इस माह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 5 देशों का दौरा किया। इसके साथ ही वे रियो-डी-जेनेरियो के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी शामिल हुए। उन्होंने घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राजील और नामीबिया की यात्रा की। इस यात्रा पर पंजाब के मुख्यमंत्री श्री भगवंत सिंह मान ने प्रश्नचिन्ह लगाते हुए पूछा कि ‘इस यात्रा से क्या मिला, क्योंकि इनमें से कुछ देश तो दस हजार की जनसंख्या वाले हैं। इनसे ज्यादा लोग तो हमारे यहां जेसीबी देखने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं।’ इस तरह के बयान पर विदेश मंत्रालय ने बिना किसी का नाम लिए आपत्ति भी जताई है। अपरिपक्व बुद्धि इस तरह के बयान पर मुस्कुरा सकती है परन्तु थोड़ी समझ रखने वाले यही कह रहे हैं कि बिना जानकारी के मुख्यमंत्री को विदेश नीति पर कुछ नहीं बोलना चाहिए।
प्रधानमंत्री की इस 8 दिवसीय यात्रा से ग्लोबल साउथ, विशेष रूप से अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भारत की स्थिति मजबूत हुई। चीन के ऋण में फंसे घाना, अर्जेंटीना और नामीबिया में उसके प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति को आगे बढ़ाया गया है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख मजबूत हुआ। पहलगाम आतंकी हमले की निंदा को ब्रिक्स के संयुक्त घोषणापत्र में शामिल करवाने में कूटनीतिक सफलता मिली है। इस यात्रा में लगभग पांचों देशों के साथ यूपीआई समझौते किये। भारत-अफ्रीका सम्बन्धों को नई दिशा, विशेष रूप से घाना और नामीबिया के साथ व्यापारिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान की पहल की गई है। त्रिनिदाद और टोबैगो के साथ सांस्कृतिक और प्रवासी सम्बन्धों को बढ़ावा मिला है। ब्राजील के साथ व्यापार और रक्षा सहयोग में वृद्धि हुई है। इन देशों के साथ हुए समझौतों की सूची काफी लम्बी है, जो दोनों पक्षों के हित में है।
वैसे श्री भगवंत मान का विचार मौलिक रूप से भारतीय सिद्धान्त ‘वसुधैवकुटुम्बकम्’, ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ और ‘सरबत्त दा भला’ के भी खिलाफ है, जो समस्त विश्व को एक परिवार मानता है और सबके मंगल की कामना करता है। परिवार में किसी को छोटा-बड़ा देख कर सम्मान व सहयोग नहीं किया जाता। हम सब का कल्याण चाहते हैं, किसी को छोटा-बड़ा देख कर नहीं। तकनीकी रूप से भी श्री भगवंत मान ठीक नहीं, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र में हर देश का एक ही वोट है। किसी देश की जनसंख्या देख कर वोट की शक्ति नहीं तय की जाती। दस हजार की जनसंख्या वाले देश का भी एक वोट है और 140 करोड़ की आबादी वाले देश का भी एक ही वोट है।
इतिहास साक्षी रहा है कि भारत का शक्तिशाली व समृद्ध होना केवल भारतीयों के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी है। भारत ने सदैव गरीब व जरूरतमंद देशों की सहायता की है, न कि किसी को एहसान तले दबा कर उसका शोषण किया। कोरोनाकाल में भी भारत ने अपने नागरिकों की सेवा के साथ विदेशों में भी दवाईयां भेजीं। विश्व में कहीं भी त्रासदी घटती है तो भारत का यही प्रयास रहता है कि किस तरह आगे बढ़ कर उस देश व समाज की सहायता की जाए। अपनी विस्तारवादी नीति के चलते चीन अफ्रीकी देशों में प्रभुत्व जमा रहा है, इन गरीब देशों की आर्थिक सहायता कर उन्हें अपने चंगुल में ले रहा है। समय आने पर विश्व पटल पर चीन इनका प्रयोग भारत के खिलाफ भी कर सकता है। ऐसे में इन देशों की सहायता करना, समानता के आधार पर व्यापारिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान के समझौते करना न केवल इन देशों बल्कि खुद भारत के लिए भी लाभदायक व दूरदृष्टि वाला कदम है।
केवल इतना ही नहीं, श्री मोदी को इस 8 दिवसीय दौरे के दौरान 5 देशों की यात्रा में 5 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले, जो विश्व में भारत के बढ़ते दबदबे के संकेत हैं। इससे मोदी को मिले अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की संख्या 27 हो चुकी है। घाना में उन्हें ‘द ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ घाना’, त्रिनिदाद और टोबैगो में ‘द ऑर्डर ऑफ द रिपब्लिक ऑफ त्रिनिदाद एण्ड टोबैगो’, ब्राजील में ग्रैण्ड कॉलर ऑफ द नेशनल ऑर्डर ऑफ द साउदर्न क्रॉस, अर्जेंटीना में ‘की टू द सिटी’ सम्मान दिया गया। यह सम्मान विश्व के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को ही दिया जाता है। नामीबिया में श्री मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द मोस्ट एंशिएंट वेल्वित्चिया मिराबिलिस’ से सम्मानित किया गया। वर्णनीय है कि ‘द ऑर्डर ऑफ द रिपब्लिक ऑफ त्रिनिदाद एण्ड टोबैगो’, सम्मान पहली बार किसी विदेशी को दिया गया है। प्रधानमंत्री ने ये पुरस्कार पूरे भारत वासियों को समर्पित किये हैं। उक्त सम्मान केवल पुरस्कार ही नहीं बल्कि भारत की देश-दुनिया में बढ़ रही प्रतिष्ठा के भी प्रतीक हैं। केवल भगवंत मान ही क्यों, देश के किसी भी नेता को विदेश नीति के बारे में बोलने से पूर्व पहले उसका ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए और तभी कुछ बोलना चाहिए। स्वयं को प्रधानमंत्री के बराबर खड़ा करने के प्रयास में कभी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए। इन पंक्तियों के साथ अपनी कलम को विराम देना चाहूंगा …
उन तक पहुंचने की मेरी कुव्वत न थी।
बराबरी करने के लिए मैंने गाली बक दी।
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