संकट से उबारता बजट
चायनीज वायरस कोरोना से जहां विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा गर्इं वहीं भारत में झटके को झटक फिर खड़े होने के आशापूर्ण आर्थिक संकेत मिल रहे हैं। भाजपा सरकार की भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की घोषणा को महामारी से झटका तो लगा लेकिन 2021-22 का बजट उससे उबरने का मार्ग सुझाता प्रतीत होता है
संसद में इस बार का बजट बेशक अभूतपूर्व स्थितियों में पेश किया गया है; कोरोना महामारी की लाचारी, तिस पर ‘किसान’ आंदोलन के तीखे तेवर। इसी के साथ आम जनता में तरह—तरह की चिंताएं थीं। महामारी के कारण अर्थव्यवस्था के हालात नाजुक हैं इसलिए लोगों को लगता था कि इस बजट में सरकार कर बढ़ा देगी, अमीरों पर अतिरिक्त कर लग जायेगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। यानी कई लोगों की आशंकित बुरी खबर नहीं आयी, तो शेयर बाजार ने परम मुदित होकर तेज छलांग लगा दी। बजट के बाद मुंबई शेयर बाजार (मुंशेबा) का सूचकांक पांच प्रतिशत ऊपर बंद हुआ। बजट प्रस्तुति के अगले दिन यानी 2 फरवरी को भी सूचकांक ने 2.46 प्रतिशत की छलांग और लगायी। सूचकांक कई वजहों से उतरता और चढ़ता है। यूं सूचकांक समग्र अर्थव्यवस्था के आकलन का एक पैमाना है, एकमात्र पैमाना नहीं होता। पर इससे कारोबारी आकांक्षाएं और अर्थव्यवस्था को लेकर बांधी गई उम्मीदों और आशंकाओं का संबंध है, सो मुंशेबा के सूचकांक को ऊपर जाना अपना महत्व रखता है।
राजकोषीय घाटा
2020-21 के लिए राजकोषीय घाटे का अनुमान था कि यह सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 प्रतिशत होगा, पर यह उछलकर 9.5 प्रतिशत पर चला गया है। 2021-22 के लिए अनुमान है कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 6.8 प्रतिशत रहेगा। कोरोना काल में राजकोषीय घाटा तय लक्ष्य के दुगुने से भी ऊपर चला गया। पर इस पर ज्यादा चिंता होती नहीं दिख रही। आर्थिक सर्वेक्षण कुछ दिन पहले ही कोरोना संकट को ‘शताब्दी के संकट’ के तौर पर चिन्हित कर चुका है। यानी ऐसा अपवादपूर्ण संकट जो एक शताब्दी में देखने में आता है कभी-कभार। तो इस अपवादस्वरूप परिस्थिति में राजकोषीय घाटे का ज्यादा हो जाना चिंता का विषय तो है, पर हाहाकार की आवश्यकता नहीं है। सरकार के सामने कई तरह की चुनौतियां थीं। बजट आंकड़ों के अनुसार संसाधन उगाही के मामले में कई स्तर पर कमजोरी रही।
विनिवेश से झूम उठा शेयर बाजार
विनिवेश यानी सरकारी उपक्रमों के शेयर बेचकर 2020-21 में 2,10,000 करोड़ रुपये उगाहे जाने की बात थी, पर सिर्फ 32,000 करोड़ रुपये ही उगाहे जा सके। यानी तय लक्ष्य का करीब 15 प्रतिशत ही हासिल किया जा सका। 2021-22 के लिए इस मद से 1,75,000 करोड़ रुपये उगाहे जाने का प्रस्ताव है। शेयर बाजार ने जिस तरह से झूमकर बजट पर प्रतिक्रिया दी है, उससे लगता है, अब की बार यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल नहीं होना चाहिए। बीपीसीएल, एयर इंडिया, शिपिंग कॉर्पोरेशन आॅफ इंडिया, कंटेनर कॉर्पोरेशन आॅफ इंडिया, आईडीबीआई बैंक, बीईएमएल, पवन हंस, नीलाचल इस्पात निगम लिमिटेड आदि का रणनीतिक विनिवेश वित्त वर्ष 2021-22 तक पूरा किया जायेगा। वर्ष 2021-22 में सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों और एक साधारण बीमा कंपनी का निजीकरण किया जाएगा। आवश्यक संशोधन के जरिए एलआईसी का आईपीओ यानी ‘इनिशियल पब्लिक आफर’ यानी जनता के लिए शेयरों का निर्गम लाया जाएगा। कुल मिलाकर स्पष्ट है कि अब निजी क्षेत्र को लगातार कोसने का वक्त चला गया है।
कोरोनाग्रस्त अर्थव्यवस्था में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए तय रकम से ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ी। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत 2020-21 में 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया किया गया था, इसे बीच साल में बढ़ाकर 1,15,500 करोड़ रुपये करना पड़ा। अब 2021-22 के लिए इसके लिए 73,000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है।
