बांग्लादेश से घुसपैठ : धुबरी रहा घुसपैठियों की पसंद, कांग्रेस ने दिया राजनीतिक संरक्षण
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बांग्लादेश से घुसपैठ : धुबरी रहा घुसपैठियों की पसंद, कांग्रेस ने दिया राजनीतिक संरक्षण

धुबरी में मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी लगभग 80% थी। हिंदू आबादी लगभग 19% थी और शेष 1% सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि थे।

by लेफ्टिनेंट जनरल एम के दास,पीवीएसएम, बार टू एसएम, वीएसएम ( सेवानिवृत)
Jul 15, 2025, 08:00 pm IST
in भारत
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बिहार में मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा (Special Intensive Revision, SIR) ने एक बार फिर बांग्लादेश से घुसपैठ की गंभीर चिंता पर ध्यान दिलाया। बिहार के कई जिलों, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल की सीमा से लगे जिलों में कुल आबादी के 1.25 गुना आधार कार्ड पाए गए। हम यह भी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल और असम जैसे कुछ राज्यों की जनसांख्यिकी पिछले कुछ दशकों में कैसे बदल गई है।

मुझे असम के धुबरी में अपनी सैन्य सेवा की याद आ गई। मैंने कर्नल के पद पर वर्ष 2004-2006 से धुबरी और कोकराझार में एक इन्फैंट्री बटालियन की कमान संभाली थी। हमें इन दो जिलों में तैनात किया गया था जो पश्चिम बंगाल, मेघालय, बांग्लादेश और भूटान की सीमा से लगे थे। धुबरी ने विशेष चुनौती पेश की। लगभग 20 लाख की आबादी के साथ, धुबरी में मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी लगभग 80% थी। हिंदू आबादी लगभग 19% थी और शेष 1% सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि थे।

धुबरी का भूगोल समझिये

धुबरी का भूगोल और स्थलाकृति चुनौतीपूर्ण है। शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र नदी इस जिले से पूर्व से पश्चिम तक बहती है। गौरतलब है कि बांग्लादेश से लगी सीमा 61 किलोमीटर लंबी है और इसमें बांग्लादेश में प्रवेश करने वाली ब्रह्मपुत्र नदी भी शामिल है। नदी के इलाके, भूमि सीमा की ज़िगज़ैग प्रकृति और घने वनस्पति के कारण इस सीमा की निगरानी करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है। एक और विशेषता चार और चपोरी थी, जो ब्रह्मपुत्र नदी में तलछट जमाव द्वारा गठित रेतीले, नदी के द्वीपों और दलदली भूमि को दर्शाती है। चार और चपोरी जैसे द्वीपों में रहना कठिन था और इनमे लगभग सभी मुस्लिम समुदाय के लोग रहते थे।

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ऐसे चलता था घुसपैठ का नेटवर्क

वर्ष 2004 में धुबरी जिले में बांग्लादेश के साथ कोई सीमा बाड़ नहीं थी। बांग्लादेश की ओर से घुसपैठ आम बात थी और वहां की भूमि सीमा की ज़िगज़ैग प्रकृति के कारण घुसपैठ आसान थी। कई बांग्लादेशी ब्रह्मपुत्र नदी के माध्यम से घुसपैठ करके आसानी से चार और चपोरियों में शरण ले लेते थे। बांग्लादेश से घुसपैठ एक सुव्यवस्थित रैकेट द्वारा की जाती थी और घुसपैठ करने वाले सभी लोगों को कुछ ही समय में राशन कार्ड मिल जाता था। उस समय आधार कार्ड नहीं था और राशन कार्ड एकमात्र पहचान पत्र था। बीएसएफ घुसपैठ रोकने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन मुझे लगता था कि असम पुलिस बांग्लादेश से घुसपैठ के खतरे को लेकर चिंतित नहीं थी।

धुबरी में दो उग्रवादी संगठन थे सक्रिय

चूंकि हम ऑपरेशन RHINO के हिस्से के रूप में काम कर रहे थे, इसलिए हमारा मुख्य कार्य आतंकवादियों और उग्रवादियों को पकड़ना या बेअसर करना था। धुबरी जिले में दो मुख्य उग्रवादी संगठन सक्रिय थे, एक यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA, उल्फा) और दूसरा था मुल्टा (MULTA, मुस्लिम यूनाइटेड लिबरेशन टाइगर्स ऑफ असम) । क्षेत्र में अन्य फ्रिंज तत्व भी सक्रिय थे और उनमें से कई मौजूदा सुरक्षा स्थिति का फायदा उठाते हुए आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे। उल्फा के पड़ोसी बांग्लादेश में सैन्य शिविर और ठिकाने थे।

