एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक निर्णय लेते हुए अमेरिका ने ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट (The Resistance Front, TRF)’ को एक विदेशी आतंकवादी संगठन (Foreign Terrorist Organisation,FTO) के रूप में नामित किया। टीआरएफ पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का एक ज्ञात मुखौटा है। लश्कर-ए-तैयबा को संयुक्त राष्ट्र संघ, अमेरिका और बड़ी संख्या में पश्चिमी देशों ने आतंकवादी संगठन के रूप में पहले ही प्रतिबंधित कर रखा है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने टीआरएफ को ‘विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी (Specially Designated Global Terrorist,SDGT)’ भी घोषित किया है।
भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत
टीआरएफ को एफटीओ और एसडीजीटी के रूप में नामित करना भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत है। अमेरिका की स्वीकृति के भारत और हमारे आस पड़ोस के लिए दूरगामी रणनीतिक और सुरक्षा निहितार्थ हैं। टीआरएफ 22 अप्रैल को पहलगाम में जघन्य आतंकी हमले और 26 निर्दोष पर्यटकों की चुनिंदा हत्या के लिए जिम्मेदार है। इस आतंकी हमले के पैरों के निशान पाकिस्तान तक जाते हैं। इस आतंकी हमले पर पाकिस्तान की आईएसआई के हस्ताक्षर साफ नजर आते हैं और हमले को अंजाम देने में उसका पूरा समर्थन था।
पाकिस्तान ने वर्ष 2019 में टीआरएफ को जम्मू और कश्मीर में प्रायोजित किया जब भारत ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था। पाकिस्तान का लक्ष्य टीआरएफ को कश्मीर के घरेलू आतंकवादी संगठन के रूप में पेश करना था ताकि उस पर कोई दोष नहीं मढ़े। आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा पर पहले से ही वैश्विक प्रतिबंध है और पाकिस्तान एफएटीएफ के तहत और प्रतिबंध नहीं चाहता था। पाकिस्तान 2018 से FATF के प्रतिबंध में रहने के बाद अक्टूबर 2022 में FATF ग्रे सूची से बाहर आने वाले अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल रहा। टीआरएफ पर एक बार फिर प्रतिबंध लगाने के साथ, पाकिस्तान को अब आतंकी फंडिंग और समर्थन के लिए एफएटीएफ की ग्रे सूची में वापस रखा जाना चाहिए।
भारत की ‘न्यू नॉर्मल’ नीति की स्वीकारोक्ति
रणनीतिक रूप से, अमेरिका का कदम आतंकवाद के खिलाफ भारत की ‘New Normal’ नीति को स्वीकार करता है। भारत ने लंबे समय तक ‘आतंकवाद के लिए शून्य सहिष्णुता (Zero Tolerance for Terrorism)’ की नीति का पालन किया है लेकिन इस नीति ने आतंकवाद के प्रायोजकों को लक्षित करने के लिए आक्रामक दृष्टिकोण कम था। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने 7 मई को पाकिस्तान में स्थित नौ ज्ञात आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। जब पाकिस्तान ने संघर्ष को बढ़ाया, तब जाकर भारत ने 9/10 मई को पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर आनुपातिक तरीके से दंडात्मक कार्रवाई की। भारत की सटीक स्ट्राइक ने पाकिस्तान की सेना को इतनी बुरी तरह से पंगु बना दिया कि उन्हें 10 मई को भारत के साथ संघर्ष विराम की गुहार लगानी पड़ी।
अब परमाणु युद्ध की धमकी नहीं देगा पाकिस्तान!
