एक बार फिर पाकिस्तान में बलूचों ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया है। पाकिस्तान की सेना को बलूचिस्तान के चप्पे चप्पे से भगा देने वाले इस अभियान को नाम दिया गया है ‘ऑपरेशन बाम’; जिसे बलूचिस्तान के मुख्य शहरों सहित ग्रामीण अंचलों तक चलाए जाने का ऐलान हो चुका है। इस ऑपरेशन बाम को शुरू करते हुए बलूच नेताओं के तेवर तीखे थे और बोल ऐसे कि इस्लामाबाद में बैठी सत्ता तक के कान खड़े हुए होंगे। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि बलूचिस्तान कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं हो सकता। बलूच लिबरेशन फ्रंट के लड़ाके पहले से ही पाकिस्तानी फौज की नाक में दम किए हुए हैं और अब इस कार्रवाई को बाकायदा चलाए जाने की घोषणा संकेत करती है कि आजादी के लिए बेचैन बलूचों के सब्र का बांध टूटने को हो रहा है।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हाल में शुरू हुआ ‘ऑपरेशन बाम’ न केवल एक सैन्य अभियान है, बल्कि यह बलूच स्वतंत्रता आंदोलन की नई रणनीतिक दिशा का प्रतीक भी बन गया है। बलूच नेताओं द्वारा दिए गए बयानों और बीएलएफ (बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट) की गतिविधियों से यह साफ दिखता कि बलूच समुदाय अब पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र राष्ट्र की मांग को और मुखरता से उठा रहा है।
‘ऑपरेशन बाम’ की बात करें तो बलूची भाषा में ‘बाम’* का अर्थ है ‘सवेरा’। यह नाम प्रतीकात्मक रूप से बलूच आंदोलन के नए सवेरे को दर्शाता है। 9 से 11 जुलाई 2025 के बीच शुरू हुए इस अभियान के तहत 84 हमले किए जा चुके हैं। इन हमलों का मकसद था, पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों, पुलिस चौकियों, संचार ढांचे और प्रशासनिक सुविधाओं पर चोट करना। बीएलएफ ने इसे ‘मुक्ति आंदोलन में मील का पत्थर’ बताया है।
बलूच विद्रोहियों के इन हमलों में पाकिस्तानी सेना के 50 जवान मारे जा चुके हैं और दर्जनों घायल हुए हैं। इसमें 25 वाहन, 7 मोबाइल टावर, 5 निगरानी ड्रोन और एक सरकारी बस को नुकसान पहुंचाया गया है। आपरेशन के तहत रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में 22 अस्थायी चौकियां स्थापित की गई हैं और सेना के हथियार जब्त किए गए हैं। बलूच नेशनल मूवमेंट के सूचना सचिव काजी दाद मोहम्मद रेहान ने कहा है, ‘बलूचिस्तान कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं था और न ही होगा’।

काजी ने ऑपरेशन बाम को ‘बलूचों की आत्मनिर्भरता और संगठित प्रतिरोध’ का प्रतीक बताया है। उधर बलूच नेता मीर यार बलोच ने तो बलूचिस्तान की आजादी की घोषणा करते हुए भारत और संयुक्त राष्ट्र से समर्थन मांगा है।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने अप्रैल 2025 में बलूच विद्रोहियों को चेतावनी देते हुए कहा था, ‘1500 आतंकवादी देश का भविष्य नहीं बदल सकते’। लेकिन ऑपरेशन बाम ने अब मुनीर की रणनीति को ही चुनौती दे दी है। रिपोर्ट बताती हैं कि कई स्थानों पर पाकिस्तानी फौजी चौकियां छोड़कर भाग खड़े हुए हैं। इस मुद्दे पर अभी तक इस्लामाबाद में बैठी सरकार की ओर से कोई ठोस बयान सामने नहीं आया है, जिससे स्थिति और धुंधलाई हुई है।
बलूच नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की है कि उन्हें स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी जाए, मुद्रा और पासपोर्ट छपाई के लिए फंडिंग की जाए। साफ है कि बलूच आंदोलन अब केवल पाकिस्तान का आंतरिक मामला नहीं रहा, बल्कि यह मुद्दा अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया जा रहा है।
बलूचिस्तान का इतिहास देखें तो उसका 1948 में पाकिस्तान में जबरन विलय किया गया था। तब से लेकर अब तक कई बार विद्रोह हुए, लेकिन इस बार की रणनीति अधिक संगठित और व्यापक दिख रही है। बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से भरा—पूरा है, लेकिन वहां के लोग पाकिस्तान और चीन की शैतानी नीतियों के चलते आर्थिक उपेक्षा और मानवाधिकार उल्लंघन का शिकार हो रहे हैं।
इसमें संदेह नहीं है कि ऑपरेशन बाम ने चीन—पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को भी प्रभावित किया है। यह परियोजना चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा है, जिसे बलूच ‘बाहरी शोषण का प्रतीक’ मानते हैं। बीएलएफ ने ऑपरेशन बाम को दीर्घकालिक अभियान तो नहीं बताया है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बलूच आंदोलन की ताकत दिखाने की रणनीति हो सकता है। उनका मानना है कि पाकिस्तान की सत्ता को अब सैन्य नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक समाधान की ओर बढ़ना होगा। बलूच संगठनों की एकजुटता और उनकी सैन्य क्षमता दिखाती है कि यह संघर्ष जल्द खत्म होने वाला नहीं है।
कहना न होगा कि ऑपरेशन बाम ‘बलूच स्वतंत्रता आंदोलन’ को एक नई धार देने की कोशिश है। यह अभियान केवल हथियारों की लड़ाई नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और सामाजिक क्रांति का संकेत है। पाकिस्तान के लिए यह एक गंभीर चेतावनी है कि बलूचिस्तान की उपेक्षा अब और नहीं चलेगी। यदि पाकिस्तान ने बलूचों की मांगों को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह आंदोलन न केवल उसकी आंतरिक स्थिरता ही नहीं, बल्कि उस अंतरराष्ट्रीय छवि को भी प्रभावित कर रहा है जो वैसे भी नाममात्र की बची है।
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