विश्व

जिहादी सोच का पाकिस्तान आपरेशन सिंदूर में ध्वस्त अड्डों को फिर से खड़ा करेगा, 100 करोड़ में चीनी कंपनी से बनवाएगी सरकार

ध्वस्त आतंकी अड्डों के पुनर्निर्माण का फैसला बेशक एक दीर्घकालिक साजिश का हिस्सा ही है, जिसमें पाकिस्तान की सेना और गुप्तचर संस्था आईएसआई भारत विरोधी हरकतों को अंजाम देते आ रहे हैं

Published by
Alok Goswami

भारत के पड़ोसी जिन्ना के कट्टर मजहबी देश की आतंकवाद को पालने वाली सरकार को लेकर जो संदेह व्यक्त किया जा रहा था, आखिर वहां के सही सोच से कंगाल नेताओं ने वही किया है। पाकिस्तान ने भारत द्वारा 7 से 10 मई तक चलाए ‘आपरेशन सिंदूर’ में नष्ट किए गए पीओजेके के 9 आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को फिर से बनाने की कवायद शुरू की है। इसके लिए शाहबाज शरीफ की सेना की कठपुतली सरकार ने 100 करोड़ पाकिस्तानी रुपए पारित किए हैं। इन आतंकी अड्डों के निर्माण के लिए उसने चीन की कंपनियों को काम सौंपने का फैसला किया है और इस बारे में चीन की कंपनियों से बात भी की जा रही है। यानी परोक्ष रूप से जिन्ना के देश को रोटी खिला रहा उसका कम्युनिस्ट आका भी आतंकवाद को जिलाए रखने और सभ्य जगत के लिए संकट बनाए रखने की साजिश में शामिल है।

दरअसल, भारत ने वह आपरेशन जिन्ना के देश के अंदर पनपाए और पोसे जा रहे आतंकवाद को कुचलने के लिए चलाया था और सटीक मार से 9 आतंकी अड्डों को नेस्तोनाबूद किया था। इनमें कुख्यात आतंकी सरगना हाफिज सईद के लश्करे तैयबा और मसूद अजहर के जैशे मोहम्मद आतंकी संगठनों के शिविर शामिल थे। इन शिविरों को फिर से सरकार द्वारा खड़े किए जाने की शैतानी शरारत दिखाती है कि यह मुद्दा दक्षिण एशिया की सुरक्षा के लिए ही खतरा नहीं है बल्कि भारत-पाकिस्तान संबंधों, चीन के भू-राजनीतिक हस्तक्षेप और क्षेत्रीय स्थिरता पर भी गंभीर असर डालने वाला है।

ध्वस्त आतंकी अड्डों के पुनर्निर्माण का फैसला बेशक एक दीर्घकालिक साजिश का हिस्सा ही है, जिसमें पाकिस्तान की सेना और गुप्तचर संस्था आईएसआई भारत विरोधी हरकतों को अंजाम देते आ रहे हैं। भारत द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर ने न केवल इन शिविरों को नष्ट किया था बल्कि सीमा पार आतंकवाद पर पाकिस्तान की पकड़ को भी कमजोर किया था।

विश्व में जिहाद निर्यात करने वाले इन आतंकी शिवि​रों को फिर से खड़ा करने के लिए शरीफ सरकार द्वारा 100 करोड़ देना पाकिस्तानी रुपए राज्य-प्रायोजित आतंकवाद को पुनर्जीवित करने की कोशिश (File Photo)

विश्व में जिहाद निर्यात करने वाले इन आतंकी शिवि​रों को फिर से खड़ा करने के लिए शरीफ सरकार द्वारा 100 करोड़ पाकिस्तानी रुपए देने की बात करना यही दिखाता है कि यह केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि राज्य-प्रायोजित आतंकवाद को पुनर्जीवित करने की कोशिश है। नि:संदेह इस तरह के कदम से पहले से ही थमे हुए भारत-पाकिस्तान संबंध में नया तनाव उत्पन्न होगा। भारत पहले ही सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे को कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठा चुका है।

पाकिस्तान का पूरा प्रयास है कि भारत के जम्मू कश्मीर और पंजाब जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अस्थिरता लाई जाए। उसका यह कदम शंघाई सहयोग संगठन और अन्य क्षेत्रीय सुरक्षा संस्थाओं के बीच भरोसे को कम करने की ​कवायद भी है। चीन की कंपनियों को निर्माण कार्य सौंपने का फैसला कोई सामान्य कारोबारी निर्णय नहीं है, बल्कि इसमें भू-राजनीतिक गठजोड़ों के संकेत छुपे हैं। चीन पहले ही CPEC (China-Pakistan Economic Corridor) के जरिए गिलगित-बाल्टिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है। अब यदि आतंकी अड्डों को फिर से जिलाने में चीन की भागीदारी होती है, तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर दिखा देगा कि पाकिस्तान के माध्यम से चीन भी विश्व के इस हिस्से में आतंकवाद को पोषक बना हुआ है।

‘आपरेशन सिंदूर’ में मारे गए जिहादियों के लिए मातम मना रहे पाकिस्तान सेना के अधिकारी (फाइल चित्र)

इसी कम्युनिस्ट चीन ने संयुक्त राष्ट्र संघ में कुख्यात आतंकवादियों को चिन्हित करने और उन्हें काली सूची में डालने के सभी प्रयासों पर अपनी वीटो ताकत का दुरुपयोग किया है। तय है कि अब इस ताजे कदम से उसकी उसी छवि पर और धब्बा लगेगा। भले चीन की सरकार सीधे तौर पर इन आतंकी शिविरों से खुद को दूर खड़ा दिखाए, लेकिन इसमें उसकी कंपनियों की भागीदारी राजनयिक विवाद तो खड़े करेगी ही।

इसमें दो राय नहीं है कि भारत को इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रियता से उठाना होगा और वह ऐसा करेगा भी। विशेषज्ञों का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, एफएटीएफ जैसे मंचों पर पाकिस्तान के चेहरे की कालिख को और स्पष्टता से दिखाना होगा। भारत की सुरक्षा एजेंसियों को निगरानी बढ़ाते हुए सीमा को और चौकस रखना होगा।

भारत को हर वह कदम उठाना होगा जिससे पाकिस्तान पर दीर्घकालिक दबाव बन सके। क्योंकि बेशक, आतंकी शिविरों का पुनर्निर्माण मानवाधिकार उल्लंघन के प्रयासों को ही बढ़ावा देगा। इसलिए पाकिस्तान की इस करतूत को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय जैसे मंचों पर भी उठाया जा सकता है।

Share
Leave a Comment