क्या उन्माद के आढ़ती काटेंगे आंदोलन की फसल!
July 22, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

क्या उन्माद के आढ़ती काटेंगे आंदोलन की फसल!

by WEB DESK
Jan 27, 2021, 07:15 am IST
in भारत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

इस घड़ी में सरकार या वास्तविक किसानों, दोनों के लिए महत्वपूर्ण बात ये है कि भाषा का संयम बनाए रखा जाए। कड़वी भाषा, आक्रामक तौर तरीकों, अन्य नागरिकों के लिए परेशानी खड़ी करने वाले पैंतरों से से बचा जाए। जो भी लोग संवाद के इच्छुक हैं वो सामने आएं और उनकी आंशकाओं का निर्मूलन किया जाए साथ ही उपद्रवियों के साथ सख्ती और पारदर्शिता से निपटा जाए।
p6_1 H x W: 0

दिसंबर माह के पहले सप्ताह में सर्दी बढ़ने के साथ-साथ कथित किसान आंदोलन गर्म हो गया है। दिल्ली को अन्य राज्यों के साथ जोड़ने वाले जोड़ों की जकड़न बढ़ गई है। राजधानी के लिए यह सर्द-गर्म, विरोधाभास-विसंगतियां नई बात नहीं हैं। आम लोगों के हितों का सबसे ज्यादा ध्यान रखने का दावा करने वाली, लेकिन वास्तव में महामारी के समय में भी प्रचार-प्रपंच में डूबी हुई निष्ठुर आम आदमी पार्टी की सरकार में दिल्ली के लिए त्रासदियां सामान्य ही हैं।

खैर, केंद्र सरकार कृषि सुधारों पर खुल कर अपना पक्ष रख रही है। आशंकाओं के निवारण हेतु तत्परता भी दिखाई जा रही है, मगर किसान पक्ष के जो कथित पैरोकार हैं उनकी तरफ से सहज संवाद की बजाय जो अक्खड़, अड़ियल प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, वो पक्षकारों और दिल्ली के नागरिकों की उलझनें बढ़ा रही हैं। ऐसे में ये प्रश्न मिथ्या हो जाता है कि सरकार और किसानों के बीच में वार्ता से आगे क्या परिणाम प्राप्त होंगे क्योंकि आंदोलन के आड़ में संवाद के लिए अनिच्छुक चेहरे बता रहे हैं कि उनके मन में क्या चल रहा है।

सच यह है कि इस आंदोलन को किसी अन्य आंदोलन की तरह देखना भूल हो सकती है क्योंकि किसानों की बजाय अराजक तत्व इसे पोस रहे हैं और अराजकता के ‘पोस्टर बॉय’ अरविंद केजरीवाल कोरोना काल में दिल्ली के कुशासन से ध्यान हटाने के लिए आंदोलन को दिल्ली की ओर खींचने के लिए उतावले दिखते हैं।

मत भूलिए कि राजनीति में कदम रखते वक्त केजरीवाल ने सबसे पहले कहा था कि हम अराजकतावादी हैं। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इस आंदोलन में जो चेहरे दिखाई दे रहे हैं (जैसे योगेंद्र यादव, मेधा पाटकर और भिंडरावाला को आतंकी न मानने वाले एक्टर दीप सिद्धू) वे स्वयं किसान नहीं हैं। ऐसे में कृषि बिलों पर फौरी बहस-समझाइश से ताव खाए भोले-भाले असली किसानों के गले यह तत्व आफत की तरह पड़ गए हैं। अब ये उनका दायित्व बनता है कि समाज को बांटने, हिंसा को बढ़ावा देने और देश के अहित की इच्छा रखने वाले लोगों को अपने आंदोलन का मंच न मुहैया कराएं।

जिस तरह से पिछले कुछ समय में वामपंथी संगठनों ने विश्वविद्यालय कैंपसों में आक्रोश को बढ़ावा दिया है वैसे ही वामपंथी संगठन अब इस आंदोलन को भी ‘हाईजैक’ करते दिख रहे हैं। आंदोलन की दिशा को देखते हुए लग रहा है कि जल्द ही अधकचरी जानकारी को ‘क्रांतिकारी ज्ञान’ मानने वाले युवाओं को बरगलाने का काम तेज होगा। ऐसे छात्र जो किसी भी हिंसक आंदलोन का कच्चा ईंधन हो सकते हैं, उन्हें इस आंदोलन की ओर ‘फैशनेबल’ तरीके से ठेला जाएगा।

किसानों के पीछे खड़े एजेंडा आंदोलनकारी बेपरवाह हैं। क्योंकि किसान फसल की बिजाई करके अगले 3 महीने के लिए फारिग हैं और निश्चिंतता के इस मैदान पर उन्माद की फसल कटाई जा सकती है। इसलिए रणनीतिक रूप से छितरे हुए आंदोलन को लंबा खींचने के लिए बहुत संख्या बल की आवश्यकता नहीं होगी। थोड़ी सी भीड़ के बल पर ही एक आक्रामक आंदोलन खड़ा करने की तैयारी है। इसे समाज से भावनात्मक जुड़ाव की ढाल देने और मासूम लड़के-लड़कियों को सोशल मीडिया के मोर्चे पर तैनात करने की मन्सूबाबन्दी दिखने भी लगी है।