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कांग्रेस ने मुल्टा को दिया राजनीतिक संरक्षण

इन उग्रवादियों, विशेषकर उल्फा काडरों के विरुद्ध अभियान चलाना एक बड़ी चुनौती थी जो सुप्रशिक्षित थे और जिनके पास बेहतर हथियार थे। मुल्टा कैडर के खिलाफ काम करना और उन्हें पकड़ना अपेक्षाकृत आसान था। लेकिन हमारे लिए बड़ी चुनौती असम में सत्ता में रही कांग्रेस सरकार द्वारा मुल्टा को राजनीतिक संरक्षण देना था। जब हम हथियारों और गोला-बारूद के साथ मुल्टा कैडर को पकड़ कर उन्हें असम पुलिस को सौंप देते थे तो कैडर जल्द ही रिहा हो जाता था। यह एक दुष्चक्र था, लेकिन हमें देश के कानून का पालन करना था। ऐसा अनुभव बहुत निराशाजनक था।

बड़े पैमाने पर होती थी जबरन वसूली 

इन बाधाओं के बावजूद, हम धुबरी जिले में अपेक्षित सामान्य स्थिति लाने में सफल रहे। उल्फा और मुल्टा दोनों द्वारा जबरन वसूली बड़े पैमाने पर की जाती थी। हम इसे काफी हद तक नियंत्रित करने में सफल रहे। हमारी उपस्थिति से आम आदमी अब स्वतंत्र रूप से घूम सकता था। वर्षों बाद कुछ विकास की गतिविधि शुरू हुई। मुझे याद है कि गोलपारा को धुबरी से जोड़ने वाले राज्य राजमार्ग में केवल गड्ढे थे। लगभग एक दशक बाद उस राजमार्ग ने एक बड़ी मरम्मत देखी।

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इस वजह से बांग्लादेश से घुसपैठ थी आसान

बांग्लादेश से घुसपैठ की फिर बात करें तो यह लोगों की जनसांख्यिकी, धर्म और रूप रंग की वजह से सुगम था। बांग्लादेश से घुसपैठ करने वाले लोग स्थानीय भाषा बोल सकते थे और उन्हें आसानी से पकड़ना बहुत मुश्किल था। धुबरी की ओर से घुसपैठियों के लिए पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले में जाने का रास्ता भी आसान था। स्थानीय प्रशासन को ऐसे लोगों से ज्यादा परेशानी नहीं थी। कोई आश्चर्य नहीं कि पिछले 20 वर्षों में पश्चिम बंगाल की जनसांख्यिकी में भी एक बड़ा बदलाव आया है।

वास्तविक सीमा बाड़ लगाना अभी भी चुनौती

ब्रह्मपुत्र नदी के मार्ग परिवर्तन के कारण धुबरी में वास्तविक सीमा बाड़ लगाना अभी भी एक चुनौती है। बांग्लादेश से घुसपैठ को रोकने के लिए, गृह मंत्रालय के तहत बीएसएफ द्वारा BOLD-QIT (बॉर्डर इलेक्ट्रॉनिकली डोमिनेटेड QRT इंटरसेप्शन तकनीक) नामक एक इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली स्थापित की गई है। अब हिमंत सरमा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सहयोग से, धुबरी जिले में बांग्लादेश से घुसपैठ में काफी कमी आई है।

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अवैध लोगों के लिए धर्मशाला नहीं है भारत

बिहार में चल रही एसआईआर से इनपुट मिल रहे हैं कि मतदाता सूची में बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार से आए मतदाताओं का पता चला है। चुनाव आयोग ने कहा है कि इस तरह के अवैध मतदाताओं का पता लगाने की विस्तृत कवायद पूरे देश में की जाएगी। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की है कि भारत अवैध लोगों के लिए एक धर्मशाला (आश्रय) नहीं है। यह सही समय है कि अवैध मतदाताओं की पहचान की जाए और उन्हें संशोधित मतदाता सूची से हटा दिया जाए। हर राष्ट्रवादी भारतीय को इस तरह के अभ्यास के पीछे ताकत बनकर खड़ा होना चाहिए। इस महत्वपूर्ण काम में कानून और व्यवस्था तंत्र और नागरिक प्रशासन दोनों से राष्ट्रीय हित में अपना अनिवार्य कर्तव्य निभाने की उम्मीद की जाती है।

 

 

 

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