अवाक्स सिस्टम
नई दिल्ली, (हि.स.)। भारत सरकार ने अगली पीढ़ी की स्वदेशी हवाई रडार प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (अवाक्स) विकसित करने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की मंजूरी दे दी है, जिससे भारतीय वायु सेना को बड़ी रणनीतिक बढ़त मिलेगी। साथ ही भारत ऐसी स्वदेशी रूप से विकसित क्षमता वाले चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा। डीआरडीओ एंटीना और अन्य प्रणालियों को एकीकृत करने के लिए फ्रांसीसी कंपनी एयरबस के साथ काम करेगा, जिसमें कई भारतीय कंपनियां भी सहयोग करेंगी।
भारत हवाई रडार प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली ‘नेत्र’ को विकसित करके दुनिया का चौथा देश बन चुका है, जिसे ‘आकाश में आंख’ के नाम से जाना जाता है। इसी प्रणाली ने फरवरी, 2019 में बालाकोट हमलों में महत्वपूर्ण निगरानी कवर प्रदान करके अपनी क्षमता साबित की थी। अगले अवाक्स इंडिया कार्यक्रम ‘नेत्र एमके-II’ का नेतृत्व रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) कर रहा है। वायु सेना वर्तमान में बहुत छोटे ‘नेत्र’ पूर्व चेतावनी विमान का संचालन करती है, जिसका इस्तेमाल हाल ही में पाकिस्तान के साथ हवाई संघर्षों में ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के दौरान किया गया है। भारत के पास तीन आईएल-76 ‘फाल्कन’ प्रणालियां भी हैं, जिन्हें इजरायल और रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया था, लेकिन इस बेड़े को बड़ी तकनीकी और उपलब्धता संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा है।
खुलेंगे निर्यात के अवसर
अवाक्स इंडिया कार्यक्रम के तहत डीआरडीओ ने अगली पीढ़ी के हवाई पूर्व चेतावनी और नियंत्रण प्रणालियां विकसित करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था। अब सरकार से पांचवीं पीढ़ी के उन्नत बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान के प्रोटोटाइप उत्पादन चरण में प्रवेश की अनुमति मिल गई है। पहली बार एयरबस प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग इस तरह के अनुप्रयोग के लिए किया जाएगा, क्योंकि अब तक इस क्षेत्र में पारंपरिक रूप से बोइंग का प्रभुत्व रहा है। यह परियोजना भविष्य में भारत के लिए निर्यात के अवसर भी खोल सकती है। अगली पीढ़ी के हवाई पूर्व चेतावनी और नियंत्रण प्रणालियों के उत्पादन से भारतीय वायु सेना की क्षमता में बड़ा इजाफा होगा। साथ ही भारत स्वदेशी रूप से विकसित क्षमता वाले चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा।
भारतीय वायुसेना को मिलेंगे 6 अवाक्स
इस परियोजना के तहत लगभग 20 हजार करोड़ खर्च होंगे और भारतीय वायु सेना को छह बड़े अवाक्स मिलेंगे, जो लंबी दूरी पर दुश्मन के विमानों, जमीनी सेंसरों और अन्य उपकरणों पर नजर रखने में सक्षम होंगे। साथ ही एक उड़ान संचालन नियंत्रण केंद्र के रूप में भी काम करेंगे। सरकारी मंजूरी मिलने के साथ डीआरडीओ कई भारतीय कंपनियों के साथ-साथ एयरबस के साथ मिलकर ए-321 विमान में एक जटिल एंटीना और अन्य प्रणालियों को एकीकृत करेगा। इसमें एक पूर्णतः स्वदेशी मिशन नियंत्रण प्रणाली और येसा रडार शामिल हैं। इस परियोजना के पूरा होने में लगभग तीन साल लगने की उम्मीद है। भारतीय वायु सेना के पास पहले से ही छह ऐसे विमान हैं, जिन्हें एयर इंडिया से लिया गया था।
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