यह स्पष्ट है कि अमेरिका दो परमाणु सशस्त्र पड़ोसियों भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते संघर्ष के बारे में चिंतित था। अमेरिका निश्चित रूप से पाकिस्तान की अनिश्चित परमाणु नीति और ‘सामरिक परमाणु हथियारों (Tactical Nuclear Weapons, टीएनडब्ल्यू)’ के उपयोग के संकेतों के कारण असहज रहा होगा। दूसरी ओर भारत की एक जिम्मेदार ‘पहले इस्तेमाल नहीं (No First Use)’ परमाणु नीति है। पहलगाम आतंकी हमले का सुविचारित और सटीक जवाब देकर भारत एक बार फिर जिम्मेदार सैन्य शक्ति साबित हुआ। ऑपरेशन सिंदूर ने भारत को पाकिस्तान के परमाणु झांसे से हमेशा के लिए मुक्त होने की अभूतपूर्व सफलता दी। भारत के इस रणनीतिक सफलता से अमेरिका को भी राहत मिली होगी। अब पाकिस्तान भारत से परमाणु युद्ध की बात तो नहीं करेगा।
सैन्य रूप से, अमेरिका ने आतंकवादी हमलों से खुद की रक्षा करने के साथ-साथ आतंकवाद को आश्रय देने वालों को निशाना बनाने के भारत के अधिकार को स्वीकार किया है। भारत की प्रतिक्रिया वैसी ही है जैसी अमेरिका ने 9/11 आतंकी हमले के बाद की थी और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध छेड़ा था। अमेरिका ने अलकायदा के खिलाफ साल 2001 में अपनी सेना को अफगानिस्तान भी भेजा था। वास्तव में, इसकी सेनाओं ने लगभग 20 वर्ष वहाँ रहने के बाद अंततः 30 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान छोड़ दिया। यानि की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लंबी चलती है। हम यह भी देखते हैं कि इज़राइल, जो की अमेरिका का करीबी सहयोगी है, अपने विरोधियों, हमास, हौथी, यमन, ईरान और सीरिया के खिलाफ लगातार आक्रामक रहा है। भारत बहुत संयमित रहा है लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के जरिए उसने आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक बड़े बदलाव का स्पष्ट संकेत दिया है।
पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखने की जरूरत
इस महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत को आतंकवाद से निपटने में भारत और अमेरिका के बीच अधिक सहयोग का संकेत भी माना जाना चाहिए। व्यापार समझौते होने पर, भारत-अमेरिका संबंधों को नई दिशा मिलनी चाहिए। क्षेत्रीय मजबूरियों की वजह से अमेरिका अब भी पाकिस्तान का समर्थन करना जारी रखेगा, खासकर पश्चिम एशिया में अमेरिकी हितों के लिए। लेकिन भारत को पाकिस्तान पर दवाब बना कर रखना चाहिए जब तक वह अपनी धरती पर प्रमुख आतंकवादी संगठनों को पनाह देता है। पाकिस्तान आधारित टीआरएफ को वैश्विक खतरा घोषित किए जाने के साथ ही भारत के पास अब आतंकवाद पर अपनी नई घोषित नीति के अनुसार उसके ज्ञात आतंकी केन्द्रों पर हमला करने का अधिकार सुरक्षित है।
ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान पर इतनी शानदार सैन्य जीत और इस उल्लेखनीय कूटनीतिक उपलब्धि के बाद, मेरी चिंता यह है कि क्या हम एक राष्ट्र के रूप में अपने देश के भीतर का नैरेटिव खोने जा रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर पक्ष और विपक्ष की धारणाओं में अंतर को लेकर संसद का मानसून सत्र हंगामेदार रहने की संभावना है। मुझे संदेह है कि विपक्ष का कुछ हिस्सा अनजाने में पाकिस्तान के झूठे नैरेटिव का समर्थन कर सकता है। यह भारतीय सशस्त्र सेनाओं और अर्धसैनिक बलों की वीरता और बलिदान के प्रति घोर अन्याय होगा। विपक्षी दलों की ओर से इस तरह की नकारात्मकता वर्दीधारी बलों को हतोत्साहित कर सकती है। मैं सांसदों से आग्रह करता हूं कि वे राजनीतिक भेदभाव से ऊपर उठें और आतंकवाद पर पाकिस्तान एवं हमारे अन्य दुश्मनों को स्पष्ट चेतावनी दें। जय भारत!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के स्वयं के विचार हैं। ये आवश्यक नहीं कि पाञ्चजन्य उनसे सहमत हो)
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