बिहार के सीमांचल क्षेत्र, विशेषकर किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जिलों में जनसंख्या की तुलना में आधार कार्ड और निवास प्रमाण पत्र की संख्या में असामान्य वृद्धि ने सरकार के लिए चिंता बढ़ा दी है। इन जिलों में मुस्लिम आबादी लगभग 47% तक पहुंच चुकी है, जो क्षेत्र की जनसांख्यिकीय संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। इस स्थिति ने न केवल प्रशासनिक अनियमितताओं, बल्कि संभावित अवैध घुसपैठ और दस्तावेजों के दुरुपयोग की आशंकाओं को भी जन्म दिया है।
चुनाव आयोग ने इस क्षेत्र में मतदाता सूची में गड़बड़ियों की शिकायतों को गंभीरता से लिया है। किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी 47% तक पहुंच गई है। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में करीब 10,000 फर्जी वोटरों की मौजूदगी की आशंका जताई गई है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता के लिए खतरा है। इस समस्या से निपटने के लिए चुनाव आयोग ने मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू किया है, जिसका उद्देश्य फर्जी मतदाताओं की पहचान कर सूची को शुद्ध करना है। इस प्रक्रिया में मतदाता पहचान पत्रों की जांच, आधार कार्ड और अन्य दस्तावेजों के मिलान के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर सत्यापन किया जा रहा है।
सीमांचल क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, जो नेपाल और बांग्लादेश की सीमा से सटा हुआ है, इस समस्या को और जटिल बनाती है। घुसपैठ की आशंका और फर्जी दस्तावेजों के जरिए मतदाता सूची में शामिल होने की संभावना ने प्रशासन को सतर्क कर दिया है। सरकार और स्थानीय प्रशासन इस दिशा में कड़े कदम उठा रहे हैं, जिसमें दस्तावेजों की गहन जांच और संदिग्ध मामलों में कार्रवाई शामिल है। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि वैध नागरिकों को इस प्रक्रिया में कोई असुविधा न हो।
यह स्थिति न केवल प्रशासनिक चुनौती है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी संवेदनशील है। सरकार का प्रयास है कि पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से इस समस्या का समाधान किया जाए, ताकि क्षेत्र में विश्वास और स्थिरता बनी रहे।
सरकारी मुस्तैदी में ना लग जाए सेंध
बिहार, विशेष रूप से सीमांचल क्षेत्र, में फर्जी वंशावली और निवास प्रमाणपत्र बनाना और बनवाना मुश्किल काम नहीं है। सीमांचल क्षेत्र से संबंध रखने वाले इस बात से इंकार नहीं करेंगे। जब बिहार में मतदाता सुधार का कार्यक्रम चुनाव आयोग चला रहा है, ऐसे में यह मुद्दा न केवल प्रशासनिक व्यवस्था को चुनौती देता है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और नागरिकता की प्रामाणिकता पर भी सवाल उठाता है। जिसने फर्जीवाड़ा करके मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा लिया। अब वह अपना नाम बचाने के लिए फर्जी निवास प्रमाणपत्र नहीं बनवा सकता। इसकी गारंटी कौन लेगा?
हाल के दिनों में, सीमांचल क्षेत्र, विशेषकर किशनगंज, से प्राप्त आंकड़े चिंताजनक हैं। केवल छह दिनों में सवा लाख निवास प्रमाणपत्र के आवेदन जमा होना इस बात का संकेत है कि इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की संभावना है।
सीमांचल में फर्जी मतदाताओं की शिकायतें लंबे समय से सामने आ रही हैं। आरोप है कि इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लोग, अवैध रूप से निवास कर रहे हैं और संभावना जताई जा रही है कि वे नागरिकता प्राप्त करने के लिए फर्जी दस्तावेजों का सहारा ले सकते हैं। निवास प्रमाणपत्र और वंशावली जैसे दस्तावेज, जो सामान्यतः सरपंच या स्थानीय अधिकारियों द्वारा जारी किए जाते हैं, आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी सरल हो चुकी है कि इसमें भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। नतीजतन, यह न केवल वैध नागरिकों के अधिकारों का हनन करेगा, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता को भी बढ़ावा देगा।
फर्जी मतदाताओं की वजह से है डर का माहौल
इस स्थिति का एक दुखद परिणाम यह है कि सीमांचल के मुस्लिम मोहल्लों में भय और अविश्वास का माहौल बन रहा है। कई लोग, जो वैध नागरिक हैं। वे भी फर्जी मतदाताओं की वजह से डर में हैं। उन्हें आशंका है कि यदि मतदाता पुनरीक्षण के लिए किया गया उनका आवेदन एक बार अस्वीकार हो गया, तो भविष्य में दावा करने का अवसर भी शायद न मिले। यह स्थिति न केवल सामुदायिक स्तर पर तनाव पैदा कर रही है, बल्कि समाज में विभाजन को भी बढ़ावा दे रही है। सीमांचल में फर्जी वोटर वास्तविक नागरिकों के बीच इतने घूल मिल गए हैं कि दोनों को अलग अलग करना टेढ़ी खीर साबित होगा।
चुनाव आयोग और बिहार सरकार के लिए यह एक गंभीर चुनौती है। फर्जी दस्तावेजों का यह खेल न केवल मतदाता सूची की प्रामाणिकता को प्रभावित करेगा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकता है। इस समस्या से निपटने के लिए कठोर कानूनी दिशा-निर्देश और पारदर्शी प्रक्रिया की आवश्यकता है। स्थानीय प्रशासन में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सख्त निगरानी और दंडात्मक कार्रवाई जरूरी है। साथ ही, नागरिकों में जागरूकता फैलाने और वैध दस्तावेजों के महत्व को समझाने की जरूरत है।
यदि इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया, तो फर्जी वंशावली और निवास प्रमाणपत्र बिहार में चुनावी प्रक्रिया और सामाजिक सौहार्द के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन सकते हैं। यह समय है कि सरकार और चुनाव आयोग मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान निकालें।
मतदाता पुनरीक्षण के लिए 11 दस्तावेज मान्य
- बिहार में मतदाता सूची में अपना नाम शामिल करने या उसमें संशोधन करवाने के लिए निर्वाचन आयोग ने 11 प्रकार के दस्तावेज़ों को मान्यता दी है। ये दस्तावेज़ मतदाताओं की पहचान, जन्मतिथि या पते के सत्यापन के लिए स्वीकार किए जाएंगे।
- भारत सरकार, राज्य सरकार एवं पब्लिक सेक्टर उपक्रमों में कार्यरत कर्मियों को आई-कार्ड/पेंशन पेमेंट ऑर्डर
- 1 जुलाई 1987 के पूर्व सरकारी, स्थानीय प्राधिकार, बैंक, पोस्ट ऑफिस, एलआईसी एवं पब्लिक सेक्टर उपक्रमों द्वारा निर्गत आई-कार्ड/प्रमाण पत्र/दस्तावेज़.
- पासपोर्ट
- मैट्रिक/शैक्षणिक प्रमाण पत्र जो मान्यता प्राप्त बोर्ड/विश्वविद्यालय द्वारा निर्गत है
- स्थायी आवासीय प्रमाण पत्र
- वन अधिकार प्रमाण पत्र
- सक्षम प्राधिकार द्वारा निर्गत ओबीसी/एससी/एसटी जाति प्रमाण पत्र
- नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस
- राज्य/स्थानीय प्राधिकार द्वारा तैयार फैमिली रजिस्टर
- सरकार द्वारा भूमि/गृह आवंटन प्रमाण पत्र
- सक्षम प्राधिकार द्वारा निर्गत जन्म प्रमाण पत्र
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