भारत के लिए 15 जुलाई का दिन न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बल्कि राष्ट्रीय गौरव और अंतरिक्ष रणनीति के लिहाज से भी ऐतिहासिक बन गया, जब देश के लाल शुभांशु शुक्ला सफलतापूर्वक अंतरिक्ष से धरती पर लौटे है। यह कोई सामान्य वापसी नहीं थी बल्कि यह भारतीय अंतरिक्ष इतिहास के उस स्वर्ण अध्याय की शुरुआत है, जो भविष्य में चंद्रमा, मंगल और दीर्घकालिक मानव अंतरिक्ष उपस्थिति की नींव रखने वाला है। शुभांशु शुक्ला की ड्रैगन अंतरिक्ष यान द्वारा हुई वापसी भी अपने आप में तकनीकी और समय-संवेदी ऑपरेशन था। भारतीय समयानुसार दोपहर 3ः01 बजे जब ड्रैगन कैप्सूल प्रशांत महासागर में सफलतापूर्वक स्प्लैशडाउन हुआ तो यह क्षण भारत के लिए विजय घोष की तरह था। कैप्सूल को चार बड़े पैराशूटों की मदद से सुरक्षित रूप से समुद्र में उतारा गया और तत्पश्चात एक विशेष रिकवरी शिप पर स्थानांतरित किया गया, जहां अंतरिक्ष यात्रियों की शुरुआती स्वास्थ्य जांच हुई, जो अंतरिक्ष में बिताए समय के कारण अत्यंत आवश्यक होती है।
अंतरिक्ष से वापसी के बाद पुनर्वास की जटिल प्रक्रिया
अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल ढ़ालने के लिए कम से कम सात दिन अभी पुनर्वास में बिताने होंगे। यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती है क्योंकि अंतरिक्ष में शरीर की मांसपेशियां और हड्डियां अलग प्रकार के दबाव में होती हैं। जब अंतरिक्ष यात्री गुरुत्वाकर्षण में लौटते हैं तो शरीर को पुनः स्थिर करने के लिए शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण आवश्यक होता है।
एक्सिओम-4 मिशन में भारत की ऐतिहासिक भागीदारी
शुभांशु शुक्ला ने एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर जाकर एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया, जो न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया। इस ऐतिहासिक यात्रा ने एक नए संदर्भ और नई दिशा के साथ राकेश शर्मा की विरासत को पुनर्जीवित किया है। यह एक राष्ट्र के सपनों, उसकी क्षमताओं और उसके भविष्य की एक संपूर्ण कहानी है, जिसमें भारत अब केवल अंतरिक्ष की ओर नहीं देखता बल्कि अंतरिक्ष में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक रही। वे आईएसएस में कदम रखने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने। इससे पहले वर्ष 1984 में राकेश शर्मा ने रूस के सैल्यूट-7 मिशन में हिस्सा लिया था लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, विशेष रूप से नासा एवं एक्सिओम स्पेस जैसे संगठनों के साथ भारत की यह सीधी भागीदारी पहली बार हुई है। एक्सिओम-4 मिशन में अमेरिकी कमांडर पैगी व्हिट्सन, पोलैंड के स्लावोज उज्नान्स्की-विस्नीव्स्की और हंगरी के टिबोर कापू शुक्ला के साथ आईएसएस पहुंचे और वहां 18 दिनों तक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम दिया।
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गगनयान मिशन की नींव और रणनीतिक निवेश
भारत की ओर से यह मिशन पूरी तरह से रणनीतिक रूप से सोचा-समझा गया कदम था। इसरो द्वारा लगभग 550 करोड़ रुपये खर्च कर इस अभियान में भागीदारी सुनिश्चित की गई थी, जो कई मायनों में एक दीर्घकालिक निवेश की तरह है। गगनयान मिशन, जिसे 2027 तक लॉन्च करने की योजना है, उस दिशा में यह एक व्यावहारिक प्रशिक्षण, अनुभव और अंतर्राष्ट्रीय मानकों की समझ का अवसर रहा। अंतरिक्ष अभियानों की सफलता केवल तकनीकी तैयारी से नहीं बल्कि वहां कार्यरत वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और अंतरिक्ष यात्रियों की व्यवहारिक तैयारी से भी तय होती है। इस संदर्भ में शुभांशु शुक्ला का यह अनुभव इसरो के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक बेहद मूल्यवान संपत्ति साबित होगा।
वैज्ञानिक प्रयोगों की बहुआयामी उपलब्धियाँ
