उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद की पूजा के स्कूल के पास थ्रेशर मशीन लगी हुई है। उस मशीन से उड़ने वाली धूल से वहां के छात्र-छात्राओं को बहुत दिक्कत होती है। इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए पूजा ने सोचा था कि क्या ऐसी कोई मशीन बन सकती है। जिसमें धूल न निकले। जब वह कक्षा 8 की छात्रा थी, तब पूजा ने टीन और पंखे की मदद से धूल रहित थ्रेसर मशीन का मॉडल बनाया। इसमें धूल एक थैले में जमा हो जाती है।
यह नया मॉडल लोगों के लिए बहुत ही सुविधाजनक और पर्यावरण के भी सुरक्षित है। माता-पिता की मेहनत-मजदूरी से ही परिवार का गुजर बसर होता है, मगर फिर भी किसी तरह 3 हजार रुपये की व्यवस्था करके पूजा ने धूल रहित थ्रेसर मशीन का मॉडल बनाया। वर्ष 2020 में यह मॉडल जनपद और मंडल स्तर पर चुना गया। उसके बाद राज्य स्तरीय प्रदर्शनी और फिर राष्ट्रीय विज्ञान मेले में भी इस मॉडल को प्रदर्शित किया गया। जून 2025 में भारत सरकार ने पूजा को शैक्षिक भ्रमण के लिए जापान भेजा। जापान में भी पूजा के मॉडल की प्रशंसा की गई।
पिता करते हैं मजदूरी
पूजा के पिता पुत्ती लाल मेहनत – मजदूरी करते हैं। पूजा की मां एक सरकारी स्कूल में भोजन बनाती हैं। इन दोनों लोगों की आय से ही घर का जीविकोपार्जन होता है। पूजा के माता – पिता ने हमेशा ही पूजा को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। पूजा कहती हैं “मेरे माता – पिता कहते हैं कि पढ़ाई से ही सब कुछ है। पढ़ाई के सहारे ही बढ़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। इसलिए मैंने यह सोचा है कि मैं पढ़ाई को आगे भी जारी रखूँगी।” छप्पर के जिस घर में पूरा परिवार रहता है। उसमे पांच भाई-बहन अपने माता – पिता के साथ रहते हैं। दीपक की रौशनी में पूजा ने अभी तक की पढ़ाई की है। अभी तक घर में बिजली का कनेक्शन नहीं जुड़ा है। प्रशासन ने सहयोग किया है मगर मगर कुछ धनराशि अभी जमा न हो पाने के कारण बिजली का कनेक्शन नहीं लग पाया है।
पूजा गांव में रहते हुए बहुत मेहनत और लगन से पढ़ाई कर रही है और इसके साथ ही घर के काम में भी सहयोग कर रही है। अपने भाई के साथ पशुओं के लिए चारा काटने आदि के कार्यों में भी सहायता करती है। गांव के इस वातावरण में पूजा के लिए पढ़ाई के समय निकाल पाना थोड़ा मुश्किल जरूर था, मगर फिर भी पूजा अपनी मेहनत और लगन से अपनी पहचान बनाने में सफल हो रही है।
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