पूर्वोत्तर में फिर से अवैध घुसपैठ पर बड़ा प्रहार : दो दलों ने बाहर बाहर निकलने की उठाई मांग
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पूर्वोत्तर में फिर से अवैध घुसपैठ पर बड़ा प्रहार : दो दलों ने बाहर बाहर निकलने की उठाई मांग

त्रिपुरा में टिपरा मोथा और IPFT ने घुसपैठियों के खिलाफ अभियान शुरू किया। पूर्वोत्तर में जनसंख्या असंतुलन और राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर बहस।

by अभय कुमार
Jul 16, 2025, 06:28 pm IST
in भारत, असम, त्रिपुरा
भारत में रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठिए

भारत में रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठिए

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त्रिपुरा से अवैध घुसपैठियों के खिलाफ एक नए जंग का आगाज़ दो स्थानीय दलों ने किया है। ये दोनों दल ‘टिपरा मोथा’ और ‘इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ हैं, जो भाजपा के सहयोगी हैं। त्रिपुरा को इन दो दलों ने बड़े और दूरदृष्टि वाले राजनीतिक कदम के तहत अवैध विदेशियों को राज्य से निकालने की मांग उठाई है।

त्रिपुरा की विधानसभा में विपक्ष की ताकत और भाजपा का समर्थन

टिपरा मोथा वर्तमान में 60 सदस्यीय त्रिपुरा विधानसभा में 13 सदस्यों के साथ भाजपा के बाद दूसरा सबसे बड़ा दल है। टिपरा मोथा और इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा भाजपा के साथ त्रिपुरा में सत्तारूढ़ हैं। इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा का त्रिपुरा विधानसभा में एक सदस्य है, जो कैबिनेट मंत्री हैं।

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पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय दलों का संभावित समर्थन

त्रिपुरा के इन दोनों दलों को असम गण परिषद के साथ ही पूर्वोत्तर के कई अन्य क्षेत्रीय दलों का साथ मिलने की संभावना है। इन दोनों दलों की यह मांग आने वाले समय में पूर्वोत्तर से आगे बढ़ते हुए देश के अन्य हिस्सों में भी आवाज बन सकती है।

असम आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

असम में 80 के दशक में अवैध विदेशियों को बाहर निकालने के मुद्दे पर ‘असम गण परिषद’ पार्टी का गठन हुआ था। 1979 से छह साल तक चले ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ द्वारा अवैध विदेशियों के खिलाफ चलाए गए अभियान के बाद ही असम गण परिषद अस्तित्व में आई थी। भाजपा असम में असम गण परिषद की सहयोगी है, वहीं त्रिपुरा में भी इन दलों की सहयोगी है। भाजपा इस मुद्दे पर इन दलों के साथ एकमत है।

असम में जनसंख्या संरचना में बदलाव और कांग्रेस की भूमिका

70 और 80 के दशक में असम राज्य में अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ के कारण राज्य की जनसांख्यिकीय, सामाजिक और आर्थिक संरचना में बदलाव आ रहा था। असमवासियों को अपनी संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने में बड़ा परिवर्तन दिखने लगा था, अतएव उन्होंने वैध बांग्लादेशियों के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन का एक बड़ा कारण कांग्रेस पार्टी नीत केंद्र सरकार की इस मुद्दे पर चुप्पी या मौन समर्थन था।

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1979 का मंगलदोई उपचुनाव और असम आंदोलन की शुरुआत

असम के मंगलदोई लोकसभा सीट के सांसद हीरालाल पटवारी के निधन के कारण 1979 में इस सीट पर उपचुनाव होना था। इस उपचुनाव में मतदाताओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण असम आंदोलन की शुरुआत हुई। इस उपचुनाव ने दो साल पहले हुए पिछले चुनाव की तुलना में मतदाताओं की संख्या में तेज़ वृद्धि की ओर जनता का ध्यान आकर्षित किया, जिससे राज्य में अवैध बांग्लादेशियों के घुसपैठ पर व्यापक बहस शुरू हुई।

देशव्यापी चिंता : अवैध घुसपैठ और जनजीवन पर प्रभाव

वर्तमान में देश के सभी प्रदेशों में अवैध घुसपैठियों की मौजूदगी की खबरें आ रही हैं। अब सभी प्रदेशों की जनता का ध्यान इन अवैध प्रवासियों के कारण दैनिक जनजीवन पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव की ओर खिंच रहा है। अब हर प्रदेश से इन अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग हो रही है।

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विपक्षी दलों की चुप्पी और वोटबैंक की राजनीति

कुछ ख़ास दल, जिनको इन अवैध घुसपैठियों में अपना वोटबैंक दिखता है, वे इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना चाहते हैं। इनमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम सबसे ऊपर है। इनके समर्थक दलों में कांग्रेस पार्टी, कम्युनिस्ट दल, समाजवादी पार्टी और इंडि गठबंधन के अधिकतर दल शामिल हैं।

बिहार में अवैध मतदाताओं की पहचान की कार्रवाई

बिहार में इन अवैध मतदाताओं की पहचान के लिए चुनाव आयोग ने विशेष गहन संशोधन की शुरुआत की है। जानकारी के अनुसार, इनमें बांग्लादेशी, नेपाली सहित अन्य विदेशी नागरिकों की पहचान हुई है। अब इस प्रक्रिया को पूरे देश में लागू करने की योजना बन चुकी है। इससे इन अवैध विदेशियों और उनके पोषक दलों में खलबली मच गई है।

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राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा और हालिया घटना

ये अवैध विदेशी देश की एकता और अखंडता के लिए भी बड़ा खतरा हैं। अभी हाल ही में पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में एक अवैध बांग्लादेशी ने माउंट कार्मेल स्कूल की 6 से 8 साल की कई बच्चियों के साथ बलात्कार किया। मामले के प्रकाश में आने के बाद उस अवैध बांग्लादेशी को पुलिस ने गिरफ्तार किया। मगर वहां के स्थानीय लोगों में इतना अधिक गुस्सा था कि उन्होंने उसे थाने से बाहर निकाल कर मार दिया।

Topics: NRCIllegal infiltrationNational securityBangladeshi refugeesTripura PoliticsTipra MothaAssam Movement
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