वरम् मंदिर
रामेश्वरम स्थित रामनाथस्वामी मंदिर के बारे में मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना त्रेतायुग में स्वयं भगवान् राम ने की थी। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख धामों में से एक हिंदुओं का यह पवित्र मंदिर दक्षिण भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का बेहतरीन उदाहरण है। मंदिर के गर्भगृह में नौ ज्योतिर्लिंग हैं जो लंकापति विभीषण द्वारा स्थापित बताए जाते हैं। मंदिर में लगे ताम्रपट से पता चलता है कि 1173 ईस्वी में श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु ने मूल लिंग वाले गर्भगृह का निर्माण करवाया था।
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