सरकारी संस्थानों में लगातार निवेश के बावजूद अगर सकारात्मक परिणाम ना आ रहे हों, तो दूसरे विकल्पों पर विचार जरूरी हो जाता है। ऐसे में निजी क्षेत्र का दोयम दर्जे की मानसिकता से उबरना जरूरी है। देश में टीकाकरण और टेलीकॉम के क्षेत्र में जो काम हो रहा है, वह निजी क्षेत्र की भागीदारी के बगैर संभव नहीं है। विनिवेश से सरकार को आवश्यक संसाधन मिलेंगे और संसाधनों के उत्पादक इस्तेमाल का मार्ग प्रशस्त होगा।
करों के मोर्चे पर चुनौतियां
2020-21 के लिए कंपनी कर से 6,81,000 करोड़ रुपये उगाहे जाने का लक्ष्य था। पर कोरोना संकट की वजह से इस मद से सिर्फ 4,46,000 करोड़ रुपये हासिल हुए यानी करीब 65 प्रतिशत। अब 2021-22 में सरकार ने अपनी उम्मीदों को 2020-21 के मूल स्तर से भी कम कर दिया है। अब कंपनी कर से 2021-22 में 5,47,000 करोड़ रुपये उगाहने की योजना है। सरकार को उम्मीद थी कि 2020-21 में आयकर की मद से 6,38,000 करोड़ रुपये की वसूली होगी, पर वास्तविक वसूली हुई 4,59,000 करोड़ रुपये की यानी तय लक्ष्य के मुकाबले 72 प्रतिशत की प्राप्ति हुई आयकर से। स्वाभाविक है कि एक सिकुड़ती अर्थव्यवस्था में जब आय सिकुड़ रही हो तो आयकर कैसे बढ़ सकता है। सरकार को उम्मीद है कि वापसी की राह पर चलती अर्थव्यवस्था में 2021-22 में 5,61,000 करोड़ रुपये आयकर की मद में हासिल किये जा सकते हैं। यही हाल आयात शुल्क का रहा; 2020-21 में सरकार को उम्मीद थी कि सीमा शुल्क से 1,38,000 करोड़ रुपये उगाहे जायेंगे, पर वास्तव में सिर्फ 1,12,000 करोड़ रुपये ही इस मद से आये। यानी तय लक्ष्य का करीब 81 प्रतिशत ही हासिल हो पाया इस मद से।
कोरोना का दंश
कमाई उतनी नहीं हुई, जितनी उम्मीद थी, पर खर्चे बढ़ाकर करने पड़े। कोरोनाग्रस्त अर्थव्यवस्था में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए तय रकम से ज्यादा रकम खर्च करनी पड़ी। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (मनरेगा) के तहत 2020-21 में 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया किया गया था, इसे बीच साल में बढ़ाकर 1,15,500 करोड़ रुपये करना पड़ा। अब 2021-22 के लिए इसके लिए 73,000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। यह योजना कोरोना काल में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई। कुल मिलाकर इस बजट के आंकड़े बता रहे हैं कि यह कोरोना की तपिश से झुलसा हुआ बजट है, जिसमें आय के तमाम अनुमान धराशायी हो गये और आय-प्राप्ति लक्ष्य के मुकाबले बहुत कम रही; दूसरी तरफ खर्चे उम्मीद से बहुत ज्यादा बढ़े इसलिए सरकार का खजाना संकट में आया। इतना संकट में आया कि राजकोषीय घाटा जितना होना चाहिए था लक्ष्य के अनुसार, वह तय लक्ष्य के दुगुने से भी ऊपर निकल गया-2020-21 में।
वास्थ्य और कल्याण
तिक और वित्तीय पूंजी तथा अवसंरचना
कांक्षी भारत के लिए समावेशी विकास
नवपूंजी में नवजीवन का संचार
नवाचार तथा अनुसंधान और विकास
यूनतम सरकार और अधिकतम शासन
राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 9.5 फीसदी रहा। वित्त मंत्री ने उम्मीद जतायी कि 2025-26 तक यह पटरी पर लौटेगा-सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 प्रतिशत के स्तर पर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट के बाद के संबोधन में बताया कि इस बजट ने जीने की सुगमता पर ध्यान दिया है। जीना सुगम तब होता है जब दाल-रोटी का इंतजाम, रोजगार का इंतजाम ठीक होता रहे। रोजगार बढ़ेगा, इस बजट से ऐसी उम्मीद की जा सकती है क्योंकि नये करों से आम आदमी की क्रय क्षमता पर चोट नहीं की गई है। हां, यह बात और है कि आम आदमी को वह राहत नहीं मिली, जो इस संकटग्रस्त समय में उसकी मुश्किलें आसान कर देती; उसका जीना सुगम बना देती। सरकार का दावा है कि 2021-22 का बजट 6 स्तंभों पर टिका है। पहला स्तंभ है— स्वास्थ्य और कल्याण, दूसरा-भौतिक और वित्तीय पूंजी और अवसंरचना, तीसरा—आकांक्षी भारत के लिए समावेशी विकास, चौथा—मानवपूंजी में नवजीवन का संचार करना, पांचवां-नवाचार और अनुसंधान और विकास; और छठा स्तंभ—न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन। ये सारे स्तंभ नये नहीं हैं। समय—समय पर किसी ना किसी रूप में नीतिगत घोषणाओं में आते रहते हैं। घोषणाओं को जमीन पर उतार लाना मुश्किल और महत्वपूर्ण काम है।
