यह बेहद विचित्र बात है कि जिन आक्रांताओं ने भारत को रक्तरंजित किया, उनके पक्ष में भी लोग खड़े हो जाते हैं। एनसीईआरटी की आठवीं की किताब में बाबर को बर्बर क्या कह दिया गया, इसको लेकर बहस शुरू हो गई, जबकि उसने खुद अपने को बर्बर साबित किया है।
बाबर की नृशंसता के विषय में बाबरनामा में ही इतने विस्तार से लिखा गया है कि किसी और पुस्तक में जाने की आवश्यकता नहीं है। जो लोग बाबर की वीरता का उदाहरण देते हैं या फिर बाबर को एक कुशल प्रबन्धक बताते हैं, वह कभी भी बाबर की नृशंसता की बात नहीं करते।
लुटेरा था बाबर
बाबर और कोई नहीं बल्कि लुटेरा था, जो लूटने के लिए आया था। उसने यहां के अफगानों और हिन्दुओं का कत्लेआम किया। बाबर ने क्या बनाया था ? यहां तक कि बाबर से पहले जो गुलाम वंश आदि हुए थे, वह भी अय्याशी और लूटपाट के इतिहास के अतिरिक्त कुछ नहीं थे।
जो लोग बाबर या मुगलों को इस देश का निर्माता बोलते हैं, वह बताएं कि उन्होंने मंदिरों को नष्ट करने और हिन्दुओं का वध करने के अतिरिक्त क्या किया है..? बाबर का शासनकाल मारकाट में बीता, उसने क्या निर्माण किया होगा, पता नहीं। हां सिरों की मीनारें अवश्य बनाईं। काफिरों अर्थात हिन्दुओं को मारकर ही उसने गाजी की पदवी पाई।
गुलबदन बेगम ने बताई बाबर की बर्बरता
इससे पहले बाबर ने बाजौर के दुर्ग पर भी हिन्दुओं का कत्लेआम किया था। बाजौर या बिजौर में बाबर द्वारा कत्लेआम का वर्णन हुमायूंनामा में गुलबदन बेगम ने किया है कि बिजौर को दो तीन घड़ी में बाबर ने जीत लिया और वहां के सब रहने वालों को मरवा डाला। बिजौर में रहने वाले मुसलमान नहीं थे।
उससे पहले हिन्दुस्थान आते समय भी उसने काफिरों का खून किया था। वह लिखता है कि अदीनापुर दुर्ग से पहले, नंगेंहर के तूमान में रुका और उसने देखा कि मैदानों में काफ़िर लोग धान उगाते हैं, जहां से दुश्मनों को अनाज मिल जाएगा। उसने फिर बराईन घाटी की ओर जाते समय धान लूट लिया। फिर वह लिखता है कि कुछ काफिर भाग गए मगर कुछ काफिरों ने युद्ध किया तो वह मारे गए। वह लिखता है कि हम काफिरों के धान के खेतों में एक रात रुके और हमने काफी धान लूट लिया। (MEMOIRS OF BABUR)
हिन्दुओं के कत्लेआम ने पाई गाजी की पदवी
बाबर ने साधारण किसानों तक को नहीं छोड़ा था। और यह बात हिजरी वर्ष, 913 की थी। राणा सांगा के साथ युद्ध में तो उसने लिखा है कि हिन्दुओं के सिरों की मीनार बनाईं और उसके बाद ही उसने गाजी की पदवी पाई थी। बाबर ने क्या निर्माण किया था, यह समझ से परे है क्योंकि पूरे बाबरनामा में मात्र लड़ाई, सिर काटने और हिन्दुओं को मारने—लूटने का वर्णन है।
हिंदुओं की हत्या कर खुद को गाजी कहा
बाबर ने राणा सांगा के साथ युद्ध के बाद हिंदुओं का कत्लेआम किया था और उसके बाद ही गाजी की पदवी ली थी। जो भी लोग बाबर के बारे में यह कहते हैं कि वह केवल दौलत लूटने के लिए ही आक्रमण करता था, उसे खानवा के युद्ध से पहले बाबरनामा का वृत्तान्त पढ़ना चाहिए कि कैसे यह युद्ध इस्लाम के सिपाही लड़ रहे थे। और जब इस जंग में फतह हासिल हुई तो बाबर ने खुद को गाजी कहा।
बाबरनामा के अंग्रेजी अनुवाद में बाबर के हवाले से लिखा है कि फ़तहनामे पर तुगरा (उपाधि) से पहले, मैंने लिखा- इस्लाम की खातिर मैं जंगलों में फिरा। पैगन और हिंदुओं के खिलाफ युद्ध के लिए खुद को तैयार किया, शहीद की मौत के लिए कसम खाई और खुदा का शुक्र, मैं गाजी बना। (स्रोत- The Babur-nama in English (Memoirs of Babur by ANNETTE SUSANNAH BEVERIDGE – पृष्ठ 575)
सिरों की मीनारें बनवाई
इसके बाद जब लोग और विद्रोह करने लगे तो बाबर ने बहुत ही बेरहमी से उनका दमन करके फिर से उनके सिरों की मीनारें बनवाईं। वर्ष 1527 में खानवा के युद्ध के बाद उसकी नजर चंदेरी पर पड़ी, जहां पर मेदिनीराय शासन कर रहे थे। मेदिनीराय ने बाबर पर आक्रमण नहीं किया था। बाबर को चंदेरी के दुर्ग को जीतना था। चंदेरी का दुर्ग पहाड़ी पर था और पहाड़ी से एक तरफ पानी के लिए दोहरी दीवार थोड़ी नीचे थी। राजपूतों ने प्रयास किया परंतु वे हार गए।
बाबरनामा में बाबर लिखता है कि राजपूत कुछ देर के लिए गायब हो गए थे और उसके बाद वह लिखता है कि वे लोग शायद अपनी पत्नी और बच्चों को मारने गए थे और उसके बाद लगभग निर्वस्त्र होकर वे लड़ने के लिए आ गए और उन्होनें मुगलों की सेना पर हमला कर दिया।
मुगलों द्वारा हिन्दुओं के सांस्कृतिक और धार्मिक ध्वंस के एक नहीं कई उदाहरण हैं। उस बाबर का महिमामंडन किया जाता है, जिसने हिन्दुओं को मारकर उनके सिरों की मीनार बनाकर गाजी की पदवी पाई थी।
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