मुद्दा भले खेती-किसानी है किंतु निश्चित ही किसान या उसके सरोकार इस आंदोलन के केंद्र में नहीं हैं। जिस तरह शाहीनबाग आंदोलन सीएए कानून के विरोध के लिए नहीं था और नागरिकता देने के कानून को नागरिकता छीनने का कानून बताकर कुप्रचार किया गया, कुछ वैसा ही कुप्रचार इस बार भी किया जा रहा है।

वास्तविकता में किसानों की चिंता देश के मुख्य एजेंडे में होनी ही चाहिए क्योंकि विश्व में भारत के अतिरिक्त शायद ही कोई दूसरा देश होगा जहां की कुल जनसंख्या का इतना बड़ा हिस्सा कृषि पर आश्रित हो। यूरोप में भी कई लोग खेती किसानी छोड़ रहे हैं लेकिन भारत में स्थिति और विकट हो जाती है क्योंकि जब दो भाईयों में भूमि का बंटवारा होता है तो उससे उत्साह भी घट जाता है, मन भी टूट जाता है। ऐसे में कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए आवश्यक है कि जो बिचौलिए हैं उन्हें सिस्टम से हटाया जाए। इसलिए इस बिल के आने के बाद जो विमर्श बिचौलियों के खिलाफ होना चाहिए था उसे जानबूझकर एजेंडे के तहत किसान विरोधी बताकर प्रचारित करने वालों का तंत्र कितना मजबूत है इसकी व्याख्या करने की आवश्यकता है।

हां, ये जरूर है कि जब किसानों को दो विकल्प मिल रहे हैं कि चाहे तो वो मंडी में अपनी उपज बेच सकता है और चाहे तो मंडी के बाहर भी। ऐसे में किसान को न्यूनतम मूल्य की गारंटी का आश्वासन मिले इसकी चिंता तो होनी ही चाहिए लेकिन लोकतंत्र में लोक को तंत्र के विरुध षड्यंत्र के अनुसार खड़े करने वाले जो लोग हैं उनपर नजर रखना भी बेहद आवश्यक है।

इस घड़ी में सरकार या वास्तविक किसानों, दोनों के लिए महत्वपूर्ण बात ये है कि भाषा का संयम बनाए रखा जाए। कड़वी भाषा, आक्रामक तौर तरीकों, अन्य नागरिकों के लिए परेशानी खड़ी करने वाले पैंतरों से से बचा जाए। जो भी लोग संवाद के इच्छुक हैं वो सामने आएं और उनकी आंशकाओं का निर्मूलन किया जाए साथ ही उपद्रवियों के साथ सख्ती और पारदर्शिता से निपटा जाए। आंदोलन से या इसके दौरान किसानों के प्रति सामाजिक कड़वाहट नहीं आनी चाहिए।

बहरहाल, किसानों की चिंताओं का समाधान आवश्यक है किंतु अब तक सिस्टम के दोषों का लाभ उठाते आए भ्रष्ट लोग साथ में विपक्षी महत्वाकांक्षा और देश में अस्थिरता और अशांति देखने की इच्छा रखने वाले लोगों का ये गठजोड़ क्या असर दिखाता है इस पर नजर बनाए रखने की भी आवश्यकता है। @hiteshshankar

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

लव जिहाद : राजू नहीं था, निकला वसीम, सऊदी से बलरामपुर तक की कहानी

लव जिहाद और जमीन जिहाद की साजिशें बेनकाब : छांगुर नेटवर्क के पीड़ितों ने साझा की आपबीती

मुरादाबाद : लोन वुल्फ आतंकी साजिश नाकाम, नदीम, मनशेर और रहीस गिरफ्तार

हर गांव में बनेगी सहकारी समिति, अब तक 22,606 समितियां गठित: अमित शाह

खुशखबरी! ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने पर अब दिल्ली सरकार खिलाड़ियों को देगी 7 करोड़ रुपये

पेटीएम ने राशि का भुगतान नहीं किया राज्य आयोग ने सेवा दोष माना

एअर इंडिया ने अपने बोइंग 787 और 737 विमानों की जांच के बाद कहा- कोई समस्या नहीं मिली

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

लव जिहाद : राजू नहीं था, निकला वसीम, सऊदी से बलरामपुर तक की कहानी

लव जिहाद और जमीन जिहाद की साजिशें बेनकाब : छांगुर नेटवर्क के पीड़ितों ने साझा की आपबीती

मुरादाबाद : लोन वुल्फ आतंकी साजिश नाकाम, नदीम, मनशेर और रहीस गिरफ्तार

हर गांव में बनेगी सहकारी समिति, अब तक 22,606 समितियां गठित: अमित शाह

खुशखबरी! ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने पर अब दिल्ली सरकार खिलाड़ियों को देगी 7 करोड़ रुपये

पेटीएम ने राशि का भुगतान नहीं किया राज्य आयोग ने सेवा दोष माना

एअर इंडिया ने अपने बोइंग 787 और 737 विमानों की जांच के बाद कहा- कोई समस्या नहीं मिली

बांग्लादेशी घुसपैठियों के बल पर राजनीति करने वाले घबराए हुए हैं : रविशंकर प्रसाद

बिना जानकारी के विदेश नीति पर न बोलें मुख्यमंत्री भगवंत मान

न्यायपालिका : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी भी व्यक्ति की भावनाओं के साथ खिलवाड़ सहन नहीं

“जापान फर्स्ट” का नारा देने वाली पार्टी जीती : क्या हैं इस जीत के मायने?

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies