प्रतीकात्मक तस्वीर
जैसे-जैसे समय बीत रहा है, बांग्लादेश में अब वही परिदृश्य सामने आने लगा है, जिसके विषय में पांञ्चजन्य ने आरंभ में ही बात की है और वह है बांग्लादेश का मुस्लिम मुल्क अर्थात पाकिस्तान की पहचान वापस पाने का। बांग्लादेश में कल जमात-ए-इस्लामी की एकल रैली हुई और जमात की रैली में यह एक बार फिर कहा गया कि “mujibism अर्थात मुजीबाद” को समाप्त किया जाना चाहिए।
अब यह मुजीबाद क्या है, इसे समझे जाने की आवश्यकता है। मुजीबाद का अर्थ हुआ, मुजीबुर्रहमान की पहचान। मुजीबुर्रहमान द्वारा दी गई पहचान। अब प्रश्न यह आता है कि मुजीबुर्रहमान द्वारा दी गई पहचान से समस्या क्या है? जो कथित छात्र आंदोलन हुआ था, वह तो केवल शेख हसीना के ही खिलाफ था? ऐसा दावा कथित क्रांति के दौरान किया जाता रहा था।
यह दावा किया गया कि शेख हसीना ने भ्रष्टाचार किया, और फासीवाद लाईं। यदि “हसीनाबाद” को समाप्त करने की बात की जाती तो यह समझ आता कि वे शेख हसीना द्वारा आरंभ किये गए सिस्टम को समाप्त करते? शेख हसीना द्वारा किये गए भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए कसम खाते? मगर यहाँ पर तो कसमें खाई जा रही हैं, मुजीबाद अर्थात मुजीबुर्रहमान की विरासत को समाप्त करने की।
जैसा कि शेख हसीना के देश छोड़ कर जाने के बाद देखा भी गया है कि देखते ही देखते शेख मुजीबुर्रहमान की सारी निशानियाँ समाप्त की जाने लगीं। तमाम स्मारक, जो बांग्लादेश की बांग्ला पहचान के प्रतीक थे और पूर्वी पाकिस्तान की पहचान के नष्ट होने के प्रतीक थे, उन्हें तोड़ दिया गया। शेख मुजीबुर्रहमान से संबंधित तमाम पहचानों को नष्ट किया गया, जैसे उनसे संबंधित सार्वजनिक अवकाश बंद किये गए। मुद्रा से उनकी तस्वीरें हटाई गईं और साथ ही उनसे संबंधित पाठ्यक्रम में भी परिवर्तन किया गया। यदि गुस्सा शेख हसीना के प्रति था, तो फिर बांग्ला पहचान वाले शेख मुजीबुर्रहमान के प्रति गुस्सा क्यों निकाला गया? या फिर यह कहा जाए कि यह गुस्सा केवल और केवल शेख मुजीबुर्रहमान के ही प्रति था कि उन्होनें पाकिस्तान से अलग होने की हिमाकत क्यों की?