बुजुर्गों को राहत
इस बार के बजट में बुजुर्गों को बड़ी राहत मिली है। 75 साल से अधिक की उम्र के लोगों पर अब कोई कर नहीं लगेगा। हालांकि, शर्त यह है कि यह छूट उन्हें सिर्फ पेंशन और ब्याज पर दी जा रही है, ना कि बाकी किसी तरीके से हुए कमाई पर। यानी बाकी हर तरह की कमाई कर के दायरे में होगी।
2021-22 में सरकार ने अपनी उम्मीदों को 2020-21 के मूल स्तर से भी कम कर दिया है। अब कंपनी कर से 5,47,000 करोड़ रुपये उगाहने की योजना है। सरकार को उम्मीद थी कि 2020-21 में आयकर की मद से 6,38,000 करोड़ रुपये की वसूली होगी, पर वास्तविक वसूली हुई 4,59,000 करोड़ रुपये की यानी तय लक्ष्य के मुकाबले 72 प्रतिशत की प्राप्ति हुई आयकर से
इस बार के बजट में बीमा क्षेत्र में 74 फीसदी तक विदेशी निवेश का ऐलान किया गया है, जो पहले सिर्फ 49 फीसदी था। इसके अलावा निवेशकों के लिए चार्टर बनाने का भी ऐलान किया गया है। वहीं बैंकों का फंसा हुआ कर्ज दूर करने के लिए एक अलग से कंपनी बन रही है, जो इस फंसे हुए कर्ज को बैंकों से लेकर बाजार में बेचेगी। यह बजट वेतनभोगियों को राहत नहीं दे पाया। काफी समय से इस बजट से उम्मीद की जा रही थी कि इसमें धारा 80 सी के तहत छूट की सीमा बढ़ सकती है और साथ ही 2.5 लाख रुपये तक की कमाई पर मिलने वाली छूट के भी बढ़ने की उम्मीद थी। यह उम्मीद इसलिए भी की जा रही थी, क्योंकि पिछले करीब 7 साल से इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। आखिरी बार जुलाई 2014 में यह कर छूट की सीमा 2 लाख से बढ़ाकर 2.5 लाख की गई थी और धारा 80 सी के तहत निवेश पर कर छूट की सीमा 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये की गई थी। तो वेतनभोगियों के लिए शुभ समाचार इसे ही माना जा सकता है कि उनसे और ज्यादा कर वसूली की तैयारी नहीं की गयी।
कृषि क्षेत्र
नये कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कुछ संदेश देने की कोशिश की। वित्त मंत्री ने कहा कि 1,000 और मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय बाजार और कृषि बुनियादी ढांचे के साथ समाहित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए एपीएमसी यानी कृषि मंडियों को फंड उपलब्ध कराया जाएगा। वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि ढांचा अनुदान का खर्च बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये किया जाएगा। कृषि मंडियों के लिए और संसाधन उपलब्ध कराने का आशय है कि मंडियां खत्म नहीं की जा रही हैं। सरकार के इस संदेश का ‘किसान’ आंदोलन पर क्या असर पड़ेगा, यह अभी देखना है। कई किसान नेताओं की आशंका है कि कृषि मंडियां खत्म कर दी जायेंगी। पर यह बजट आश्वस्त करता है कि मंडियां खत्म नहीं हो रही हैं।
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स्वास्थ्य की अर्थव्यवस्था
स्वास्थ्य क्षेत्र की महत्ता को कोरोना काल ने जितना रेखांकित किया है, उतना कोई भी काल रेखांकित नहीं कर सकता था। आर्थिक सर्वेक्षण ने कोरोना त्रासदी को शताब्दी के संकट के तौर पर चिन्हित किया था। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में करीब 137 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गयी है। 2019-20 में समग्र स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 86,259 करोड़ रुपये रखे गये थे। पर 2020-21 में इस तय रकम से ज्यादा यानी 94,452 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। 2021-22 का स्वास्थ्य बजट 2,23,846 करोड़ रुपये के करीब है। मोटे तौर पर इसे यूं समझा जा सकता है कि अगर माल और सेवाकर का औसत मासिक संग्रह 1,10,000 करोड़ रुपये होता है, तो दो महीने के माल सेवाकर संग्रह जितनी रकम को मोटे तौर पर स्वास्थ्य को समर्पित किया गया है। यह तो अब साफ हो चुका है कि सीमित संसाधनों में भारत ने कोरोना के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ी है। दिल्ली के ही आंकड़े बताते हैं कि यहां आधी से ज्यादा
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