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“जापान फर्स्ट” का नारा देने वाली पार्टी जीती : क्या हैं इस जीत के मायने?

जापान में भी सरकार पर यह आरोप लग रहे थे कि जो बाहर से आ रहे हैं, उन्हें स्थानीय नागरिकों की तुलना में तमाम सुख सुविधाएं दी जा रही हैं और सबसे बढ़कर जापान का धार्मिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है।

Published by
सोनाली मिश्रा

जापान में उच्च सदन (अपर हाउस) में उस पार्टी ने सीटें जीत ली हैं, जिसे आज से कुछ वर्ष पहले कोई जानता नहीं था। लेकिन पिछले कई महीने से उसके प्रति माहौल बन रहा था। जापान फर्स्ट का नारा देने वाली सन्सेइतो (Sanseito) पार्टी ने जब जापान फर्स्ट का नारा दिया था, तो क्या यह समझा जाए कि जापान भी किसी न किसी प्रकार की आप्रवासी समस्या से जूझ रहा है? क्या जापान में भी वही सब हो रहा है, जो यूरोप के कई देशों में हो रहा है। क्या आप्रवासियों की अनियंत्रित भीड़ से स्थानीय लोग परेशान हैं?

कुछ महीने पहले पांचजन्य ने जापान की मीडिया के हवाले से यह बताया था कि कैसे जापान में आप्रवासी लोग स्थानीय लड़कियों का यौन उत्पीड़न जैसे कुकृत्य कर रहे हैं और वहां की कार्य संस्कृति के स्थान पर अपना ही राग अलापते हैं। सड़कों पर गंदगी फैलाते हैं और जापान की धार्मिक परंपराओं का उपहास उड़ाते हैं।

जापान में भी सरकार पर यह आरोप लग रहे थे कि जो बाहर से आ रहे हैं, उन्हें स्थानीय नागरिकों की तुलना में तमाम सुख सुविधाएं दी जा रही हैं और सबसे बढ़कर जापान का धार्मिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। जापान में इस्लामिक गतिविधियां पैर पसार रही हैं। मस्जिद पास होने के बावजूद खुले में नमाज पढ़ी जाती थी। इस्लामवादियों का दबाव बढ़ रहा है और स्थानीय कार्य संस्कृति एवं धार्मिक पहचान पर संकट आ रहा है। इससे सत्ताधारी पार्टी के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है।

कोविड के समय हुआ सन्सेइतो पार्टी का उदय

सन्सेइतो पार्टी का जन्म कोविड के समय हुआ था। इसने अपनी पहली सीट वर्ष 2022 में उच्च सदन में जीती थी। इसने अपना चुनावी अभियान “वैश्वीकरण-विरोधी” के रूप में रखा था। इस बार इस पार्टी ने 14 सीटें जीती हैं। मौजूदा सत्ताधारी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का परंपरागत वोट खिसक कर उसके पास आया है। यह काफी समय से दिख भी रहा था। सोशल मीडिया पर आप्रवासियों द्वारा की जा रही हिंसा और अजीबोगरीब हरकतों के वीडियो आ रहे थे।

दरअसल, जापान इस समय कई समस्याओं का सामना कर रहा है। इसमें आर्थिक समस्याएं हैं और जीवनयापन का महंगा होना भी शामिल है। हाल ही में बांग्लादेश के साथ श्रमिकों को बुलाने का अनुबंध सरकार ने किया है और इसको लेकर भी जनता में असंतोष था। जापान में स्कूलों में बहुसंस्कृतिवाद सिखाया जा रहा है और इसके बहाने इस्लाम की बातें बच्चों को बताई जा रही हैं, इसको लेकर भी लोगों में आक्रोश है क्योंकि जापान को अपनी धार्मिक पहचान वाली संस्कृति चाहिए।

जापान में तेजी से बढ़ रहा इस्लाम

जापान में इस्लाम सबसे अधिक तेजी से बढ़ने वाला मजहब है, इसलिए इस आपत्ति पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जापान का लिबरल मीडिया वैसे तो आप्रवासियों के अपराधों के विषय में बाहर बातें नहीं आने देता है, परंतु जैसे ही जापान फर्स्ट का नारा देने वाली पार्टी ने अपर हाउस में अच्छा प्रदर्शन किया, वैसे ही उसकी तरफ से अजीब सा विलाप आरंभ हो गया है। politicalawake नाम से जापान की बातें सामने लाने वाले हैंडल ने लिखा कि असाही टीवी प्रस्तोता केनसुके ओगोए ने सन्सेइतो के उदय के लिए श्वेत लोगों को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि यूरोप में दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद के उदय ने जापानी जनता में बहुसांस्कृतिक सह-अस्तित्व को स्वीकार करने का डर पैदा कर दिया है और इसके जवाब में ज़ेनोफोबिक जापानी प्रथम भावना को बढ़ावा दिया है।

जापान की लिबरल मीडिया ये सवाल नहीं उठाती

जब लिबरल मीडिया बहुसांस्कृतिक सह अस्तित्व की बात करता है, तो वह यह क्यों नहीं बताता कि कट्टरपंथ जो सह-अस्तित्व के सिद्धांत में विश्वास नहीं रखता है। जो लोग जापान में बाहर से आ रहे हैं, क्या उन्हें जापान की संस्कृति का सम्मान नहीं करना चाहिए? यह एक मूल प्रश्न है, परंतु इसका उत्तर कभी भी लिबरल मीडिया के पास नहीं होता है। अभी जब जापान में बहुसांस्कृतिक वाद पर वह विलाप कर रहा है, तो उसी समय बांग्लादेश में पूरी तरह से कट्टर मजहबी सियासी पार्टी की रैली के विषय में वह मौन है। साथ ही सीरिया में अल्पसंख्यक ड्रूज़ समुदाय की हत्याएं हो रही हैं, मगर फिर भी यह नहीं कहा जा रहा है कि सीरिया के मजहबी लड़ाकों को बहुसांस्कृतिकवाद का आदर करना चाहिए। लेकिन, जापान फर्स्ट का नारा देकर अपर हाउस में 14 सीटें जीतने वाली पार्टी उसके निशाने पर है। उसके नेता सोहेई कामिया भी, जो अपने देश की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने का वादा करके एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से अपर हाउस में पहुंचे हैं।

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