सदाशिव को ही परम पुरुष, ईश्वर, शिव-शंभु और महेश्वर बताया गया है। उनके मस्तक पर गंगा, भाल में चंद्रमा शोभा पाते हैं। उनके पांच मुख हैं और प्रत्येक मुख में तीन- तीन नेत्र हैं। वे दस भुजाओं से युक्त एवं त्रिशूलधारी हैं। भगवान शिव की लीला से एक बार ब्रह्मा और विष्णु में विवाद छिड़ गया कि हम में बड़ा कौन है? उसी समय उन दोनों के बीच में एक ज्योतिर्मय लिंग प्रकट हो गया। जिसकी कोई सीमा ना ऊपर थी ना नीचे थी।
तब ब्रह्मा और विष्णु दोनों ने आदि अंत का पता लगाने का बड़ा यत्न किया। परंतु दोनों को उस स्तंभ का कोई ओर-छोर नहीं मिला। दोनों ही शिवजी की माया से मोहित थे। उन्होंने अग्नि स्तंभ को प्रणाम कर प्रार्थना की, महाप्रभु हम आपके स्वरूप को नहीं जानते। आप जो भी हैं हम आपको नमस्कार करते हैं। आप शीघ्र ही हमें अपने यथार्थ रूप में दर्शन दें। ऐसा करते हुए सौ वर्ष बीत गये। उस समय श्रीहरि यह सोचने लगे कि ‘यह अग्निस्तम्भ यहाँ कहाँ से प्रकट हुआ है?’ और विश्वात्मा शिव का चिन्तन किया।
तब वहाँ एक ऋषि प्रकट हुए, जो ऋषि-समूह के परम साररूप माने जाते हैं। उन्हीं ऋषि के द्वारा परमेश्वर श्री विष्णु ने जाना कि इस शब्द ब्रह्ममय शरीर वाले परम लिङ्ग के रूप में साक्षात् परब्रह्म स्वरूप महादेव जी ही यहाँ प्रकट हुए हैं। तत्पश्चात परमेश्वर भगवान महेश प्रसन्न हो अपने दिव्य शब्दमय रूप को प्रकट करके हंसते हुए खड़े हो गए।
● अकार-उनका मस्तक और आकार ललाट है।
● इकार-दाहिना और ईकार बायाँ नेत्र है।
● उकार- उनका दाहिना और ऊकार को बायाँ कान बताया जाता है।
● ऋकार-उनका दायाँ कपोल है और ऋकार बायाँ।
● लृ और लृ – ये उनकी नासिका के दोनों छिद्र हैं।
● एकार- प्रभु का ऊपरी ओष्ठ है और ऐकार अधर।
● ओकार तथा औकार- ये दोनों क्रमशः उनकी ऊपर और नीचे की दो दन्त पंक्तियाँ हैं।
● ‘अं’ और ‘अ:’ उन देवाधिदेव शूलधारी शिव के दोनों तालु हैं।
● क आदिपाँच अक्षर उनके दाहिने पाँच हाथ हैं और
● च आदिपाँच अक्षर बायें पाँच हाथ;
● ट आदि और त आदि पाँच-पाँच अक्षर उनके पैर हैं।
● पकारपेट है।
● फकार को दाहिना पार्श्व बताया जाता है और
● बकार को बायाँ पार्श्व।
● भकार को कंधा कहते हैं।
● मकार-उन योगी महादेव शम्भु का हृदय है।
● ‘य’ से लेकर ‘स’ तक सात अक्षर सर्वव्यापी शिव के शब्दमय शरीर की सात धातुएँ हैं।
● हकार उनकी नाभि है और क्षकार को मेढू कहा गया है। इसी समय उन्हें पाँच कलाओं से युक्त ॐकार जनित मन्त्र का साक्षात्कार हुआ। तत्पश्चात् महादेवजी का ‘ॐ तत्त्वमसि’ यह महावाक्य दृष्टिगोचर हुआ, जो परम उत्तम मन्त्ररूप है। फिर दूसरा महान मन्त्र बुद्धिस्वरूप गायत्री मन्त्र, जिसमें चौबीस अक्षर हैं तथा जो चारों पुरुषार्थ रूपी फल देने वाला है। तत्पश्चात् मृत्युञ्जय मन्त्र, फिर पञ्चाक्षर मन्त्र तथा दक्षिणा-मूर्तिसंज्ञक चिन्तामणि-मन्त्र का साक्षात्कार हुआ। इस प्रकार पाँच मन्त्रों की उपलब्धि करके श्रीहरि उनका जप करने लगे।
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