शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने नए भारत की तस्वीर पेश करते हुए विश्व में भारत की बढ़ती साख का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने भाषण में 22 अप्रैल के पहलगाम जिहादी हमले का उल्लेख करते हुए सदस्य देशों से आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की अपील की। इसके साथ ही जयशंकर ने एक बार फिर इस क्षेत्र में सुरक्षा की चुनौतियों और सहयोग की आवश्यकता को उजागर किया। चीन के तिआनजिन शहर में सम्पन्न हुई इस बैठक में भारत के विदेश मंत्री के आह्वान पर अधिकांश सदस्यों ने अपनी सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि आतंकवाद सच में एक बड़ा खतरा है।
एससीओ एक प्रमुख क्षेत्रीय संगठन है जिसमें भारत, चीन, रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और पाकिस्तान सदस्य हैं। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और आतंकवाद विरोधी रणनीतियां तैयार करना है।

जयशंकर ने अपने भाषण के बीच जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की बात करते हुए इस प्रवृत्ति को क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा बताया। आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की वकलत करते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवाद किसी एक देश की समस्या नहीं है, बल्कि आज यह एक वैश्विक खतरा बन चुका है। इससे लड़ने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक है। सभी एससीओ सदस्य देशों को मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की आवश्यकता है। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, सुरक्षा सहयोग, और सूचनाओं के आदान-प्रदान के ज़रिए।
उल्लेखनीय है कि भारत एक लंबे समय से आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करता आया है, विशेष रूप से सीमा पार आतंकवाद को लेकर। लेकिन चूंकि पाकिस्तान भी एससीओ का सदस्य है, इसलिए भारत के लिए यह मंच एक कूटनीतिक चुनौती भी है और अवसर भी, जहां वह अपनी चिंताओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामने रख सकता है।

आज भारत आतंकवाद को लेकर किसी भी प्रकार की सहिष्णुता नहीं रखता और जीरो टॉलरेंस इसकी घोषित नीति है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार कहा भी है कि भारत में सीमा पार आतंकवाद की हर घटना को युद्ध के उकसावे जैसा समझा जाएगा। इतना ही नहीं, भारत ने विभिन्न वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीति तैयार करने का आह्वान किया है। संयुक्त राष्ट्र में कॉम्प्रिहैंसिव कंवेंशन आन इंटरनेशनल टेररिज्म ऐसी ही एक पहल है।
एससीओ में जयशंकर का यह वक्तव्य न केवल आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीतियों को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अगर क्षेत्रीय संगठन वास्तव में प्रभावी होना चाहते हैं, तो उन्हें सुरक्षा मामलों पर एकजुटता दिखानी होगी। भारत के विदेश मंत्री का संदेश यही रहा कि आतंकवाद के विरुद्ध केवल बयानबाजी पर्याप्त नहीं है, इसके लिए जमीनी कार्रवाई, पारदर्शिता और भरोसेमंद सहयोग के बिना भविष्य की राह कठिन हो सकती है। एससीओ जैसे मंच यदि राजनीतिक असहमति से ऊपर उठकर वैश्विक सुरक्षा और शांति की दिशा में कदम उठाते हैं, तो यह पूरी दुनिया के हित में ही होगा।
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