एक्सिओम-4 मिशन की विशेष बात यह रही कि इसमें केवल प्रयोगशाला परीक्षण या अंतरिक्ष में जीवन की अनुकूलता के अध्ययन तक ही सीमित नहीं रहा गया बल्कि इसमें भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए आवश्यक बहुआयामी प्रयोग किए गए। इस अभियान के दौरान माइक्रोएल्गी पर किए गए प्रयोगों को काफी अहम माना जा रहा है। ये प्रयोग अंतरिक्ष में दीर्घकालिक मानव उपस्थिति की संभावनाओं को बढ़ावा देंगे, जहां खाद्य और ऑक्सीजन आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं में माइक्रोएल्गी प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। अंतरिक्ष यात्रियों की जीवन समर्थन प्रणाली का भविष्य अब ऐसे जैविक स्रोतों की सहायता से और भी आत्मनिर्भर बन सकता है। इसी तरह नैनोमैटेरियल्स पर किए गए शोध भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनसे ऐसे पहनने योग्य उपकरण विकसित किए जा सकेंगे, जो न केवल अंतरिक्ष यात्रियों की स्वास्थ्य निगरानी कर सकें बल्कि दीर्घकालिक अंतरिक्ष अभियानों के दौरान उन्नत बायोसेंसर की भूमिका निभा सकें। रक्त नमूनों का विश्लेषण और व्यवहारिक प्रतिक्रियाओं के अध्ययन जैसे प्रयोग भविष्य में अंतरिक्ष चिकित्सा को एक नई दिशा देंगे।
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स्पेस डिप्लोमेसी और भारत की सॉफ्ट पावर
शुभांशु शुक्ला का यह मिशन केवल वैज्ञानिक सफलता नहीं है बल्कि यह भारत के अंतरिक्ष कूटनीति और वैश्विक नेतृत्व में प्रवेश का प्रतीक भी है। आज जब अंतरिक्ष एक वैश्विक प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र बन चुका है, भारत जैसी उभरती शक्ति की ऐसी उपलब्धि यह संदेश देती है कि अब हम केवल ‘स्पेस फॉलोअर’ नहीं बल्कि ‘स्पेस लीडर’ बनने की दिशा में अग्रसर हैं। भारत ने पहले चंद्रयान, फिर मंगलयान और अब मानव अंतरिक्ष उड़ानों के क्षेत्र में एक्सिओम-4 जैसे अंतर्राष्ट्रीय मिशन में भाग लेकर सिद्ध कर दिया है कि वह अंतरिक्ष अभियानों की तकनीकी एवं वैज्ञानिक आवश्यकता को पूरी तरह समझता है और उसमें नेतृत्व की क्षमता भी रखता है। इस मिशन से प्राप्त अनुभव न केवल गगनयान को परिपक्व बनाएंगे बल्कि भारत को भविष्य में अन्य अंतर्राष्ट्रीय मिशनों में निर्णायक भागीदारी के लिए तैयार करेंगे। वैज्ञानिक प्रयोगों से इतर इस मिशन में भारत की सॉफ्ट पावर, अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी और कूटनीतिक पहचान को भी बल मिला है। शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष यात्रा भारत की सांस्कृतिक, रणनीतिक और वैज्ञानिक पहचान का त्रिवेणी संगम बन गई है। उन्होंने केवल प्रयोग नहीं किए बल्कि भारत की वैश्विक स्थिति को एक नई ऊंचाई दी है।
चंद्र और मंगल मिशनों के लिए आधार तैयार
इस अंतरिक्ष मिशन के दौरान हुए कुछ प्रयोग भविष्य के चंद्र एवं मंगल मिशनों की नींव रखने वाले सिद्ध हो सकते हैं। इलैक्ट्रिकल मसल स्टिमुलेशन, थर्मल कम्फर्ट सूट और अंतरिक्ष में व्यवहारिक प्रतिक्रियाओं से जुड़े डेटा का इस्तेमाल मानवयुक्त मिशनों में अंतरिक्ष यात्रियों की मानसिक और शारीरिक स्थिति के बेहतर नियंत्रण हेतु किया जाएगा। इससे भारतीय वैज्ञानिकों को बेहतर डिजाइनिंग, सपोर्ट सिस्टम और तनाव प्रबंधन जैसी तकनीकों में महारत हासिल होगी। भारत ने हमेशा आत्मनिर्भरता के सिद्धांत पर चलकर अपनी अंतरिक्ष यात्रा को आकार दिया है लेकिन एक्सिओम-4 जैसा मिशन दर्शाता है कि भारत अब सहयोग की वैश्विक अवधारणा को अपनाकर अंतरिक्ष विज्ञान को साझा प्रयासों के माध्यम से नई दिशा देना चाहता है। शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा इस बात की पुष्टि करती है कि भारत तकनीक, विज्ञान, नेतृत्व और कूटनीति, चारों स्तरों पर एक समरस समन्वय बनाकर आगे बढ़ रहा है।
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गगनयान से पहले ‘लाइव केस स्टडी’ का महत्व
अब जबकि गगनयान मिशन अपने अंतिम तैयारियों की ओर बढ़ रहा है, शुभांशु का अनुभव इसरो के लिए ‘लाइव केस स्टडी’ की तरह होगा। शुभांशु के अनुभवों से देश को अब अंतरिक्ष में नई उड़ान भरने में बड़ी मदद मिलेगी। शुभांशु का व्यवहार, स्वास्थ्य परिवर्तन, प्रयोगात्मक दक्षता, टीम समन्वय और तनाव प्रबंधन जैसी क्षमताएं गगनयान के अंतरिक्ष यात्रियों के चयन और प्रशिक्षण में दिशा-निर्देशक सिद्ध होंगी। उनके साथ इस मिशन में शामिल वैज्ञानिकों और इंजीनियरों द्वारा एकत्रित डेटा, अंतरिक्ष चिकित्सा, भोजन, ऑक्सीजन व्यवस्था, जैविक प्रयोगों और जीवन समर्थन प्रणालियों को लेकर नई मानक प्रक्रिया का निर्माण करेगा। इसरो और अन्य संस्थानों को इस मिशन से यह स्पष्ट संदेश मिला है कि भारत को अब और तेज गति से तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना है। वहीं, युवा पीढ़ी के लिए शुभांशु शुक्ला की यह उपलब्धि प्रेरणा की वह लौ बन गई है, जो अगले दशक के वैज्ञानिकों, अभियंताओं और शोधकर्ताओं के लिए दिशा तय करेगी।
(लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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