इसे भी पढ़ें: ‘गोपालगंज की चुप्पी’… बांग्लादेश की आत्मा पर चली गोलियां
आखिर जमात या फिर अन्य कथित आंदोलनकारियों का क्रोध शेख मुजीबुर्रहमान और बांग्ला एवं कथित धर्मनिरपेक्ष पहचान के प्रति ही क्यों मुड़ गया था? जमात-ए-इस्लामी की रैली में भी वही सब बातें दोहराई गईं कि भ्रष्टाचार नहीं होगा, कोई भी महंगी चीजें नहीं खरीदेगा आदि आदि। इस रैली में उन घटनाओं पर भी कथित न्याय की बात की गई, जो स्वभाव में मजहबी कट्टरता की घटनाएं थीं। जैसे कि शापला छत्र। इस रैली में जुलाई 2024 में भी की गई हत्याओं के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाहियों की भी बात की गई।
शफीकुर्रहमान ने कहा कि अगर वह सत्ता में चुनकर आते हैं तो भ्रष्टाचारियों कर कार्यवाही करेंगे। रहमान ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि उनकी मौत शेख हसीना विरोधी आंदोलन में क्यों नहीं हुई? यह और भी चकित करने वाली बात है कि इस रैली में वर्तमान में सबसे बड़ी पार्टी बीएनपी को नहीं बुलाया गया था। जमात के नेताओं का कहना था कि केवल उन्हीं पार्टियों को बुलाया गया था, जो आनुपातिक प्रतिनिधित्व का समर्थन कर रही हैं।
सुहरावर्दी उद्यान में आयोजित इस रैली में लोगों का समुद्र उमड़ कर आया था। यह रैली कम और शक्तिप्रदर्शन अधिक था। परंतु शक्तिप्रदर्शन किसे दिखाने के लिए? क्या बीएनपी को यह संदेश देने के लिए कि अब आने वाली सत्ता का केंद्र जमात और नवगठित पार्टी एनसीपी और ऐसी ही अन्य कट्टरपंथी पार्टियों के इर्दगिर्द रहेगा? जमात के सेक्रेटरी जनरल मियां गुलाम परवर ने घोषणा की कि जो लोग यहाँ आए हैं, वे नाइंसाफी के खिलाफ आए हैं। जमात ऐसी पार्टी है, जिस पर इस मुल्क में सबसे ज्यादा अत्याचार हुए हैं।
ढाका उत्तर के अमीर मोहम्मद सलीम उद्दीन ने चेतावनी दी कि अगर किसी भी तरह से चुनावों के परिणामों में छेड़छाड़ की कोशिश की गई तो जुलाई के आंदोलन में भाग लेने वालों की तरफ से विरोध के लिए तैयार रहना होगा।
अब इससे एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या जमात ही इस कथित छात्र आंदोलन के पीछे की ताकत थी? क्या छात्र आंदोलन बांग्लादेश को कट्टरपंथी पहचान का जामा पहनाने का जमात का ही कोई प्रयास था?
नई गठित पार्टी एनसीपी के उत्तर इकाई ऑर्गनाइजर के नेता सरजिस आलम ने अपील की कि मुजीबाद को खत्म किया जाए और 5 अगस्त को पाई गई आजादी को कायम रखा जाए। जुलाई चार्टर की घोषणा की भी मांग की गई। दरअसल बांग्लादेश का अभी तक सुहरावर्दी उद्यान का बनाए रखना ही यह साबित करता है कि उसे कौन सी पहचान बनाए रखनी है। सुहरावर्दी उद्यान हुसैन शहीद सुहरावर्दी के नाम पर है। सुहरावर्दी उस समय बंगाल के मुख्यमंत्री थे, जब जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे मनाया था और जिसके कारण कोलकता में हिंदुओं की जमकर हत्याएं हुई थीं। उन्होंने इस दिन को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने का अनुरोध किया था और साथ ही उनपर भड़काऊ भाषण देने का भी आरोप था।
हालांकि शेख मुजीबुर्रहमान भी मुस्लिम लीग के सदस्य थे और ऐसा कहा जाता है कि डायरेक्ट एक्शन डे में उनकी भी भूमिका थी। यह और भी हैरानी की बात है कि शेख मुजीबुर्रहमान ने मुस्लिम लीग में शामिल होकर भारत के टुकड़े करने में भूमिका निभाई। मगर उन्हें उसी मुल्क से अब पूरी तरह से मिटाया जा रहा है, जिस मुल्क के लिए उन्होनें अपने देश भारत को तोड़ा!
आज कहा जा रहा है कि “मुजीबाद” को नष्ट किया जाए? यह इतिहास की करवट है या फिर अपनी ही भूमि का विघटन करने का दंड? परंतु जो भी है, यह तो सत्य है कि जुलाई 2024 का आंदोलन केवल शेख हसीना को हटाने का आंदोलन नहीं था, वह “मुजीबुर्रहमान” की वह विरासत और पहचान मिटाने का आंदोलन था, जो उसने 1971 में हासिल की थी। और जैसा कि पांचजन्य ने आरंभ से ही कहा है, और बार-बार इसे लिखा है।
(डेस्क्लेमर: ये लेख लेखक के स्वयं के विचार हैं। आवश्यक नहीं कि पाञ्चजन्य उनसे सहमत हो)
Leave a Comment