Mumbai Train Blast: 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस आतंकी हमले में 189 लोगों की जान गई थी और 827 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। करीब 19 साल बाद, 21 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने 2015 में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए 12 आरोपियों में से 11 को बरी कर दिया, जबकि एक आरोपी की अपील प्रक्रिया के दौरान मृत्यु हो चुकी थी।
मामले का इतिहास
11 जुलाई 2006 की शाम को मुंबई की पश्चिमी रेलवे की सात लोकल ट्रेनों के फर्स्ट क्लास डिब्बों में 11 मिनट के भीतर सात बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में प्रेशर कुकर में भरे विस्फोटक इस्तेमाल किए गए थे, जो भीड़भाड़ वाली ट्रेनों में रखे गए थे। इस हमले ने मुंबई की रेल नेटवर्क को हिलाकर रख दिया और देश में आतंकवाद के खिलाफ जंग को और तेज कर दिया। महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड (एटीएस) ने इस मामले की जांच शुरू की और नवंबर 2006 में चार्जशीट दाखिल की। जांच में 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जबकि 15 अन्य को फरार घोषित किया गया, जिनमें से कई के पाकिस्तान में होने का शक था।
निचली अदालत का फैसला
लगभग आठ साल की सुनवाई के बाद, 2015 में विशेष मकोका (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) कोर्ट ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया। इनमें से पांच—कमल अंसारी, मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, एहतेशाम कुतबुद्दीन सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान—को बम रखने के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई। बाकी सात—तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद माजिद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद मार्गुब अंसारी, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और जमीर अहमद लतीफुर रहमान शेख—को उम्रकैद की सजा दी गई। एक आरोपी, वाहिद शेख, को नौ साल जेल में बिताने के बाद निचली अदालत ने बरी कर दिया था।
हाईकोर्ट का तर्क
2015 में महाराष्ट्र सरकार ने पांच दोषियों की मौत की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जबकि दोषियों ने अपनी सजा के खिलाफ अपील की। सुनवाई में देरी हुई क्योंकि सबूतों की मात्रा बहुत ज्यादा थी। 2024 में, एक दोषी एहतेशाम सिद्दीकी ने जल्द सुनवाई की मांग की, जिसके बाद जुलाई 2024 में जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चंदक की विशेष बेंच बनाई गई। इस बेंच ने छह महीने तक 75 से ज्यादा सुनवाइयां कीं।
आरोपियों के वकीलों, जिनमें युग मोहित चौधरी, पायोशी रॉय, एस. नागमुथु और एस. मुरलीधर शामिल थे, ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष सबूत पेश करने में पूरी तरह विफल रहा। उन्होंने दावा किया कि आरोपियों से कबूलनामे शारीरिक और मानसिक यातना देकर लिए गए थे। वकीलों ने यह भी कहा कि जांच में पक्षपात था और विस्फोटकों का प्रकार तक स्पष्ट नहीं किया गया। टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (टीआईपी) और गवाहों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए गए।
हाईकोर्ट का फैसला
21 जुलाई 2025 को, बॉम्बे हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में पूरी तरह नाकाम रहा और सबूत दोष साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। कोर्ट ने पांच दोषियों की मौत की सजा और सात की उम्रकैद को रद्द कर दिया। बेंच ने आदेश दिया कि अगर आरोपी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाए और प्रत्येक को 25,000 रुपये का निजी मुचलका देना होगा।
आरोपियों की स्थिति
इन 12 में से एक दोषी, कमल अंसारी, की 2021 में कोविड-19 के कारण नागपुर जेल में मृत्यु हो गई थी। बाकी 11 आरोपी पुणे के यरवदा जेल, अमरावती, नासिक और नागपुर के केंद्रीय कारागार में बंद थे और सुनवाई के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए। वकील युग चौधरी और नित्या रमाकृष्णन ने कहा कि यह फैसला लोगों का न्यायपालिका में विश्वास बढ़ाएगा। हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष के गवाहों की विश्वसनीयता और टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड पर सवाल उठाए। कोर्ट ने माना कि कबूलनामे अवैध थे और जांच में कई खामियां थीं। यह फैसला उन लोगों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया, जो 18 साल से जेल में थे।
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